कुँवर तुफान सिंह निकुम्भ
युवा कवि व साहित्यकार, मऊ
राम हमारे मूल है और मूल को परिभाषित करना उतना कठिन कार्य होता है जैसे सूरज को दीपक दिखाना । राम सर्वव्यापी हैं वह संसार के कण-कण में विराजमान हैं, राम जीवनयापन का एक सिद्धांत है । जिस प्रकार सिद्धांतविहीन मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं रहता ठीक उसी प्रकार राम के बगैर इस सकल ब्रम्हांड में जीवन का कोई मूल्य नहीं। राम एक ऐसे प्रकाश पुंज है जिसके उजाले में जीवनयापन करना बहुत ही सुन्दर और सुगम हो जाता है, परन्तु इस प्रकाश से विरले ही प्रकाशित हो पाते हैं ।
इस प्रकाश से प्रकाशित होने के लिए राम शब्द के शाब्दिक अर्थ को समझना अतिआवश्यक है जिसे मैंने ज्ञानार्जन के माध्यम से जो प्राप्त किया
राम शब्द में “रा” का अर्थ होता है- “आभा” और “म” का अर्थ होता है- “मैं”
राम अर्थात जो संपूर्ण सृष्टि पर अपने औरस पुत्रों के समान, सब पर समान प्रेम और स्नेह कि बारिश करते हो यदि उतने के बाद भी आप राम रसपान करने से वंचित रह जाते हैं तो आपको स्वयं में आत्मचिंतन कि आवश्यकता है। एक बार महात्मा गांधी ने कहा था “आप मेरा सब कुछ ले लिजिये, मैं तब भी जीवित रह सकता हूँ । परन्तु यदि आपने मुझसे राम को दूर कर दिया तो मैं नहीं रहा सकता।”
राम आपको हर रुप में मिल जाएंगे यथा दशरथ के राम, कैकई के राम, कौशल्या के राम, भरत के राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के राम, सीता के राम, जटायु को पिता स्वरुप स्नेह करने वाले राम, भाई समान स्नेह करने वाले हनुमान के राम और मित्र धर्म का पालन करते राम के रूप में या निषाद राज के बालसखा के प्रेम में विभोर राम । यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस रुप में राम को अपना बनाना चाहते हैं और राम मय होना चाहते हैं। एक नाम रुप अनेक और अनेक रुप और एक राम,
“भरतु प्रानप्रिय पावहीं राजू। बिधि सब विधि मोहि सनमुख आजू।।”
राम अर्थात त्याग की प्रतिमूर्ति जिन्होंने अपने कुल की मर्यादा को बचाने के लिए यह कहते हुए सिंहासन का परित्याग कर दिया कि यदि मेरे वन जाने से प्राणप्रिय भरत भैया को राजसिंहासन मिलता है तो ऐसा कोई अभागा और अज्ञानी ही भाई होगा जो वन के बजाय राजसिंहासन पर बैठना चाहेंगा।
त्याग और निश्छल प्रेम में वशीभूत राम ने अपने जीवन में अनेकों बार ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जिनको कम शब्दों में परिलक्षित कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है। ऐसे ही उन्हें नहीं पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम कहा गया है।
राम एक ऐसे भूलभुलैया के समान है कि आप जितना राम को जानने का प्रयास करेंगे राम को आप और उतना ही बड़ा होता हुआ पायेंगे। राम को लिखना इतना आसान नहीं, आप किस राम को परिभाषित करेंगे। राम को परिभाषित करने के लिए आपको वास्तव में एक साधक बनना पड़ेगा तभी राम को लिखना संभव है ।
“यदि राम को लिखना इतना आसान होता तो आज हर कोई तुलसीदास होता”
आज के इस बदलते युग में राम का अनुगामी बनना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि राम जीवन का मूल है, आज के समाज में अनवरत हो रहें मूल्यों के क्षरण को रोकने का एक मात्र मार्ग केवल व केवल राममय होना ही है । परन्तु आज के समाज के भयावह असंतुलित आचरण से निजात पाने के लिए सबसे उत्तम और सर्वथा उचित कार्य है राम को आत्मसात करना।