मुख्य संपादक – अर्चना उपाध्याय
भारतीय दर्शन में शिव का स्थान अति उच्च है । वह सत्य हैं, सत्य होने के कारण वह शिव अर्थात कल्याणकारी हैं, और सबके लिये कल्याणप्रद होते हुये वह सुंदर हैं । भारत की प्रकृति की शोभा व जन-जन की जीवन देने वाली, विपुल वन धरोहरों की धात्री गंगा, शिव की शोभा बढ़ातीं हैं । अपने चराचर रूप में स्वयं महादेव प्रकृति को धारण कर संतुलन बनाये हुये हैं । शिव के अनेक रूपों में से एक है – नटराज का, यानी कलाओं के राजा, मूर्तिकला, संगीत या चित्रकला हो शिव हमेशा इनके केंद्र में रहे हैं, शिव की नटराज मुद्रा कलाओं का अद्भुत संगम है ।
भारतीय दर्शन के अनुसार इस समूची सृष्टि की सर्जना के केंद्र में सत्यम, शिवम, सुंदरम का ध्येय स्थापित है जहां पूर्णता का भाव अपने अभिन्न रूपाकारों और प्रतिमानों के साथ मौजूद है जो हमारे द्वारा व्यष्टि को समष्टि से जोड़ती है ।
शिव रूपी तत्व सत्य और सौंदर्य को हमारी चेतना में स्थापित करता है
आज जब प्रकृति अपना संतुलन खो रही है, कलाऐं अपने उद्देश्य से भटक सी रही हैं, यह आवश्यक है कि हम महादेव की नटराज मुद्रा के समक्ष विनय भाव से शिष्य बन खड़े हों और देवाधिदेव से कहें, कि वह हमें उन कलाओं से परिपूर्ण करे जो सृजन करें, निर्माण करें व मनुष्य तथा प्रकृति दोनों के लिये कल्याण का सुंदर मार्ग प्रशस्त करे ।
प्रस्तुत अंक में कला व प्रकृति के बीच इसी संतुलन को सामने रख ला रही है आपकी वीथिका