डॉ एस पी सती
भू वैज्ञानिक पर्यावरणविद, उत्तराखंड
एक दिन आएगा जब
तुम्हारे कर्मों से उकता कर अचानक
कुदरत समेटने लगेगी अपने पहाड़
सबसे पहले नदियों को सरकायेगी खींच कर
और पहाड़ मनका-मनका बिखर
टीला-टीला अलग हो जाएंगे
फिर सरका देगी छोटी-छोटी नादिकाओं को हौले से
और टीले भंगुर होकर मिट्टी पत्थर के ढेर लग जाएंगे।
फिर धीरे से सरका देगीं वो मैदान की चादर
जो पहाड़ के नीचे से होकर
बिछी हुई है इस पार से उस पार तक
और खींच कर ढो डालेगी टीलौं के ढेर को
दक्खिन में समंदर की छाती पर
मैदान की पीठ पर उभर आएंगी गहरी खरोंचे
इस तरह पहाड़ गायब होगा जब
लहूलुहान मिलेगा मैदान
और कराहता टीलों के ढेर तले दबा समंदर
मेरे भाई ठीक उस लम्हें
तुम अट्टहास करने की चाह रख रहे होंगे
पर उस क्षण को देखने के लिए
तुम रहोगे भी???
आओ गौर करें।