लेखिका – अनु
हमारे गांव के मुन्शी चाचा की बतकही बहोत मशहूर है, जिस दुआरी पर शाम में बैठ जाएंगे वहां हर उम्र का जमावड़ा हो ही जाएगा। रामायण, महाभारत आदि अनेक ग्रन्थों को उनकी बोली में सुनने का आनन्द ही कुछ और था। एक दिन लगे रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड को बताने । सुनिए उनकी बोली में–
अरे त भईया जब हनुमान जी राम जी से अज्ञां लेके लंका पहुंचलें अ सीता जी से अशोक वाटिका में मिल के आशिर्वाद ले लिहलें ओकरी बाद से उनके लग गईल भूख, देखलें कि एतना सुन्दर बगइचा,एक से एक फल, फूल भूखिया बढ़त जात रहे त कहलं कि “माता आदेश द बहुत भूख लगल बा तनी पेटवो भर जाई घुमियो लेइब, सीता जी कहलीं कि “ना बेटा बहुत भयावन व ताकतवर राक्षस कुल बाटं एहीजा तोहके मार डलीहें । अब त भईया हनुमान जी के भीतर मचल कुलबुली, कहलं कि माता बस आज्ञां देईं । आज्ञां पाके अशोक वाटिका में घुम -घुम पेड़-पालो उखाड़े लगलें, खाए लगलें, अ जउन राक्षस पहरेदरवा कुल रोकलअं कि ना उनके धई के दोहर घललअं,चललअं कुल भाग, जाके रावण के बतवलअं ,कि एगो बानर आईल बा वाटिका उजाड़त बा, रवणवां अपने औरी लोगन के फिर लइका के भेजलस त मार घललअं फिर गोसिया के अपने भयवा मेघनाद के भेजलस इनहुं क हालत खराब, राम जी की किरपा से हनुमान जी के राक्षस कुल का कर पवतअं । ए भयवा, जेतने कुल जाएं न त चाहे घाही हो जाएं चाहे खतम क घालें। अब त मेघनदवा के बरल गोस्सा, रवणवां के आदेश से ब्रम्हास्त चलइबे त कईलस, अब हनुमान जी सोचलं कि ब्रम्हास्त्र से ना गिरथ हईं त एकर अपमान होई, चुपचाप गिर गईलअं, फिर कुल पकड़ के ले अईलें रावण की लग्गे। पूछलस रवणवां कि “बानर होके तु एतना उत्पात मचवले ह, हनुमान जी कहलअं कि अरे हजूर हम हईं बानर, लगल ह भूख त कुछ खईलीं हं, अ कुछ बानर होखले की नाते पेड़-पालो तोड़ दें लीं हं, अउरी जे हमके मरलस ओके मरलीं ।
खैर कुल बहुत कहा सुनी भईल त रवणवा कहलस कि बानर क पूछिए कुल होला एही मे आग लगा दीहल जा, हनुमान जी मुस्किआ के समझ गईलं कि माई शारदा काम त क देहली। नगर क कुल कपड़ा, घी, तेल खतम हो गईल पूंछ बांधे में, अ जइसहीं आग लगावल गइल पूंछे में कि ना, हनुमान जी सोने के बनल लंका नगरी के एक-एक छते प कूदे लगलें, मचल हल्ला, मय रक्षसवा , मेहरारु, लईका हाहाकार करे लगलें, लंका धू-धू जरे लगल, राक्षसी कुल कहें लगलीं कि इ त बानर नाई बा कउनो देवता बा, साधु क अनादर भईल, बड़ा जुलुम भईल ए दादा, लंकावासी त्राहि-त्राहि कके हाथ जोड़े लगलं के अब कहीं फोटो में भी बानर देखल जाई त दूरवे से गोड़ लागल जाई।
अ सबसे बड़ बात इ समझअ ये भईया कि जेकरे उपर राम जी क हाथ ओकर कबो न बिगड़े काज। कहले क मतलब कि लंका जर गईल बाकी विभिषण के घर पर आंच ना आईल काहें कि उ राम जी क पुजारी न रहलअं । त भईया जे अपने परिवार, समाज, कुल के मर्यादा में रही, जे संस्कार, सभ्यता, धर्म, कर्म के समझी उहे न राम क भक्त रही।
त भईया हनुमान जी के एतहत बड़ आशिर्वाद बा कि राम जी के मनावें के होंखे त इनही क नाम ले ल बेड़ा पार हो जाई।