डॉ धनञ्जय शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर
सर्वोदय पी.जी. कॉलेज, घोसी, मऊ
धरती के आइने में,
असंख्य रश्मियां बिखेरता
सतमी का बांका चांद
उतर रहा जमीं पर दूधिया रोशनी फैलाते।
श्वेत-श्याम अस्पष्ट चेहरों पर
प्रश्नांकुल निगाहों में घिरा,
सन् 2023 का तिरछा चांद।
सवालों की अदालत में
साहित्य, संस्कृति, कला, विज्ञान
भूगर्भ, अंतरिक्ष पूछते तमाम।
वजह क्या है?
जीवन में चांद है,
पर…चांद पर जीवन है?
साहित्य के आयतों को
पढ़ता हुआ कवि …….
चांद का कुर्ता है, चांद सिकुड़ता है
चांद सी महबूबा का चांद मुखड़ा है।
पूरी अमी की कटोरिया में,
अम्मा का भाई, चांद मम्मा है।
चंद्र मुखी है, चंद्र शेखर है
चलनी से झांकता हुआ
चंद्र पति परमेश्वर है।
चंद्र पुराण है, चंद्र संस्कृति है
चंद्र विज्ञान में हमारी प्रकृति है।
सवालों के अदालत में बैठा हुआ काज़ी………
सवाल यह नहीं कि,
चांद जीवन में है
सवाल यह है, की
चांद पर जीवन नहीं ?…….
सन्नाटे को चीरता हुआ
इसरो का प्रज्ञान मंत्रपूत
धरती का सज्ञान बना दूत
आर्यभट्टीयम, बाराहमिहीरम
न्यूटन, कैपलर, सब थ्यौरम
गया करता पार क्षितिज के अंतरिक्ष !
उतरा चांद पर अनाहूत।
सारे मिथक अब गए टूट,
है नहीं सलोना चंद्र खिलौना
चंद्र मिट्टी है चंद्र पर्वत है
चंद्र है पठार , चंद्र गैसीय गुबार
ऊपर से तप्त चांद भीतर से सिक्त
पानी में चांद जीवन कहानी में चांद,
परत दर परत, चंद्र दीर्घवृत्त
कर रहा चंद्र को अनावृत्त।।