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नाटक :- हम याद बहुत आएंगे

Posted on October 11, 2023

प्रसिद्ध रंगमंच निर्देशिका चित्रा मोहन जी का भारतेंदु बाबू को समर्पित मौलिक नाटक “हम याद बहुत आएंगे”

आदरणीया चित्रा मोहन जी प्रख्यात व वरिष्ठ रंगमंच निर्देशिका व प्रवक्ता हैं । आप भारतेंदु नाट्य अकादमी से सम्बद्ध रही हैं ।

“हम याद बहुत आएंगे” महान नाट्यकार व आधुनिक हिंदी के प्रणेता भारतेंदु बाबू को समर्पित आपका मौलिक नाटक है । नाट्य-कला को समर्पित वीथिका के इस मंच पर इस अद्भुत, संगीतमयी नाटक का अंतिम अंक आप पाठकों के सम्मुख है ।

पात्र परिचय

भारतेंदु बाबू उम्र (समयानुसार 28 से 35 वर्ष तक)

लड़की -1- कोरस (नयना )

इशिता – 26 साल (ये भी दृश्यानुसार मन्नो देवी की भूमिका में भी)

चौबे पंडा: उम्र – 50

कोरस: ५ से ६ जनों का

मन्नो देवी: (रुक्मिणी/ललिता की भूमिका)

मल्लिका: (चंद्रावली / राधा )

लड़की – 2 – (सुमुखि) कोरस –

(शोहदा, लाला, सोहा आदि कोरस से ही भूमिकाएं करेंगे)

कोरस: अरे मियां गुस्सा छोड़िये और फरमाइये कुछ अपनी भी।

शोहदा (लखनऊवा): आक्रोश से—.

सान सौकत तेरे असिक की मेरी जान जे है

जान देंगे तेरे दरवज्जे पे तेरे आसिक का अरमान जे

कही सुहदे  भी पिचकते हैं, बिना जूते लातों के

आ तो डट जा, खम ठोंक के,इसक का मैदान जे है।

भारतेंदु: हुआ तो और भी बहुत कुछ लेकिन सबकी रें रें के पीछे एक नये ढंग के शायर, कबरिस्तान के फकीर, मरघट के बाम्हन एक नई अनोखी चाल की शायरी ले उठे। रेखती-फेखती सबसे अलग, मरसिये का भी चचा कहिये माशूक ही को कोसने लगे

कबरिस्तानी टाइप शायर:

फिर उन्हें हैजा हुआ, फिर सब बदन नीला हुआ

फिर  न आने का मेरे घर में, नया हीला हुआ

कहरे हक (ख़ुदा का कोप) नाज़िल (उतरा) हुआ,

पत्थर पड़े वो मर गए।

फिर उन्हें आया पसीना सब बदन गीला हुआ।

कैसरे हिन्दोस्तों अब जान इसकी बख्श दो,

देख लो रंजिश से सब, इनका बदन पीला हुआ।

भारतेंदु: का बताएं हम तो दूर से देख रहे थे इनको, दरअसल मन तो हमारा भी था कि कुछ कहते

कोरस: अरे तो कथा-कहानी चल ही रही है। तब न सही अब कहिये बाबू जी।

भारतेन्दु: हम क्या कहें? हमारा पूरा प्रयास है कि हिंदी राष्ट्र भाषा बने, निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। बनारस के इस घाट पर बैठ कर कितनी गोष्ठियां की हमने। कल-कल बहती गंगा की धारा हमारे मन को बहाये लिए जाती है। हम आज हैं कल नही होंगे, पर ये बनारस का घाट ये बहती गंगा और संभवत: कुछ हमसे प्यार करने वाले हमारे पीछे रह जाएंगे। शायद हम उन्हें बहुत याद आयेंगे

(बोलते-बोलते मूर्ति के पीछे चले जाते है पूरा कोर्स फ्रीज़ हो जाता है। इतिशा मेज के पास खड़ी पुस्तक को बंद कर देती है, फिर चलते हुए भारतेंदु जी की मूर्ति के पास आती है। )

इतिशा: बाबूजी, भारत के सिरमौर, भारत-भाल के इंदु भारतेंदु बाबू, इतनी कम उम्र ?  मात्र 35 वर्ष लगभग नहीं-नहीं ३४ वर्ष ३ महीने २७  दिन, १७ घंटे ७ मिनट और ४८ सेकेन्ड ही जिये आप। इतने समय में क्या-क्या नहीं लिखा? इतना समय कैसे निकाल लेते थे आप ?  एक मैं हूँ आप पर रिसर्च करते तीन साल हो गये, पर लगता है आजीवन आपको, आपके व्यक्तित्व और कृतित्व को पूरी तरह से कभी नहीं समझ पाऊँगी ?

(संगीत मुखर होता है, बहुत बीमार से  भारतेंदु मूर्ति के पीछे से निकल कर आते हैं। वे लगातार खाँस रहे हैं)

भारतेंदु: (खांसते खांसते) मुझमें ऐसा था ही क्या, जो तुम नही समझ पाई ? एक साधारण इन्सान, जिसने साहित्य की सेवा करनी चाही, जिसने चाहा कि जिस धन ने उसके पुरखों को खाया उसे वह खा जाये, जिसने अपना पूरा जीवन लेखन, पत्रकारिता काव्य-नाट्य, और भी गद्य पद्म की तमाम विधाओं में होम कर दिया, जिसने हिंदी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए पीछे मुड़ कर नहीं देखा। जिसने केवल एक गुनाह किया वो गुनाह था, मल्लिका से प्रेम करना। हमने अपनी पत्नी मन्नो का दिल दुखाया। उसने बहुत सहन किया, हमको, हमारी आदतों को, हमारे कर्ज़ों के बोझ को भी सहा । हमारे खुले हांथ खर्चा करने की, लोगों की सहायता करने की आदत हमारी मुफलिसी में हमारा मज़ाक बनाएगी ये हमने कहाँ सोचा था ? (खांसते है – कोने में रखी कुर्सी पर बैठते हैं।)

(संगीत तेज होता है, कोरस दूसरी ओर एक चौकी और तकिया रख कर उसे बाबू जी के शयन कक्ष का रूप देता है और दूर जा कर बैठ जाता है, करुण संगीत उभरता है।) 

भारतेंदु: देखो सूर्य का उदय हो गया (खांसी आती है, इतिशा पानी लाने को मुड़ती है तो वे मना करके रोक देते है) अहा – इस की शोभा इस समय ऐसी दिखाई पड़ती है मानो अंधकार को जोतने के लिए दिन ने ये गोला मारा हैं या आकाश में कोई बड़ा लाल कमल खिला है? या काल के निर्लेप होने की सौगन्ध खाने वाला तेज का गुबार है, या आने वाली काली रात का संकेत देने वाला गजर का घंटा है –

(बुरी तरह खांसते-खांसते बेदम होकर अपने बिस्तर तक जाते हैं और निढाल हो गिर पड़ते हैं। इतिशा दौड़ का उन्हें ठीक से लिटाती है और  गले तक चादर ओढ़ाती है। )

(संगीत मुखर होता है, भारतेंदु (गा उठते हैं) दूसरी ओर कोर्स दृश्य बनाता है और नृत्य आवर्तन आरम्भ होता है।)

नखरा राह-राह को नीको।

दूर तो प्रान जात हैं तुम बिन,

तुम न लखत दुख जीको ।

धावहु वेग नाथ करुनाकर,

करहु मान मत फीको ।

हरीचंद अब प्रस्थान की बेला।

मैं सुमरौ बस तुम ही को।

(गाते-गाते खांसते हैं कोरस नृत्य मुद्रा में फ्रीज होता है, भारतेंदु के पलंग से दूर मन्नो देवी (पत्नी) खड़ी हैं, कोरस में से कोई एक पूछता है।)

कोरस १ : बाबू साहब कई बार बीमार हुए पर भाग्य अच्छे थे कि स्वस्थ होते गये। 

कोरस २ : सन १८८२ में जब महाराजा साहिब, उदयपुर से मिलकर जाड़े के दिनों में लौटे तो रास्ते में बीमार हो गए।

कोरस ३: बनारस पहुँचने के साथ ही श्वास रोग से पीड़ित हुए। 

कोरस ४: रोग दिनों-दिन अधिक होता गया। महीनों बाद लगा कि शरीर अच्छा हो गया परन्तु रोग जड़ से नहीं गया

(इसी बीच एक दूसरे स्पॉट  में मल्लिका दिखाई देती है।)

मल्लिका: रोग का क्या है? तन से अधिक मन का रोग लगा बैठे बाबू जी आप। कितना समझाया पर आप सा हठी नहीं देखा। रह-रह कर रोग उमड़ आता, फिर शांत होता क्योंकि औषधि चलती रही। इधर दो महिने से श्वास चलता रहा,परन्तु आपने अपना ध्यान नही रखा, कभी-कभी ज्वर का आवेश भी हो जाता (संगीत)

मन्नो देवी: औषधि तो होती रही परन्तु शरीर कृशित होता गया लेकिन ऐसा नहीं था कि किसी काम में हानि हो, जब श्वास अधिक चलने लगा तब पता लगा कि क्षय रोग ने धर लिया है (करूण संगीत ) एकाएक दूसरी जनवरी से बीमारी बढ़ने लगी (सहसा भारतेंदु कराहते हैं, बुरी तरह खांसते हैं सब उनकी ओर दो कदम बढ़ कर रुक जाते हैं।) 

(मल्लिका छटपटाती है, उनकी ओर हाथ बढ़ाती है परंतु दूरी होने के कारण विवश सी रोते हुए बैठ जाती है।)

(गाती है)

गीत:

प्राननाथ मन मोहन प्यारे बेगहि मुख दिखराओ ।

तलफ़त प्रान मिले बिनु तुमसों,

क्यों न अबही उठ आओ।

 (दूसरी और भारतेंदु अटक-अटक कर बोलते हैं)

भारतेन्दु:

जानत भले तुम्हारे बिनु सब बादहिं बीतत साँसें।

हरिचंद नहीं छूटत तऊ यह कठिन मोह की फाँसें।

(मल्लिका स्पॉट में दिखती है।)

तुम गए सूरत भूल,पाती भी भिजवाई ।

फरियाद किया पर सुध तुमको ना आई।

हरिचंद बिना भई जोगन, मैं अलबेली।

मुझे छोड़ के ना जाओ पिया हाय अकेली।

(भारतेंदु किसी तरह कुर्ते की जेब से मल्लिका का तुडा-मुडा पत्र निकाल कर पढ़ते हैं और बोलते हैं, मन्नो  दूसरी ओर खड़ी ये दृश्य देख कर क्रोध, बेचैनी और मान भरे मिश्रित भाव से उन्हें देखती है।)

संगीत का करुण आलाप गूंजता है।

भारतेंदु:

आह करेगे,तरसेंगे गम खाएंगे,

चिल्लाएंगे दीन व इमान बिगाड़ेंगे

घर बार डुबाएंगे।

(खांसी का स्वर) फिरेंगे दर-दर बेइज्जत हो आवारे कहलाएंगे

रोएँगे हम हाल कह, औरों को भी रुलायेंगे

 (मन्नो व  मल्लिका का रुदन गूंजता है।)

भारतेंदु:(किसी तरह उठ कर बैठते हैं) 

हाय-हाय कर सर पीटेंगे,तड़पैंगे कि कराहेंगे,

सहेंगे सब कुछ मुहब्बत दमतक यार निबाहेंगे

(बोलते हुए पलंग पर गिर पड़ते हैं। दृश्य फ्रीज़ होता है।)

इतिशा: (पास आती है) किताब से पढ़ कर बोलती है एकाएक दूसरी जनवरी से बीमारी बढ़ने लगी थी,  6 जनवरी बाबू जी की क्षय रोग से बिगड़ी, अंतिम दौर की दशा में, मन्नो देवी ने मजूरिन को हाल लेने ऊपर कमरे में भेजा, हाल लेने आई मजूरिन ने पूछा

कोरस1:(मजूरिन की तरह)- बाबू जी, हाल कइसन बा ? नीचे बहू जी पूछवायेन है।

भारतेंदु : जाकर कह दो अपनी बहू जी से कि हमारे जीवन के नाटक का प्रोग्राम नित्य नया छप रहा है। पहले दिन ज्वर का दूसरे दिन दर्द का तीसरे दिन खाँसी का सीन हो चुका। अब देखें लास्ट नाइट कब आती है (बुरी तरह  तड़पते है।)

इतिशा: (किताब में देखते रुंआसी सी हो उठती है) लास्ट नाइट आ ही गई थी। क्षय रोग चरम पर था, श्वास तेज था, कफ में रुधिर आ गया। डाक्टर वैद्य सब उपस्थित थे, लेकिन मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की । एक बजे रात को भयंकर दृश्य उत्पन्न हुआ। 

(करुण संगीत के साथ तड़पते भारतेंदु दिखते है। सिर झुकाये लोग खड़े है जो उनसे दूरी पर है।)

(भारतेंदु स्वप्र की सी अवस्था में पलंग से उठ कर बोलते हुए धीरे-धीरे मूर्ति के पीछे चले जाएंगे,अंतिम वाक्य के बाद)

सबकी चीख और पलंगपर पड़ी सफेद चादर सांकेतिक तौर से खींच दी जाएगी मानो वो बाबू जी का शव हो. आत्मा रूपी भारतेंदु का स्वगत सम्भाषण। इस संवाद के बीच वे मल्लिका और मन्नो दोनो के निकट जाते हैं, उन दोनो का हाथ थामे मंच के आगे एक स्पॉट में आते है।

भारतेंदु : 

होके तुम्हारे कहाँ जाएँ अब इसी शर्म से मरते है

अबतो यौ ही छोड़ इस जहाँ को हम चलते हैं

करेंगे याद हम सभी को, पर अब न लौट के आएँगे

तुम भी हमें न भूल पाओगे, हम याद बहुत आएंगे ।

( इस अंतिम वाक्य में वो दोनो स्त्रियों का हाथ छोड़ मूर्ति के पीछे समा जाते है। सब‌का रोना पीटना करुण संगीत धीरे-धीरे मंच से प्रकाश लुप्त होता है, कोरस पूर्वाभास की रूपरेखा में वापस दिखाई पड़ते हैं। कोरस ताली बजाता है।)

भारतेंदु के चरित्र वाला कोरस का अभिनेता (जो कुर्सी पर बैठा हैं बोलता है)– भई पूर्वाभ्यास तो ठीक ही रहा, लेकिन अभी कुछ दृश्यों में ओवर एक्टिंग की जरूरत नहीं थी, इसलिए आप सभी को इसका अभ्यास करना होगा। हमें भी  भारतेंदु जी के संवाद तो याद हो गए पर भारतेंदु जी के चरित्र में पूरी तरह उतरने में समय लगेगा। वैसे भारतेंदु जी के बारे में उन्हीं की पंक्तियां याद आ गई जो उनकी घनेरी ज़ुल्फ़ों को देख एकदम सही बैठती है। क्या शेर कहा है।

कोरस: इरशाद इरशाद –

अभिनेता भारतेंदु:

जुल्फ़ के फंदे तुम्हारे यार निराले हैं

दिल के पहुंचने को गालों तक कामंद डालें हैं।

जंत्र मंत्र कुछ लगेगा न उसको, जिसको इन सांपों ने डंसा।

हरीचंद के जुल्फ में दिल हमारा अब तो बेतरह फंसा ।

(सब वाह-वाह करते हैं और समवेत स्वर में बोलते हैं।)

भारतेंदु जी की मूर्ति पर प्रकाश,भारतेंदु पीछे से झांकते है और बोलते हैं,

 “प्यारे दर्शकों ! हम तो अतीत हो कर इस काल खंड में सिमट चुके, हमारी यादों के खंडहर हमारी बुलंदी के क़िस्से सुनाएंगे, अपनी-अपनी नज़र से देखेंगे लोग हमको और आने वाली पीढ़ी को हमारे बारे में बताएंगे कि हम भारत के इंदु भारतेंदु की उपाधि से विभूषित किये गए। याद रखियेगा इंदु यानि चांद बहुत खूबसूरत दिखता है, काशी के ज्योतिर्लिंग, बाबा भोले नाथ के शीश पर विराजता है, सोलहों कलाओं से परिपूर्ण भी होता है किंतु उसमें भी दाग होता है। मुझे भी मेरे अवगुणों को भूल कर याद कीजियेगा। मुझे पता है कि……..

(इतिशा ग्रंथ बंद करती है। भारतेंदु पर प्रकाश मद्धिम होता है)

भारतेंदु:

करेंगे याद हम सभी को पर अब न लौट के आएंगे

तुम भी हमें न भूल पाओगे, हम याद बहुत आएंगे, हम याद बहुत आएंगे

 (सब पर प्रकाश लुप्त होते हुए अंत में मूर्ति पर जा कर कुछ पल केंद्रित होता है। संगीत के साथ अंधकार)

समाप्त

दिसंबर 2022

चित्रा मोहन

इस नाटक के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं, बिना लेखिका की सहमति के किसी भी प्रकार का प्रयोग अनुमन्य नहीं है।

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