साहित्य का अनोखा यात्री
समकालीन साहित्य जगत के प्रसिद्ध संपादक, कथाकार, उपन्यासकार और व्यंग्यकार से. रा. यात्री जी का विगत 17 नवम्बर, 2023 को लम्बी बीमारी के बाद 91 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया । सेवा राम यात्री जी की साहित्यिक यात्रा बहुत बड़ी है । इनका जाना साहित्य की एक यात्रा का समाप्त होना है ।
साहित्य श्री, साहित्य भूषण, महात्मा गाँधी साहित्य सम्मान से सम्मानित यात्री जी का रचना संसार बहुत बड़ा है । वर्तमान हिंदी साहित्य जगत में शायद ही कोई ऐसा रचनाकार होगा जिसकी साहित्यिक साधना ने रचनाओं का एक विशाल समुद्र निर्मित कर दिया हो । दराजों में बंद दस्तावेज, लौटते हुए, कई अँधेरों के पार, अपरिचित शेष, चाँदनी के आरपार, बीच की दरार, टूटते दायरे, चादर के बाहर, प्यासी नदी, भटका मेघ, आकाशचारी, आत्मदाह, बावजूद, अंतहीन, प्रथम परिचय, जली रस्सी, युद्ध अविराम, दिशाहारा, बेदखल अतीत, सुबह की तलाश, घर न घाट, आखिरी पड़ाव, एक
जिंदगी और, अनदेखे पुल, कलंदर और सुरंग के बाहर समेत कुल 33 उपन्यास, 1971 ई में “दूसरे चेहरे” नामक कथा संग्रह से प्रारम्भ इनकी कथा सरिता में केवल पिता, धरातल, अकर्मक क्रिया, टापू पर अकेले, अलग-अलग अस्वीकार, काल विदूषक, सिलसिला, अकर्मक क्रिया, खंडित संवाद, नया सम्बंध, भूख तथा अन्य कहानियाँ, अभयदान, पुल टूटते हुए, विरोधी स्वर, खारिज और बेदखल और परजीवी समेत 18 कथा संग्रह जुड़े जिसने लगभग 300 कहानियों का सागर बना दिया । किस्सा एक खरगोश का और दुनिया मेरे आगे जैसे दो शानदार व्यंग्य संग्रह रच कर हिंदी व्यंग्य साहित्य के सूनेपन को खत्म किया । संस्मरण विधा भी इनकी यात्रा से अछूती नहीं रही जिसका प्रमाण इनका संस्मरण लौटना एक वाकिफ उम्र का है ।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर के गाँव जड़ोदा में जन्मे सेवा राम यात्री जी ने अपने जीवन को अपने शर्तों पर जिया । इनके हाईस्कूल की एक घटना काफी रोचक है और जीवन को अपने ढंग से चलाने की इनकी प्रतिभा का प्रमाण भी देती है। यात्री जी का मूल नाम था सेवा राम अग्रवाल, जो इन्हें तीन शब्द का होने के कारण विशेष प्रिय न था सो जब आप हाईस्कूल का फॉर्म भर रहे थे तो अपने मन से बिना किसी को बताये उसमे सेवा राम यात्री कर दिया । परीक्षा हुई और कुछ दिनों बाद रिजल्ट भी आये । उस समय रिजल्ट अख़बारों में आता था । इनके विद्यालय की सूची में घरवालों ने अपने सेवा राम का नाम बहुत ढूंढा । जब नाम न मिला तो सब आगबबुला हो गये । मनमौजी सेवा राम जी घर पहुंचे तो वहां हंगामा बरपा था । इन्होने अख़बार उठाया और अपना नया परिवर्तित नाम सूची में दिखाया । पास होने के बाद भी इस हरकत की वजह से पिता जी से बहुत डांट पड़ी । जो बच्चा बिना घर में बताये
अपने नाम तक बदल ले उसके साहस की गणना पाठक स्वयं ही कर लें ।
यात्री जी कभी गाड़ी या किसी भी वाहन से गाज़ियाबाद की सड़कों पर न चले । साहित्य के इस सच्चे, अनथक यात्री ने पैदल अपने क़दमों से ही गाज़ियाबाद की सड़कें नाप दीं । वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जयप्रकाश धूमकेतु जी इनके पैदल यात्रा को जैसे स्केच करते हुए कहते हैं कि सड़क पर जब ये चलते थे तो इनके झोले में किताबों के साथ-साथ रोटियां भी रहती थीं । जो ये सड़क के कुत्तों को खिलाते चलते थे । ऐसे में इनकी पैदल मंडली में श्वान दल स्वयं ही शामिल हो जाता था । ऐसे मानवीयता के साक्षात् बिम्ब थे से रा यात्री जी ।
वर्तमान साहित्य पत्रिका के सम्पादक के रूप में इन्होने संपादकीय जीवन के साथ भी अपने परिश्रम के द्वारा न्याय किया । अपने मित्रों व परिचितों के हर सुख-दुःख में ये अवश्य जाते थे।
और अंत में इसे हिंदी साहित्य जगत का दुर्भाग्य ही कहें कि प्रेमचन्द से लेकर मुक्तिबोध तक के जीवन के अंत के समय जैसे शायद उनका अपना रचना संसार ही उन्हें भूल सा गया । वही यात्री जी के साथ भी हुआ । ये लम्बी बीमारी से जूझते रहे और समकालीन साहित्यकार अपनी दुनिया में मस्त बने रहे ।
पर साहित्य और मानवता के इस अद्वितीय यात्री ने इतना लम्बा और शानदार मार्ग बना दिया है कि आने वाले समय में साहित्य के पथिक इस राह पर स्वयं को कभी अकेला नहीं पाएंगे, सड़क हो, जीवन हो, रचनाधर्मिता हो हर जगह से. रा. यात्री जी एक सहयात्री बनकर उस पथिक के साथ चलते रहेंगे ।