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” रमणे कणे-कणे इति राम “

Posted on January 20, 2024

अर्चना उपाध्याय

मुख्य संपादक एवं समाजसेवी

यही हैं श्री विष्णु के दसवें अवतार माने जाने वाले “अयोध्या”के श्री राम जी जो कण-कण में बसते हैं । संविधान के तीसरे भाग में जहां आम हों या खास सभी नागरिकों के लिए एक समान मौलिक अधिकारों की चर्चा है, वहां प्रभु श्री राम जी का ही सुन्दर चित्र अंकित है। एक अनपढ़ भी श्री राम जी के आदर्श चरित्र, न्यायप्रिय,मर्यादापुरुष, गुणवान, दृढ़प्रतिज्ञ, सदाचारी, वीर्यवान, धैर्य, मन पर नियन्त्रण,कान्तिवान, विद्वान, धर्मज्ञ, समर्थवान,नैतिक, कुशल राजनीतिज्ञ, सामाजिक, पारिवारिक आदि अनेकानेक गुणों की सरल भाषा में अकाट्य तर्क प्रस्तुत कर श्रीराम की विशेषता व प्रभुता साबित कर सकता है।

विद्वता के साथ नम्रता को राम ने आजीवन धारण किया है किन्तु अन्याय के खिलाफ प्रभु श्री राम जी ने जनहित में अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया है।

पिता द्वारा राज्याभिषेक की घोषणा के पश्चात ये राम ही हैं जो “अन्य भाईयों के लिए क्या?” इसकी चिन्ता करके बड़े भाई का धर्म, संयुक्त परिवार का अग्रज व भाईयों से अथाह प्रेम को प्रदर्शित करते हैं। मां कैकयी की इच्छा व पिता के आदेश से तपस्वी वेश में 14 वर्ष वनवास को बिना प्रश्न के सर झुकाकर सहर्ष स्वीकार करना तथा माता कौशल्या से आज्ञा लेकर यह कहना कि पिता उन्हें किसी बड़े कार्य के लिए भेज रहे हैं, यह शिक्षा देता है कि हमारी संस्कृति में माता-पिता, बड़ों का सर्वोच्च स्थान है और इनकी इच्छा के अनुसरण में भलाई निहित है।

सीता को अयोध्या में ही रुककर माताओं की सेवा हेतु समझाने वाले राम आज की पीढ़ी के लिए एक संदेश प्रस्तुत करते हैं जो विवाह के बाद ही परिवार से अलग रहना पसन्द करते हैं।

वनगमन के समय जब अयोध्या की सीमा शृंगवेरपुर तक समस्त अयोध्यावासी विकल होकर साथ पहुंचाने जाते हैं तो आह रे राम का नगरवासियों के प्रति प्रेम व करुणा की पराकाष्ठा कि रात के अंधेरे में सबको सोता छोड़कर मन्त्री सुमन्त के साथ स्थान छोड़ देते हैं ताकि वो लोग अधीर न हों।

ऐसे ही वन में निषादराज से दोस्ती, हनुमान जी को सर्वाधिक प्रिय बनाना, शबरी के झूठे बेर खाना, राम सेतु बनाते वक्त सकल वनवासियों, जनजातियों,पशु-पक्षियों को एकत्रित करना उनके विशाल व सम्यक, समान दृष्टिकोण को अपनाते हुए दर्शाता है कि राम ने सभी को एक समान समझा,एक समान व्यवहार अपनाया, बिना किसी लिंग भेद, जाति भेद के समतामूलक समाज की परिकल्पना व सार्थकता हमने राम राज्य में ही पाया है।

विरोधी पक्ष से शरण में आए को भी पहले सुनने व फिर उसके आदर्श गुणों के कारण अपनाने का साहस सिर्फ राम में ही है। जब विभिषण मिलने आते हैं और सुग्रीव संशय प्रकट करते हैं तो प्रभु राम मुस्कुराते हुए पहले आगंतुक को सुनने की सीख देते हैं। इससे बड़ा लोकतन्त्र का उदाहरण हमें कहां मिलेगा जहां हर जीव-जंतु, मनुष्य को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हो ।

इसी तरह शबरी के जूठे बेर को खाकर राम हमें भेद-भाव से रहित,प्रेम की सर्वोच्चता को स्वीकारने की सीख देते हैं।

इसी तरह आजीवन एक पत्नि-प्रेम व विवाह को निभाते हुए राम ने हमारी भारतीय संस्कृति व सभ्यता का परिचय व निभाने की मर्यादा का उदाहरण दिया है। विवाह जैसी सुन्दर संस्था के महत्व का निर्माण किया है।

घायल रावण की मृत्यु से पूर्व लक्ष्मण को विद्वान रावण से कुशल राजनैतिक व सामाजिक ज्ञान के लिए भेजते हुए राम ने सबसे अलग विशाल हृदय, एक ज्ञानी का दुसरे ज्ञानी की स्वीकार्यता का अद्भुत शिक्षा दी है कि ज्ञान हमें जहां से भी मिले उसे ग्राह्य करना ही विद्वता से नम्रता को सार्थक करता है।

अर्थात प्राचीनकाल से लेकर आज भी कुशल राजनीतिज्ञ, आदर्श पारिवारिक प्रेम, नैतिक मूल्यों की रक्षा, सामाजिकता के निर्वाह, सबके प्रति समान निस्वार्थ भाव, चरित्रवान, मधुर व प्रिय बोली-आचरण वाले कोमल राम, दूसरी तरफ न्याय पालन हेतु उतने ही सख्त राम ने जनहित में स्वयं हित की सर्वदा बलि दी है।

राम पहले थे, आज हैं और हमेशा रहेंगे।

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