© डॉ सौरभ श्रीवास्तव
नेता जी जनसमूह को संबोधित कर रहे थे, “मैं आप लोगों के साथ हमेशा खड़ा हूँ, आप लोग बस मेरे साथ खड़े रहिये, मैं इस राज्य के मुख्यमंत्री जी से पूछना चाहता हूँ कि इन मासूम शिक्षकों का क्या दोष है जो इन्हें इनका पूरा हक़ नहीं मिल रहा है।” शिक्षक समूह ने पुरे हर्ष के साथ इस भाषण का स्वागत किया और नेता जी का साथ देने का वादा किया ।
एक दिन नेता जी ने शिक्षकों को आन्दोलन के लिए आमंत्रित किया, नेता जी ने आमरण अनशन के लिए मंच की व्यवस्था की और अपने दो-चार चापलूस चेलों को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गये । हालाँकि नेता जी के चेलों ने खाने-पीने की व्यवस्था कर रखी थी ताकि नेता कहीं मांग पूरी होने से पहले स्वर्ग न सिधार जायें, परन्तु ऐसा हुआ नहीं । संयोगवश मुख्यमंत्री जी का चुनावी कार्यक्रम उधर ही होना था तो मुख्यमंत्री जी घूमते-घामते आमरण अनशन स्थल पर पहुँच गये, नेता जी को जूस पिलाकर आमरण अनशन खत्म किया और वादा किया कि शिक्षक हित में कार्य किया जायेगा । प्रत्येक शिक्षक की तरफ से नेता जी को बधाईयाँ आने लगीं । नेता जी कद और सम्मान थोड़ा और ऊँचा हो गया ।
माननीय मुख्यमंत्री जी का कार्यक्रम होने वाला था और आज मुख्यमंत्री जी काफी बड़ा ऐलान करने वाले थे । नेता जी भी आज अपने पूरे यौवन में थे आज उन्ही की बदौलत शिक्षक समुदाय का उद्धार होने वाला था, चारों तरफ लोगों का शोरगुल था । जय-जयकार के नारे लग रहे थे । मुख्यमंत्री जी ने खुला ऐलान किया, “ आज से शिक्षकों का वेतन चपरासी की तुलना से बढ़ाकर विद्यालय के बाबू के बराबर किया जाता है । हमने अपना वादा पूरा किया, आपको आपका सम्मान हमने दे दिया क्योंकि आप इसके हकदार हैं । शिक्षक समुदाय ने पूरे हर्षोल्लास से इस फैसले का स्वागत किया । मुख्यमंत्री तथा नेता जी पूरे जोश से हाथ हिला रहे थे और समूची जनता आभार प्रकट कर रही थी ।
मुख्यमंत्री जी का कमरा धुंए और गंध से भरा था, सामने नेता जी कुटिल मुस्कान के साथ मुख्यमंत्री जी को देख रहे थे और मुख्यमंत्री जी भी हलकी मुस्कान के साथ नेता जी को देख रहे थे । अचानक नेता जी ने कहा, “देखा साहब! मैंने कहा था न बाबू के बराबर वेतन वाली चाल चल जायेगी ।” इसी के साथ मुख्यमंत्री जी ने मंत्री पद वाले आदेश-पत्र पर हस्ताक्षर किया और नेता जी की तरफ बढ़ा दिया । सब कुछ बदल चूका था सिवाय कमरे में भरे धुंए और गंध के ।