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कविता – सब देखते रह जाएंगे

Posted on January 20, 2024

डॉ नमिता राकेश

उपनिदेशक, भारत सरकार, वरिष्ठ साहित्यकार

हे राम !

तुम तो पुरुषोत्तम हो

जो तुम पर सवाल उठाएं

वो उत्तम कैसे हो सकते हैं

तुम्हारा नाम लेकर

जब

पत्थर तैर जाते हैं

तो

ये सवालिया लोग

क्यों नहीं तैर पाते ?

यानी

तर जाते ?

क्या ये लोग

पत्थर से भी ज़्यादा

पथरीले  हैं ?

कहते हैं

रस्सी आवत जावत से

सिल यानी पत्थर पर

निशान पड़ जाते हैं

और

पत्थरों की शिराओं में

दबी पड़ी नमी से भी

अंकुर फूटते देखे गए हैं

फिर ये लोग तो

पत्थर से भी ज़्यादा

पथरीले होंगे

तभी तो

राम पर आस्था नहीं रखते

जब

ये लोग

राम को जानते ही नहीं

तो भला

मानेंगे कैसे

अरे

राम तो राम हैं

कोई उन्हें माने ना माने

जाने ना जाने

राम को फ़रक नहीं पड़ता

राम सारे सवालों से परे हैं

राम तो एक विश्वास हैं

कितने दिलों की आस हैं

श्रद्धा की सुवास हैं

एक अद्भुत इतिहास हैं

अब

जब

राम

अपने सिंहासन पर

 विराजने वाले हैं

तो

जाने कितनों के सिंहासन

डोलने लगे हैं

जो कबूतर उड़ाते थे

उनके

हाथों के तोते उड़ने लगे हैं

उनकी सारी सांठ गांठ

कुत्सित चालें

कुत्सित योजनाएं

धरी की धरी रह जाएंगी

जब

राम की सवारी आएगी

जब

राम लला विराजेंगे

ढोल ताशे बाजेंगे

तब सब कुछ

राममय हो जाएगा

जीवन सुरभित हो जाएगा

बस

राम ही राम होंगे

और कुछ नहीं

हमारी

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

के सरताज

मर्यादा पुरुषोत्तम राम

जब पूरे लावलश्कर के साथ

अयोध्या में पधारेंगे

तो बस

एक ही नाम सुनाई देगा

राम राम राम राम

जय श्री राम

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