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कविता: मैं ऐसी ही हूं

Posted on September 5, 2023

प्रतिमा सिंह, मऊ

हां मैं बोल जाती हूं ज्यादा कभी-कभी,

क्योंकि मैं खुद को संभालना नहीं जानती।

हां मैं कर जाती हूं नादानियां कभी-कभी

क्योंकि मैं समझना नहीं जानती।

हां मैं बन जाती हूं अब भी मां,पापा के सामने बच्ची

क्योंकि मैं बड़ी होना नहीं जानती।

हां मैं रो देती हूं,बहुत जल्द

क्योंकि मैं अंदर कुछ रखना नहीं जानती।

हां मैं खुश भी हो जाती हूं बहुत जल्द

क्योंकि मैं खोना नहीं जानती।

हां मैं मान जाती हूं अक्सर

क्योंकि मैं रूठना नहीं जानती।

हां मुझे अब दोस्त-यार नहीं पसंद

क्योंकि मैं धोखा नहीं जानती।

हां हैं मुझमें कुछ खामियां

क्योंकि मैं सीखना नहीं जानती।

हां हो जाती हूं मैं कभी सोशल,प्रेक्टिकल,स्टूपिड सी

क्योंकि मैं खुद को बदलना नहीं जानती।

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