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कविता – सावन

Posted on July 16, 2024

अश्वनी अकल्पित

नई दिल्ली

बरसो बरसो सावन

देखो आसमान में कारी घटा                                          

जैसे गोपियों के आंख में काजल सा घुला

बरस-बरस के मन महकाती हो

मन को सुखद अनुभूति कराती हो,

तरस रहे है वन उपवन                 

तेरा रास्ता देखे किसान के नयन ,

तुम हो धरा की जीवन दाता

पशु पक्षी मानुष और प्रकृति की माता                                  

आओ इस धरा का संताप हरो

बरस कर सबका ताप हरो

शीतल करो सबका मन                 

आओ सावन झूम के सबके आंगन                                 

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