© मनीष उपाध्याय, मऊ, उत्तरप्रदेश
गिद्ध,गौराया,तितली और चीता की तरह
विलुप्त होता जायेगा प्रेम भी।
पर्व, उत्सव, उमंग, उल्लास
अब बस किताबों में मिलेंगे
ओझल हो जायेंगे रिश्ते-नाते, सगे-संबंधी सब
डार्विन कहता है कि हम आगे बढ़ती दुनिया में
जानवर से इंसान में परिवर्तित हुए।
मैं इस सिद्धांत को कुछ ऐसे समझता हूं
कि विकास के क्रम में-
हमारा शरीर जानवर से इंसान बना
जबकि मानसिकता इंसान से जानवर बन गई।
हमने छल किया है
अपने पुरखों के सहेजे संस्कारों के साथ
हमने नैतिकता, मानवता, प्रेम और परोपकार को
बारूदों के प्रभाव से बने मलबों के ढेर से तौला है।
जिन बातों पर आनी चाहिए हमें शर्म
उन बातों का-
हमने उपनिषदों की तरह प्रचार किया है।
जिन अमानवीय प्रवृत्तिवों का उन्मूलन कर
उनका नाश करना था, हमने उनका प्रसार किया है।
ये दुनिया जो धर्म, सिद्धांत, गीत, साहित्य,
दर्शन और रचनात्मकता से भर सकती थी,
उसे हमने युद्ध, क्रूरता, बलात्कार, हत्या,
छल, प्रपंच, धमाकों और पीड़ाओं से भर दिया है।