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Category: सोंधी मिटटी

कविता- विलुप्त होता जायेगा प्रेम

Posted on December 16, 2023

© मनीष उपाध्याय, मऊ, उत्तरप्रदेश गिद्ध,गौराया,तितली और चीता की तरह विलुप्त होता जायेगा प्रेम भी। पर्व, उत्सव, उमंग, उल्लास अब बस किताबों में मिलेंगे ओझल हो जायेंगे रिश्ते-नाते, सगे-संबंधी सब डार्विन कहता…

कवि डॉ धनञ्जय शर्मा जी की दो कवितायेँ

Posted on December 16, 2023

असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग सर्वोदय पीजी कॉलेज, घोसी, मऊ दिया और बाती आओ हम दिए को दिए से जलाएं, जगत से सभी यूं अंधेरा मिटाएं। है कल्लू की मड़ई मदन की कोठरी,…

कविता – काव्य-सरिता अवरुद्ध क्यूँ हैं

Posted on December 14, 2023

© अश्वनी अकल्पित, नयी दिल्ली हाथ ने कलम थामी है, नोक पन्नों पर रखी है ना जाने कितनी बातें, विचार, कहानियां, इच्छाएं शब्द-सागर में डूबने को आतुर हैं – पर कागज से…

ग़ज़ल

Posted on December 14, 2023

© हरिलाल राजभर ‘कृषक’, घोसी, मऊ समझो महज़ न ख़्वाब हमारा ये गाँव है खिलता हुआ गुलाब हमारा ये गाँव है बिजली की रोशनी पे करे शह्र गर गुमां ख़ुद चाँद आफ़ताब…

लघुकथा – जय श्री

Posted on November 15, 2023

जय श्री नवोदित लेखिका हैं, बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से समकालीन विषयों पर रचे पात्र-विन्यास और कथानक इनकी महत्वपूर्ण विशेषता है बिकासुल (प्रातः कालीन समय, कंपनी गार्डन का दृश्य, दो मित्र…

लघुकथा : नेता जी  

Posted on November 14, 2023

©  डॉ सौरभ श्रीवास्तव नेता जी जनसमूह को संबोधित कर रहे थे, “मैं आप लोगों के साथ हमेशा खड़ा हूँ, आप लोग बस मेरे साथ खड़े रहिये, मैं इस राज्य के मुख्यमंत्री…

कविता – किन्नर हूँ मैं  ©  अनिता रोहलन ‘आराध्यापरी’,

Posted on November 11, 2023

नागौर,राजस्थान न लड़की हूँ,न लड़का हूँ, इस सृष्टि कि एक सुन्दर रचना हूँ मै, समाज की बंदिशों मे बंधी मै अर्धनारीश्वर का स्वरूप हूँ, छक्का,हिजड़ा,किन्नर न जाने क्या-क्या मिले मुझे, मै भी…

कविता – मैं इन्तजार कर रहा हूँ’ © बृजेश गिरि

Posted on November 11, 2023

मऊ उसने पूछा, सिगरेट पीते हो, मैंने कहा हाँ! उसने पूछा, शराब पीते हो, मैंने कहा हाँ! उसने पूछा, माँस खाते हो, मैंने कहा हाँ! उसने फिर पूछा, तब तो,           इश्क भी…

कविता – जाति-बिरादरी © मनोज कुमार सिंह

Posted on November 11, 2023

वरिष्ठ साहित्यकार जाति-बिरादरी मानव निर्मित है, प्राकृतिक होती तो, हर भेद-भाव से दूर होती। जाति -बिरादरी मानव निर्मित है, प्राकृतिक तो कतई और कदापि नहीं है, प्राकृतिक होती तो, हर तरह के…

ग़ज़ल © बृज राज किशोर “राहगीर”, मेरठ

Posted on November 11, 2023

जितनी ज़्यादा दुनियादारी देखी है क़दम-क़दम धोखा-मक्कारी देखी है। मिल-जुलकर खा जाना है यह देश हमें, लोगों की ऐसी तैयारी देखी है। जब भूखों ने अपने बच्चे बेच दिए, हमने ऐसी भी…

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