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कहानी – ऐसा प्यार कहाँ – भाग एक

Posted on January 18, 2024

डॉ रचना सिंह, आगरा

बारिश होने की वजह से आज ठंड जादा थी सर्द हवा के साथ गलन से कंपकपी बढ़तीं जा रही थी चारों ओर पसरा सन्नाटा और धुंध रूक-रूककर कुत्तों के भौकनें की आवाजों ने रात को और डरावना बना दिया था।तेज कदमों से चलते नीरज ने कसकर मधु का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था वह जल्दी से आटो स्टेंड पहुंचना चाहता था, वह मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि समय से स्टेशन पंहुचकर दिल्ली जाने वाली गाड़ी में बैठ जाए घड़ी पर नजर डाली रात के ३:१५बज रहे थे मधु बस थोड़ा और तेजी से चलों मधु मन ही मन सतरंगी सपनों को साकार होते देख बहुत खुश थी अपनी शाल को खींचकर अच्छे से लपेटकर नीरज के साथ उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम बढ़ा रही है। अंदर ही अंदर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा रही थी ।

तभी सामने से पुलिस की जीप आते देख नीरज और मधु को लगा है पुलिस दोनों को पकडने आई है, यह सोचकर हाथ पैर कांपने लगे उसे लगा अब वह और मधु अलग न हो जाएं फिर ।

नीरज ने.हाथ दबाकर मधु को इशारा किया, अगले पल अपने आपको सम्भालतें हुए आराम से चलने लगा। रात के सन्नाटे को चीरती हुई हूटर बजाती पुलिस की गस्ती जीप की आवाज से कानो में पड़ी, जब तक नीरज और मधु कुछ समझ पाते तब तक जीप बगल में आकर रूकते ही एक कड़क आवाज आई, “ऐ रुको”, मधु की चीख निकलते-निकलते रह गयी । नीरज के माथे पर पसीना आ गया सामने जीप से एक सिपाही उतरकर आया । “दरोगा जी पुछ रहे है इतनी रात में तुम दोनों सड़क पर क्या कर रहे.हो?” नीरज दरोगा जी के सामने हाथ जोड़कर चापलूसी के भाव बोला सरकार हम अपनी घरवाली के साथ दिल्ली जा रहे है, पांच बजे की गोमती ट्रेन पकड़नी है। सामने टैम्पो स्टेंड है बस वहीं से टैम्पो पकड़ने जा रहे है । “यह साथ में कौन है”, जवाब दिया, “सरकार यह हमारी घर वाली है।” मधु ने यह सुनकर शाल को ठोड़ी से.और नीचे खीच लिया और हिम्मत कर के बोली,”साहब हमारी ट्रेन छूट जायेगी”, सिपाही, “तुम चुप रहो साहब ने तुमसे पूछा?” दरोगा जी नीरज का चहेरा ध्यान से देखते हुए बोले, “इतनी कड़ाके की सर्दी में तुम्हारे माथे पर पसीना!”, “सरकार हम मजदूर आदमी है मेहनत करते है पैदल चलकर आये हैं इसलिए पसीना है”, नीरज ने जेब में हाथ डालकर टिकट निकाल कर दरोगा जी को दिखा दी । दरोगा जी ने आश्वस्त होते हुए जीप स्टार्ट करने को बोला, इंजन की आवाज इतनी तेज और डरावनी लगी कि मधु नीरज से एकदम सटकर खड़ी हो गयी । नीरज मधु का हाथ पकड़कर तेजी से चलने लगा, वह जल्दी से स्टेशन पहुंचना चाहता था । एक आटो वाले को झकझोरते हुए बोला, “भाई घंटाकर चलोगे!”, आटोवाले ने कम्बल को खीचते हुए कहा, “सोने दो बहुत जोर की ठंड लग रही है। ”अब क्या होगा नीरज घड़ी देखते हुए बोला, “हमारे पास एक घंटा है मधु अगर आज नही जा सके तो हम कभी नही मिल पायेगें”

“भईया जरा चले चलो हमारी तबियत खराब है, कल दिल्ली के बड़े अस्पताल में डॉक्टर को दिखाना है, तुम्हारा बड़ा अहसान होगा” मधु ने बड़ी मासूमियत से बोला, कम्बल में पैरों को समेटते हुए आटो वाले ने पूछा, “क्या टाइम हुआ है?”, “पौने चार बजे हैं।”, “अच्छा रूको” आँखें मलते हुए आटो वाला उठकर कम्बल तय करते हुए बोला, “10 मिनट दो मै जरा हाथ मुँह धुल लूँ तब तक तुम सीट पर बैठो, लेकिन भाई किराए के अलावा 50 रुपया जादा चाहिए।“ “ठीक है भाई पर जल्दी चलो नही तो हमारी गाड़ी छूट जायेगी”  नीरज ने राहत की सांस ली और मधु के साथ सीट पर बैठ गया ।  आटो वाला अपेक्षा से पहले ही आ गया और आटो स्टार्ट करने लगा नीरज मधु से और सटकर बैठ गयी, मधु की दिल की धड़कन बढ़ गयी बस कुछ देर और हम स्टेशन पहुंचने वाले है ।

नीरज ने अपनी आँखें मधु की हिरनी सी कजरारी आँखो में झांकते हुए एक दूसरे में इतना खो गये कब रास्ता गुजर गया पता ही नही चला ।

तभी आटो वाले ने आवाज दी, “लो भईया स्टेशन आ गया है”, “तुम एक नंबर पर उतार दो यह लो तुम्हारे किराया”, 250 रुपये देते समय नीरज ने धन्यवाद किया और भारी भरकम बैग कंधे पर टांगने लगा । आटो वाले ने 50 रुपये.वापस करते.हुए बोला मेरा किराया 200 रुपया था तुम शरीफ और जरूरतमंद हो रख लो। जल्दी से नीरज टिकट दिखाकर गेट पर खड़े काले कोट वाले से पूछा, “गोमती कितने नंबर पर है!” उत्तर मिला, “चार नबंर पर लगी है” ।

हाँफते हुए डिब्बे में मधु और नीरज चढ़ गये । अपनी सीट ढूंढने लगे, तभी सीटी की आवाज आई और गाड़ी प्लेटफार्म पर रेंगने लगी मधु ने भगवान का मन ही मन धन्यवाद किया ।

“मधु इधर आओ, हमारी सीट ये रही” नीरज ने कहा । दोनो सीटें आमने-सामने थी, सामान रखकर दोनो ने राहत की साँस ली और ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली । सर्दी बहुत थी सवेरे के छ: बजने वाले थे लेकिन धुंध की वजह से अंधेरा छाया था तो लोग कम्बल और शालों मे सिमेट कर बैठें थे । लभगभ सभी सो रहे थे बाकी एक दो उंघ रहे थे।

मधु अब चिंता की बात नही तुम सो जाओ

नीरज  तुम भी सो जाओ थक गये होगे हाँ कोशिश करता हूँ नीरज आंखें बंदकर बीते हुए कल को सोचने लगा ……

शेष अगले अंक में …….

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