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कविता – राम

Posted on January 20, 2024

© दयाशंकर तिवारी,

वरिष्ठ साहित्यकार, मऊ

लछिमन सीता संग गये बन दशरथ राज दुलारे राम।

केवट उतराई भरपाई भव से पार उतारे राम।

जूठे शबरी बेर भी खाये नारि अहिल्या तारे राम।

मित्र बना सुग्रीव पवन सुत बालि को पहुंचाये सुरधाम।

गीधराज को गोद में लेकर अविरल अश्रु बहाये राम।

अनगिन राक्षस रावण बध कर महि का भार उतारे राम।

लंका राज विभीषण को दे रघुकुल रीति निभाये राम।

चौदह बरस बिता कर बन में फिर से अवध पधारे राम।

पुलकित हुई अयोध्या नगरी जन मन को अति प्यारे राम।

राम राम सर्वत्र राम मय जब से राज सम्हारे राम।

दीन हीन जो दुखी पुकारें मिलते बांह पसारे राम।

विपदा में भी नहीं बिसारें देते सदा सहारे राम।

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