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कविता – राम

Posted on January 20, 2024

अविनाश पाण्डेय, वाराणसी

राम तुम प्रसंग से परे नहीं हुए कभी

अट्टहास रावणों के ध्वनित हो रहे अभी।

देव, दानव, मनुज के अब रूप दिखते एक हैं

भ्रमित, उद्वेलित व कुंठित नीतियों के श्लोक हैं

प्रतिस्थापित हो पुनः मर्यादा, पुरुष, उत्तम सभी

राम तुम प्रसंग से परे नहीं हुए कभी…

भाव-रस से सिक्त, मीठे, भीलनी के बेर चिन्हित

शैलरूपी है अहिल्या, धीर क्षीण है ना किंचित

नयन जोहें बाट, पूरित अश्रु भी हैं स्नेह भी

राम तुम प्रसंग से परे नहीं हुए कभी…

युग फिरा, है ढीठ किंतु सिन्धु की लहर प्रबल

राह विस्मृत, ध्येय धूमिल, मन अचेतन है विचल

साध शर कोदंड, हो संधान मानस रोध भी

राम तुम प्रसंग से परे नहीं हुए कभी…

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