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Category: सोंधी मिटटी

कविता – सीमांत अन्न

Posted on October 10, 2023

©डॉ धनञ्जय शर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर, सर्वोदय पी.जी. कॉलेज, मऊ मिलेट ईयर मनाया जा रहा था, और फायदे गिनाए जा रहे थे नाटे बेडौल थोथले और मोटे अनाज के। जो पिछड़ गए थे,…

कविता – भगत सिंह का चित्र

Posted on October 10, 2023

© माहेश्वर जोशी, देहरादून एक अंग्रेजी हैट, छोटी-छोटी मूछें एक खूबसूरत चेहरा आँखों से झांकती सच्चाई एक नौजवान का चित्र क्या वाकई! सिर्फ एक चित्र ये चित्र खुद में समेटे हुए है…

ग़ज़ल ©बृजेश गिरि

Posted on October 10, 2023

बात बहुत पुरानी लिख दूँ क्या, फिर से राजा-रानी लिख दूँ क्या! तुम्हारे बस इतना कह देने भर से, अब आग को पानी लिख दूँ क्या! मेरा हाल-चाल जो पूछ रहे हो…

कविता – गाँधी जयंती © रजनीकांत तिवारी

Posted on October 10, 2023

हाँ मैं गाँधी हूँ, किन्तु सत्ता का भोगी नहीं, देश का स्वाभिमान हूँ, परतंत्रता मुझे सहन नहीं चाहे जो कहता हैं, कहने दो मैने बोलकर नही कहकर, करके दिखलाया है आज स्वतंत्र…

कविता- आंगन में दीवार

Posted on October 10, 2023

© वरिष्ठ कवि जितेन्द्र मिश्र “काका”, मऊ खड़ा कर दिया मतभेदों नें, आंगन में दीवार। फीकी फीकी रही दिवाली, होली अबकी बार। दिया अभावों नें अक्सर ही, नफरत की सौगातें। कब क्यों…

कविता : बदल रहा हरेक समीकरण है

Posted on September 5, 2023

वरिष्ठ कवि श्री परमहंस तिवारी ‘परम’, वाराणसी बदल रहा हरेक समीकरण है गाँव का हो रहा शहरीकरण है। कुएँ का मुँह हुआ अब तंग है रहट की बाल्टी पर जंग है छेद…

कविता : सत्य -असत्य के बीच

Posted on September 5, 2023

डॉ अनूपा कुमारी सत्य – असत्य के बीच उधेड़-बुन में उलझा मानव कभी दिल तो कभी दिमाग से बहुत कुछ सोचता है सोचता ही रहता है किन्तु परिणाम तक नहीं पहुंच पाता…

कविता: मैं ऐसी ही हूं

Posted on September 5, 2023

प्रतिमा सिंह, मऊ हां मैं बोल जाती हूं ज्यादा कभी-कभी, क्योंकि मैं खुद को संभालना नहीं जानती। हां मैं कर जाती हूं नादानियां कभी-कभी क्योंकि मैं समझना नहीं जानती। हां मैं बन…

कविता : धरती के आइने में चांद

Posted on September 5, 2023

डॉ धनञ्जय शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर सर्वोदय पी.जी. कॉलेज, घोसी, मऊ धरती के आइने में,असंख्य रश्मियां बिखेरतासतमी का बांका चांदउतर रहा जमीं पर दूधिया रोशनी फैलाते। श्वेत-श्याम अस्पष्ट चेहरों परप्रश्नांकुल निगाहों में घिरा,सन्…

कविता – लकड़हारा

Posted on August 4, 2023

कवि – घनश्याम कुमार युवा कवि पलामू झारखंड भला इस मानुस के बारे में कौन सोचेगा जो अतीत के गर्त से भविष्य के द्वार पर आ खड़ा है वही लकड़ी  के टुकड़े…

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