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इतिहास : कल्पना या यथार्थ

Posted on February 15, 2024

डॉ मोहम्मद ज़ियाउल्लाह

विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग

डी.सी.एस.के. महाविद्यालय, मऊ

हम भी, आप भी, माना जाए तो सभी इस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के कृतज्ञ हैं। याद करिए, एक जमाना था जब हम बेबस थे, हम केवल सच और तथ्य के साथ जीते थे, जितने तथ्य उपलब्ध थे उतने पर ही संतोष करना पड़ता था, हम चाह कर भी अपनी मर्जी के तथ्य नहीं गढ़ पाते थे। मगर आज यह व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की देन है कि हम जब चाहते हैं और जैसा चाहते हैं, यह विश्वविद्यालय वैसा ही तथ्य पैदा करके हमें दे देता है। यूँ कहिए कि इस विश्वविद्यालय ने “आवश्यकता अविष्कार की जननी है” की कहावत को सच कर दिखाया है ।

इतना ही नहीं इस विश्वविद्यालय की असीम संभावनाएं हैं । यही एक मात्र विश्वविद्यालय है जिसमें सबसे अधिक समानता हैं, सबको बराबर अवसर प्राप्त हैं, साक्षर क्या निरक्षर सभी एक समान इस विश्वविद्यालय में ज्ञान की डुबकी लगाते हैं । इस विश्वविद्यालय में जीवन के हर एक क्षेत्र के ज्ञान बंटते हैं, मगर इतिहास इस विश्वविद्यालय का सबसे रोचक विषय रहा है। नेता-प्रणेता अपने रंगमंच पर जो.इतिहास की अपनी डपली-अपना राग सुना रहे थे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी  के अभ्योदय के साथ ही उनका पेटेन्ट समाप्त हो जाता है। इस विश्वविद्यालय ने जो ऐतिहासिक ज्ञान बांटा कि अब हालत यह हो गयी कि “जितने मुहं-उतने इतिहास” । एक ने बात गढ़ी, दुसरे ने वायरल किया और जमाने का हर व्यक्ति इतिहासकार हो गया ।  व्हाट्सएप इतिहास लिखने के लिए इन्हें किसी बात या साक्ष्य.की आवश्यकता नहीं वह स्वयं में साक्ष्य होते हैं। नेहरू के दादा गंगाधर नेहरु को मरणोपरांत परान्त गयासबेग बनाने की अदभूत कला रखते हैं। अगर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी  नहीं होती तो हम ऐसी अदभूत सूचना से वंचित रह जाते ।

               एक इतिहास, जो है तो इतिहास क्योंकि वह साक्ष्यों पर आधारित है और स्रोतों से प्रमाणित है परन्तु अधिकतर लोग इतिहास को राजा-महाराजाओं की कहानी तक सीमित समझते हैं । इतिहास राजाओं की नीतियों, उनके युद्ध और संधियों का वर्णन होता है। इतिहासकार गड़े मुर्दे उखाड़ते हैं। भूतकाल में जाकर भूतों पर नियन्त्रण करने का प्रयास करते हैं।

              इतिहास में धर्म-कर्म का रंग चढ़ा हुआ भी देखा गया है। यह वही समय है जब पंडितों-पुजारियों, पादरियों और मौलवियो-मुल्लाओं को राज्य दरबार में पैर पसारते देखा जा सकता है। राज-पाट के साथ-साथ धर्मगुरु (Grandies of the State and Religion) भी इतिहास के विषय बन गए अर्थात इतिहास का दायरा बढ़ा । परन्तु अब भी इस दायरे में प्रजा शामिल नहीं हो सकी। आधुनिक दौर में इतिहास का दायरा प्रजा और उसके जीवन से संबन्धित विषयों तक बढाया गया । इतिहास में प्रजा को उसकी दैनिक स्थिति के रुप में प्रस्तुत सबॉल्टर्न इतिहासकार ने किया। इस प्रकार मार्क्सवादी इतिहासकार ने इतिहास को भौतिक दृष्टि से प्रस्तुत किया। राष्ट्रवादी एवं साम्राज्यवादी दृष्टि से इतिहास को लिखा गया।

इतिहास के सफर में यह जानना भी जरूरी है कि धरती पर मनुष्य का इतिहास, उसकी उत्पत्ति तथा उपलब्धि से सम्बंधित है । बीते कल से अनादिकाल तक का इतिहास होता है  मगर हमारे पास इस काल के लिए जिन्दा माध्यम मौजूद नहीं हो सकता। इसीलिए इतिहासकारों ने भूत को जानने-समझने के लिए स्त्रोतों की खोज की ताकि असल स्थिति का सही ज्ञान प्राप्त हो सके। इसके लिए इतिहासकारों ने प्रथम दृष्टया इतिहास को तीन कालों – प्राचीन, मध्य एवं आधुनिक काल में विभाजित किया ताकि इसे सही स्त्रोतों के आधार पर लिखा और समझा जा सके।

जिस प्रकार डॉक्टर के लिए नवजात शिशु की बीमारी समझना और उसका उपचार करना अनिवार्य है, आप समझ सकते हैं कि शिशु अपना दुःख नहीं बता सकता मगर फिर भी उसका उपचार तो किया जाना है । इसमें असल होशियारी डॉक्टर की है कि वह बीमारी को लक्षणों से समझता है, जांचों से पड़ताल करता है और अनुमान से इलाज कर ही लेता है । यही है हमारे प्राचीन कालीन इतिहास की हालत, यह भी मानव विकास का शिशु काल ही है जिस पर ज्ञान की वाणी मौन है 

इतिहास लेखन के इस बेला में हमारे लिए धार्मिक ग्रंथ ही असल Symptoms हैं जिससे इतिहास का अनुमान लगाया जाता है जबकि पुरातात्विक अवशेष से जाँच पड़ताल किया जाता है । मुश्किल यह है कि धार्मिक ग्रंथ अथाह हैं उसमें से इतिहास निकालना रेत से पानी निचोड़‌ने के समान हैं। मगर हम इतिहासकार हैं कि है चारों वेद – ऋग, साम, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद, इनके 6 वेदांग, 200 उपनिषद, 18 पुराण, हर 7 आरण्यक, 8 स्मृति, रामायण, महाभारत, अथाह जैन धर्म ग्रंथ, 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण ग्रंथ, 6 छेद ग्रंथ, 4 मूल सूत्र, 2 स्वतंत्र ग्रंथ, बौद्ध त्रिपिटक, विनयपिटक, अभिधम्म, सूत्रपिटक, जातक कहानियाँ, जैसे इन धार्मिक ग्रंथों के अथाह सागर में डुबकी लगाकर मोती निकाल ही लेते हैं ।

बच्चे जब थोड़ा बड़े हो जाते हैं तो अपनी मासूमियत से दुनिया को वैसा ही देखते है जैसी उन्हें दिखाई देती है। इतिहास के विदेशी यात्री – मेगास्थनीज, डाईमेक्स,डायनोसियस, टॉलमी, प्लिन्नी, फाह्यान, शुग-यान, ह्वेनसांग सुलैमान,  अल-मसूदी में भारत देखने-परखने में वही बच्चों की नज़र वाली मासूमियत थी कि जैसा समझा वैसा ही प्रस्तुत कर दिया। हम इतिहासकारों को इनमें से हीरे चुन-चुन कर तराशना पड़ता है ।

इतिहास में हमारी जांच ऊँचे-ऊँचे टीलों से शुरू होती है। इतिहास और सभ्यताओं की खोज में हमने ढूंढ़- ढूंढ़ कर टीलों की खुदाई किया। फिर टीलों में आसमान की ऊँचाई पर विराजमान सिन्धु घाटी की सभ्यता ने दर्शन दिया । मिस्र और मेसोपोटामिया ने बुलन्दी दिखाई और इधर-उधर बिखरी सैकड़ों संस्कृतियां  अपना-अपना गौरव प्रस्तुत करने लगीं। पुरातात्विक खोज ने चामत्कारिक रूप से मानव अवशेष का खजाना प्रदान कर दिया, अनगिनत शहर-भवन, स्मारक, मूर्तियां, मुद्राएँ, अभिलेख, शीलालेख, स्तंभलेखों ने सारी परिकल्पनाओं को साकार कर कर दिया। इतिहास की किस्से कहानियो का बादल घंटा सभ्यता संस्कृति ने मनुष्य को दुनिया का बेताज बादशाह साबित किया।

बच्चा बड़ा हुआ अपना दर्द खुद बयान करने में सक्षम हुआ। डाक्टर से संवाद संभव हुआ। इसी तरह मध्य युग में ज्ञान का सूयोदय हो चुका था। साहित्य धर्म से उपर उठकर जीवन के दर्द को बयान कर रहा था। ज्ञान, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, जीवन के दर्शन एवं व्यवहार का साहित्य लिखे जाने लगे थे । इतिहासकार के लिए अब भूत और वर्तमान में संवाद स्थापित करना आसान हो रहा था। प्रजा हो कि राजा अपने-अपने दैनिक जीवन का हिसाब लिख कर देने लगे थे। आधुनिक युग में बच्चा इतना बड़ा, इतना समझदार, जमाने की उलझनों में इतना पड़ा कि अपना मर्ज इतना बताने लगा कि डाक्टर को बातों में असल को चुन कर इलाज करना पड़ता है। उसी प्रकार इस युग में इतिहास के स्त्रोतों का अंबार लग चूका है रोज-रोज के समाचार पत्र, पत्रिकाएं, किताबें, सरकारी व गैर सरकारी आंकड़े, विश्लेषण, और भी बहुत कुछ “इलेक्ट्रानिक क्रांति के युग में सब प्रस्तुत हैं । अब इतिहास विषयानुसार छांट-छांट कर लिखना है। इतिहास के इस सफर में स्त्रोत और विषय ने जीवन के सभी क्षेत्रों को इस तरह समेटा कि अब इतिहास गड़े मुर्दे उखाड़ना नहीं बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों को अपने अंदर संजोये हुए भविष्य का निर्माण करता आगे बढ़ रहा है ।

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