अश्वनी अकल्पित
नई दिल्ली
बरसो बरसो सावन
देखो आसमान में कारी घटा
जैसे गोपियों के आंख में काजल सा घुला
बरस-बरस के मन महकाती हो
मन को सुखद अनुभूति कराती हो,
तरस रहे है वन उपवन
तेरा रास्ता देखे किसान के नयन ,
तुम हो धरा की जीवन दाता
पशु पक्षी मानुष और प्रकृति की माता
आओ इस धरा का संताप हरो
बरस कर सबका ताप हरो
शीतल करो सबका मन
आओ सावन झूम के सबके आंगन