© अश्वनी अकल्पित, नयी दिल्ली
हाथ ने कलम थामी है,
नोक पन्नों पर रखी है
ना जाने कितनी बातें,
विचार, कहानियां, इच्छाएं
शब्द-सागर में डूबने को आतुर हैं –
पर कागज से कलम तक का ये सफर
इतना आसान नहीं है
बीच में आ घेरते हैं
ना जाने कितने अंतर्द्वंद
काव्य-सरिता के बीच
खड़े हो जातीं हैं बांध बनकर
ना जाने कितनी समीक्षायें और आलोचनाएँ
और फिर –
इन बंधनों के भंवर में
छटपटा कर दम तोड़ देती हैं
ना जाने कितनी कवितायेँ !