रश्मि धारिणी धरित्री
सुधिजनों को सस्नेह नमस्कार!
मैं धारित्रि धारिणी आज चौमासा और प्रकृति के श्रृंगार को देख कर आह्लादित हूँ। चौमासा, मानसून, वर्षा ऋतु, कितने अनगिनत विदुषी विद्वानों ने करोड़ों पक्तियाँ लिखी होंगी, विमर्श किया होगा। आषाढ़ -श्रावण-भादों( भाद्रपद)-आश्विन और साथ ही आते हैं हमारे तीज त्योहारों के मौसम। आगमन हरियाली का, धरती के जल संचयन का, जल स्रोतों के पुनर्जीवन का। साथ ही पधारते हैं शिव भोले गौरा पार्वती के संग।
जन-जीवन जो आदि काल से प्रकृति से जुड़ा है जिसमें कोई कर्मकांड नहीं ऐसे अवसर ढूँढ ही लेता है। अपनी इच्छा से अपनी सामर्थ्य से जिनको अर्पित करता है, वो शंकर पार्वती जन मानस में क्यों समाये हैं। तीज यानि तृतीया तिथि भारत के हर भाग में अलग अलग समय और तरीके से मनाई जाती है और हर तीज जनमानस के अनुसार शिव पार्वती के प्रेम, अनूठी तपस्या और उनके मिलन का प्रतीक होती है। जो समाज विवाह के इतने कठिन बंधनों, जाति वर्ग आधारित नियमों पर विवाह करता है, आखिर क्यों वो अपनी सहज सरल रूपी शिव पार्वती के मिलन को विवाह को पूजता है। शिव जो स्थूल रूपी हैं, तत्व हैं, पार्वती जो साक्षात शक्ति हैं प्रकृति हैं, जीवन की निरनतरता के यानि जन्म के कारण हैं, क्यूँ वरदान माँगता है। जन मानस की कथाओं में शिव का कुल जन्म परिवार सबकुछ अज्ञात है, गौरा जो सशक्त हिमालायराज की पुत्री थी, समाज के विरुद्ध जा कर ऐश्वर्य, सुख त्याग कर घोर तप करने वाली अग्रणी बन गयीं। ताकि कन्यायें अपनी चेतना से वर चुन सकें। ये तप शिव को प्राप्त करने से अधिक समाज की रूढ़ियों को तोड़ने का तप था। जो समाज कुल गोत्र सामाजिक सामर्थ्य, धन पशु देखता था, वहाँ गौरा ने सब त्याग दिया। हर स्त्री आज भी वर रूप में सशक्त स्वाभिमानी शिव को ही देखती है और कामना करती है कि ऐसा पति मिले जो सम्मान करे, अपने बराबर न केवल समझे बल्कि व्यवहार में उतारे भी। प्रेम करे तो इतना कि संसार कुछ न दिखे।
संतान हो तो गणेश कार्तिकेय जैसी जो जन मानस को मार्ग दिखाये बिना स्वार्थ के। अंचुरा बटोर के धरती पे कलश रखती कामना करती स्त्रियाँ कि अन्न जल धान्य की कभी कमी न हो। शिव गौरा में वो स्वयं को देखती हैं। घर के आंगन में भी सरलता से पूजा करती हैं, किसी पेड़ के नीचे भी शिवलिंग पे जल चढ़ा कर प्रार्थना करती स्त्री शक्ति। किसी चढ़ावे की सामग्री के बिना भी वो पूर्ण होती पूजा से निश्चिंत रहती हैं। स्त्रियाँ जिनको आदि काल से प्रकृति प्रदत्त शक्ति जो प्रजनन यानि संततियो की उत्पति का वर मिला है, स्वतः प्रकृति से जान जाती थीं कि भोजन में क्या खाने योग्य है क्या नहीं। कौन सा कंद मूल खाद्य है, कौन सा अनाज, कहाँ कब उगेगा, किस मौसम में मिलेगा स्त्रियों से अधिक कोई नहीं जानता था। पोखर तालाबों का संरक्षण, स्वतः करती ये स्त्रियाँ, जब महुआ, ढाक, कुश को पोखरा किनारे रोपती हैं, हल छठ का व्रत करके जल स्रोतों तालाब पोखरा किनारे उगने वाले तिन्नी चावल, जल में उगने वाले सिंघाड़े जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन करके न केवल उसका संरक्षण करती हैं बल्कि जो सहज सरल रूप में आदि काल से उपलब्ध भोजन था उसकी महत्ता को बचाई रखती हैं। हल को रख देने की परंपरा, ताकि जिस मिट्टी से साल भार अनाज उगता है उसको सम्मान दें , जल में उगने वाला भोजन खाना। ये सब भी तो प्रकृति का संरक्षण है। बैल जो संतान समान था (कुछ साल पहले) तक उसके लंबी उमर की कामना अपनी संतान के साथ करना, ये बताता था कि बिना सह जीवन के, मानुष का जीवन संभव नहीं।
और हर पूजन में सहज सरल गौरा जो चाहे शुद्ध गोबर, या सुपारी या माटी की बना कर पूजा पे रखी जाने वाली हर सामाजिक तबके, बिना अमीरी गरीबी का अंतर किये मान्य हैं।
ये छोटे-छोटे रीति-रिवाज, तीज छठ पूजन पारिस्थितिकी तंत्र ( Eco system) के संरक्षण का प्रतीक बन जाते हैं बिना आडंबर के। इसमें अगुआ बनती स्त्रियाँ जो गुफा काल से पोषण पालन ( Nurture and Upbringing) करती आ रही हैं उनसे बेहतर कोई नहीं जानता कि उनकी संतान के पोषण के लिए क्या अच्छा है।
भारतीय अध्यात्म या दर्शन में अद्वैत यानि एकेश्वरवाद ( ब्रह्म और चेतना एक है) और द्वैतवाद ( ईश्वर और आत्मा या चेतना दो अलग हैं) दोनों का सिद्धांत है। इसको ब्रह्मांड में देखें तो Material यानि तत्व और Energy यानि ऊर्जा यानि शक्ति से सब कुछ बना है। Binary यानि 0 और 1, या अगर देखें तो परमाणु में प्रोटॉन जो पॉजिटिव है उसके चारों ओर घूमता इलेक्ट्रॉन जो नेगेटिव है। जीवन में देखें तो स्त्रित्व और पुरुषत्व दो मिल कर एक जीवन को जन्म देते हैं लेकिन एक दूसरे के पूरक होते हुए भी उनका अस्तित्व बना रहता है।
यही द्वैतवाद है यही शिव यानि तत्व और शक्ति यानि एनर्जी है। यही वास्तविक रहस्य है और हर जीव में उपस्थित है। अब हम इसको अल्बर्ट आइंस्टीन का एनर्जी और मास कहें, Binary (0,1) कहें या शिव शक्ति या प्रकृति और तत्व। जीवन इसी से शुरू हो कर इसी में मिल जाना है। यही जीवन चक्र है। प्रकट रूप में या गूढ़ रूप में शिव पार्वती हर जीव में वनस्पति और जंतु जीवन में मौजूद हैं।
हम जितना प्रकृति के समीप होंगे उतना ही चेतना और शिव गौरा के पास होंगे। जिस दिन हमने इसे अनुभव कर लिया, अपनी पारिस्थितिकी तंत्र का जल जीवन और वनस्पति का संरक्षण करना स्वभाव में हो जायेगा। और संरक्षण के लिये पार्वती बार बार जन्म लेंगी हर स्त्री शक्ति के रूप में…
Excellent.
बहुत बढ़िया लेख
अद्भुत, संस्कृति के वैज्ञानिक आधार को स्पष्ट करते हुए प्रकृति में स्त्री के अनमोल अवदान को रेखांकित करता लेख
Badiya post hai
अद्भुत…..बहुत सुन्दर लेख.
Motivational story…
ATI Sundar bhabhi bahut Sundar Likha Hai aapane Dil Ko Chhu gai baten