मनोज कुमार सिंह
प्रवक्ता-बापू स्मारक इंटर कॉलेज, दरगाह मऊ
लंका नरेश लंकेश को पराजित करने के उपरांत चौदह वर्षीय वनवासी जीवन की अनुभूतियों की थाती को हृदय में समाहित किये हुए वापस अयोध्या आकर जिन सिद्धांतों और विचारों के आधार पर मर्यादा पुरुषोत्तम ने शासन व्यवस्था स्थापित किया उसे समृद्ध भारतीय साहित्य और चिंतन परम्परा में “राम-राज्य “के नाम से जाना समझा जाता हैं । भारतीय साहित्य और राजनीतिक चिंतन परम्परा में वर्णित राम-राज्य को आधुनिक दौर में वर्णित और कुछ देशो में प्रचलित कल्याणकारी राज्य के समतुल्य माना जाता है। इस दृष्टि से मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय वसुन्धरा पर प्रथम कल्याणकारी राज्य के प्रवर्तक और संस्थापक माने जाते हैं।
लंका नरेश लंकेश को पराजित करने के उपरांत चौदह वर्षीय वनवासी जीवन की अनुभूतियों की थाती को हृदय में समाहित किये हुए वापस अयोध्या आकर जिन सिद्धांतों और विचारों के आधार पर मर्यादा पुरुषोत्तम ने शासन व्यवस्था स्थापित किया उसे समृद्ध भारतीय साहित्य और चिंतन परम्परा में “राम-राज्य “के नाम से जाना समझा जाता हैं। भारतीय साहित्य और राजनीतिक चिंतन परम्परा में वर्णित राम-राज्य को आधुनिक दौर में वर्णित और कुछ देशो में प्रचलित कल्याणकारी राज्य के समतुल्य माना जाता है। इस दृष्टि से मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय वसुन्धरा पर प्रथम कल्याणकारी राज्य के प्रवर्तक और संस्थापक माने जाते हैं।
वस्तुतः मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हृदय में चौदह वर्षीय वनवासी जीवन की भूख, प्यास, तड़प और वनवासी लोगों के जीवन जीने की चुनौतियों से साक्षात्कार के फलस्वरूप प्राप्त अनुभूतियों ने लोक मंगल और लोक रंजन पर आधारित एक आदर्श राज्य स्थापित करने की सूझ-बूझ और चेतना प्रदान किया । पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन परम्परा में इंग्लैंड के विद्वान विचारकों जेम्स मिल, जरमी बेंथम और जान स्टुअर्ट मिल ने “अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख” के सिद्धांत पर आधारित शासन व्यवस्था को कल्याणकारी राज्य के रूप में प्रतिपादित किया । मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा संचालित राम-राज्य निश्चित रूप से पाश्चात्य विचारकों द्वारा प्रतिपादित कल्याणकारी राज्य से श्रेष्ठ, उत्तम और व्यापक रूप से स्वीकार्य था। क्योंकि इसमें अधिकतम लोगों के कल्याण के बजाय सबके कल्याण को महत्व दिया गया था। इसका प्रमाण महाकवि तुलसीदास की रचनाओं में स्पष्ट रूप से मिलता है। तुलसीदास ने रामचरित मानस में राम-राज्य का उल्लेख करते हुए लिखा है कि-“दैहिक , दैविक भौतिक तापा, रामराज काहू नहीं व्यापा।” । वस्तुतः राम राज्य और कल्याणकारी राज्य में मौलिक अंतर यह है कि- कल्याणकारी राज्य का उद्भव उदारवादी पूंजीवादी माडल की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ। इसकी अवधारणा के अनुसार सरकार लोगों के जीवन में न्यूनतम हस्तक्षेप करेंगी और सरकार का कार्य केवल कानून व्यवस्था बनाएं रखते हुए लोगों के जीवन, सम्पत्ति और स्वतंत्रता की रक्षा करना हैं। इसकी प्रतिक्रया के फलस्वरूप उत्पन्न कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अनुसार सरकार को लोगों का जीवन स्तर उपर उठाने के लिए सक्रिय और सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहिए। इसके विपरीत राम राज्य का उद्भव उन कष्टदायक संघर्षमयी अनुभवों और अनुभूतियों के फलस्वरूप हुआ था जिनको वनवासी जीवन के दौरान राम ने झेला था या साक्षात्कार किया था। यातना, कष्ट और जीवन जीने की चुनौतियों के अनुभवों से शासन व्यवस्था के लिए आई समझदारी और परिपक्वता के फलस्वरूप उत्पन्न राम-राज्य का स्वरूप स्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न कल्याणकारी राज्य के स्वरूप से बेहतर और व्यापक रूप से स्वीकार्य था। एक कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य न केवल राज्य के लोगों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है बल्कि विविध प्रकार के भेद-भावों पर आधारित रूढ़ियों और परम्पराओं को मिटा कर प्रत्येक व्यक्ति को
गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना होता हैं। वनवासी जीवन के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने विसंगतियों से भरी रुढियों और परम्पराओं को मिटाकर नई मर्यादाओं को स्थापित करने का श्लाघनीय प्रयास किया। भक्त वत्सल श्रीराम ने शबरी की जूठी बेर खाकर अपने समय की छुआ-छूत जैसी घिनौनी प्रथा पर करारा प्रहार किया और यह भेदभाव रहित समाज बनाने की दिशा में उठाया गया आवश्यक क्रांतिकारी कदम था । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान यह महसूस किया कि- हमारे समाज में एक बड़ी आबादी सदियो से छुआ-छूत जैसी घृणित कुप्रथा का शिकार हैं और सदियों से पददलित, पदक्रमित और तिरस्कृत यह आबादी सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रही हैं। भारतीय सामाजिक संरचना का विश्लेषण करते हुए प्रख्यात समाजशास्त्री श्रीनिवासन ने कहा था कि-“भारतीय समाज विश्व का सर्वाधिक विश्रृखंलित, विभाजित, विखंडित और श्रेणीबद्ध (Higherarical ) समाज है।” इन समस्त विकृतियों को समाप्त किए बिना हम स्वस्थ्य समरस और सशक्त भारत का निर्माण नहीं कर सकते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम और शबरी के संबंधों को स्मरण करते हुए हम बढ़ती सामाजिक कड़वाहट को रोक सकते हैं। वनगमन के दौरान दुर्गम, कंकड़ीले-पथरीले रास्तों पर चलते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने उत्कट परोपकार की भावना का परिचय देते हुए घायल जटायु को गले लगाया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जटायु की व्यथा-वेदना को जिस तत्परता और तल्लीनता से सुनने, समझने और दूर का प्रयास किया वह आज भी राह में पडें घायल दीन-दुखियो की सेवा -सुशुश्रा करने का अद्वितीय और वर्तमान दौर में कल्याणकारी राज्य का दावा करने वाली सरकारों के लिए प्रेरणा ग्रहण कर योग्य उदाहरण है। क्योंकि- कल्याणकारी राज्य की यह मूलभूत विशेषता है कि- सरकार समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को उपर उठाने के लिए आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करेगी। आज सडकों से लेकर गांव की पगडंडियो पर आते-जाते लोगों की रफ्तार इतनी तेज है कि सडक पर घायल अवस्था में पडे बुढे-बुजुर्ग और अपाहिजो को लोग अनदेखा कर देते हैं। आज हम सडक पर शरारती तत्वों द्वारा किसी सज्जन के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार या किसी महिला के साथ आम सडक पर होती अशिष्टता और अभद्रता के दृश्य के महज तमाशबीन बनकर रह गये हैं या अधिक से अधिक सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिकतक हाइटेक औजार के माध्यम से सेल्फी लेने में मशगूल रहते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा घायल जटायु को गले लगाने का अनुपम उदाहरण हमें सामाजिक सरोकारों के लिए प्रेरित करता है और उत्तरदायी बनाता है। इस उदाहरण से हम समाज के सामूहिक दुख दर्द से स्वयं को जोड़कर शरारती तत्वों और मनचलों द्वारा की जाने वाली असामाजिक गतिविधियों और प्रायः सडक पर होने वाले सामूहिक दुष्कर्मो और दुर्व्यवहारो को रोक सकते है । मर्यादा पुरुषोत्तम राम स्वस्थ्य, मर्यादित और अनुशासित स्त्री-पुरुष संबंधों की आवश्यकता और महत्ता के प्रति संवेदनशील थे। मर्यादित रिश्तों-नातों की बुनियाद पर टिका हुआ
समाज कभी अराजक नहीं होता और उस समाज का नैतिक मनोबल ऊंचा रहता हैं। इसलिए अपने छोटे भाई सुग्रीव की धर्मपत्नी के साथ दुराचरण के दोषी बालि का वध करने से भी राम ने परहेज नहीं किया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने बालि का वध कर रिश्तों-नातों और सामाजिक संबंधों की मर्यादा स्थापित करने का श्लाघनीय कार्य किया। नारी सशक्तिकरण, नारी सम्मान और नारी सुरक्षा कल्याणकारी राज्य का अनिवार्य तत्व है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के प्रति सर्वदा सजग और सचेत रहे। राम ने गौतम ॠषि द्वारा परित्यक्त लगभग जड़वत हो चुकी अहिल्या को गरिमा सहित अधिकार वापस दिलाया और ससम्मान गौतम ॠषि से मिलन कराकर नारी अस्मिता को नये सिरे से परिभाषित करने का अद्वितीय प्रयास किया । अपने सम्पूर्ण वनवासी जीवन की दुर्गम यात्रा में मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने विविध मूल्यों, मान्यताओ और मर्यादाओं को स्थापित किया जो हमारे सामाजिक जन जीवन में आज भी अनुकरणीय और अनुसरणीय हैं। इन मूल्यों, मान्यताओं और आदर्शों पर स्थापित राम-राज्य को गहराई से समझने का प्रयास किया जाय तो निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ और उत्तम कल्याणकारी राज्य स्थापित करने में सहायता मिल सकती है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा स्थापित राम राज्य में एक आदर्श कल्याणकारी राज्य के सारे सिद्धांत समाहित है जिसको जमीन पर उतारने का प्रयास हर शासक को करना चाहिए।