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कविता – बसंत ऋतु का स्वागत

Posted on February 19, 2024

अश्वनी अकल्पित

नयी दिल्ली

एक:

बसंत ऋतु के आगमन पर लिखे है शब्द चार

दो तो ठंड से जम गए दो धूप रहे ताप

दो धूप रहे ताप मन में ही मनभर बोझा

ऐसी जमी स्याही कागज रह गया कोरा

कुछ लकीरें रह गयी जिनमें भाव अनंत

ठिठुरती इस ठंड में दस्तक दे रहा बसंत

दो:

देखो आया बसंत झूम के

नृत्य करत मयूर विभोर हो

उड़त रंग फगुवा -खिलत पुष्प पलाश के

कोक की कूक मनभावन

कहे अकल्पित सब के बसंत सुहावन

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