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अपनी बात

Posted on July 1, 2023

अर्चना उपाध्याय, प्रधान संपादक

भारत मूलतः गाँवों का देश है, जिसकी अस्सी से नब्बे प्रतिशत तक की जनता गाँवों में रहती थी लेकिन बाद के समय में जैसे-जैसे आधुनिकता बढ़ी गाँवों से शहरों की तरफ पलायन हुआ। इस पलायन में लोक-संस्कृति, रीति-रिवाज़, परम्पराओं, मान्यताओं आदि का भी स्थानांतरण हुआ जो बाद में आस्थाओं की परम्परागत शैली से हट कर आधुनिकता में परिवर्तित हो गया ।

कृषि कार्य की अधिकता के कारण जब पुरुष घर से बाहर दिन-रात रहता था तो उसकी मनःस्थिति चईता व चैती के माध्यम से व्यक्त हुई । खुशी एवं उल्लास फगुआ के माध्यम से बाहर निकला, राम का रावण पर विजय दशहरा व दीपावली के माध्यम से व्यक्त हुआ । इन सब के पीछे आस्था के साथ-साथ उसके घर में आये धन की खुशी भी थी । एकादशी के दिन गन्ना आदि नए अन्न के प्रयोग की परम्परा बनी । ख़ुशी के अवसरों पर गाँव के डीह बाबा, ब्रह्मबाबा के साथ-साथ कुल देवता एवं देवी पूजने की परम्परा थी जो आज भी गाँवों में उसी रूप में विद्यमान है लेकिन शहरों में उसे प्रतीकात्मक रूप से निभाया जा रहा है । शादी-विवाह के अवसर पर जनवासे एवं बड़हार आदि की परम्परा थी इसका मूल उद्देश्य था नये सम्बन्धियों का पुराने सम्बन्धियों से परिचय जो आज पूर्णतः समाप्त हो गया है । इस प्रकार बहुत से रीति-रिवाज़ थे जो हमारी सामाजिकता के लिए आवश्यक थे जिनका लोप इस आधुनिकता के दौर में हो गया है ।

कहने का आशय यह है कि हम आधुनिक बनें लेकिन साथ ही साथ अपने आधार से भी जुड़े रहें । हम वायुयान से अवश्य चलें लेकिन बैलगाड़ी के महत्व को भी याद रखें । आपकी वीथिका का यह अंक गाँवों की उन्हीं बतकहियों, स्मृतियों, गीतों, कथाओं के साथ आपके समक्ष है ।

3 thoughts on “अपनी बात”

  1. अनूप कटारिया says:
    July 1, 2023 at 10:33 am

    ग्रामीण संस्कृति को दर्शाता वीथिका का यह अंक पठनीय व विचारणीय है।

    Reply
    1. Sumit Upadhyay says:
      July 1, 2023 at 10:56 am

      Thanks Anoop Ji

      Reply
  2. Randhir Singh Suman says:
    November 16, 2023 at 5:02 am

    Good

    Reply

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