डॉ अनूपा कुमारी
सत्य – असत्य के बीच
उधेड़-बुन में उलझा मानव
कभी दिल तो कभी दिमाग से
बहुत कुछ सोचता है
सोचता ही रहता है
किन्तु परिणाम तक नहीं पहुंच पाता है
पता है क्यों ?
क्योंकि,
सत्य के तथ्य को
पहचानने से पहले ही
अंतिम निर्णय पर रूक जाता है
सत्ता के गलियारे में
इसका विचलन सबसे ज्यादा है
आँखें मुंदे सभी कानों सुना हीं मानते हैं
अन्वेषण की कोई आवश्यकता समझते ही नहीं
जाने कितने इसके बलि – वेदी पर टंगते हैं
न्यायकर्ता तटस्थ और निष्पक्ष हो
तभी सही न्याय संभव है
लेकिन, विडम्बना यही है
कि सबकुछ झीने आवरण में ढंका है
सत्य-असत्य के बीच
उधेर-बुन में उलझा मानव………..
Satya ki jhalak hai maam apki kavita me bhi aur apki Kalam me bhi