डॉ सुधांशु लाल
रूस-यूक्रेन युद्ध वर्तमान समय की सबसे महत्वपूर्ण और चर्चित अंतर्राष्ट्रीय घटना है। हममें से अधिकांश लोग युद्ध और उसके दिन-प्रतिदिन की घटनाओं के बारे में टेलीविजन और मीडिया के अन्य माध्यमों के सहारे जानते हैं | किसी भी घटना को समझने के लिए हमें उसकी पृष्ठभूमि और इतिहास को जानना होगा। इसे समझे बिना हम इस मुद्दे को पूरी तरह या ठीक-ठीक नहीं समझ पाएंगे। यहां हम युद्ध की तथ्यात्मक जानकारी, उसके कारण, वर्तमान स्थिति और भविष्य के प्रभाव पर चर्चा करते हैं।
लगभग 17 मिलियन वर्ग किमी की जमीन के साथ रूस क्षेत्रफल की दृष्टि से संसार का सबसे बड़ा देश है, जिसमें यूरोप से लेकर एशिया के बड़े हिस्से तक की भूमि शामिल है। यूक्रेन पूर्वी यूरोप के महत्वपूर्ण देशों में से एक है। हालाँकि, 1991 में सोवियत संघ के विघटन से पहले, यूक्रेन, रूस और अन्य 13 राज्यों के रूप में सोवियत संघ का हिस्सा था। सूत्रों का कहना है कि वह यूक्रेन ही था जिसने सबसे पहले रूस और बेलारूस के साथ सोवियत संघ से अलग होने की आवाज उठाई। यूक्रेन सोवियत संघ का सबसे विकसित हिस्सा था, अधिकांश परमाणु संयंत्र, हथियार का उत्पादन और तोपखाने और अन्य भारी उद्योग सोवियत संघ द्वारा इसी हिस्से में स्थापित किए गए थे। यूक्रेन, बेलारूस और रूस सोवियत संघ के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 75% का योगदान करते थे, परंतु उस समय सोवियत संघ की नीति अविकसित क्षेत्र को पहले विकसित करने की थी, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सोवियत संघ सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 75% मध्य एशिया पर खर्च करता था। एशियाई देश और अन्य अविकसित क्षेत्र का विकास उसकी प्राथमिकत थी और इसीलिए बेलारूस पहला देश था जिसने सोवियत संघ से अलग होने की मांग की उसके बाद यूक्रेन और रूस ने, उसके विपरीत मध्य एशियाई देश और अन्य अविकसित देश सोवियत संघ के विघटन के खिलाफ थे। सोवियत संघ एक परिसंघ था और संघ के प्रत्येक राज्य को अपनी विधानसभा में कानूनी रूप से एक प्रस्ताव पारित करके अलग होने का अधिकार था। उस क्रम में सोवियत संघ का विघटन हुआ और वह सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारणों में से एक था।
अब वर्तमान समय पर आते हैं जब 1991 के विघटन के बाद अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति में पंद्रह नए राज्य उभरे। प्रत्येक राज्य का अपने अस्तित्व, स्थिरता और विकास का मुद्दा था। अधिकांश राज्यों को अपनी विदेश नीतियों और सुरक्षा मुद्दों का कोई अनुभव नहीं था। राजनीतिक ढांचे के साथ-साथ इन देशों की आर्थिक संरचना भी ध्वस्त हो गई, हालांकि रूस अभी भी सोवियत राज्यों में सबसे मजबूत और सबसे बड़ा था। हालाँकि कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देश अभी भी एक संयुक्त गठबंधन बनना चाहते थे, लेकिन तब तक वोल्गा में बहुत पानी बह चुका था और अब और सोवियत संघ को बनाए रखना संभव नहीं था। बोरिस येल्तसिन रूस के राष्ट्रपति बने और उनके नेतृत्व में रूस के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के नए आयाम शुरू हुये । हालाँकि, मध्य एशियाई देशों की प्रयाश से, एक कॉमन वेल्थ ऑफ़ इंडिपेंडेंट स्टेट (CIS) का गठन किया गया था, जिसमें सामूहिक और संयुक्त नीति और नए अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में नए अस्तित्व का विचार था। हालाँकि CIS, सोवियत संघ, NATO,G7 या G20 जैसे किसी अन्य संगठन के रूप में प्रभावी नहीं हो सका, क्योंकि रूस के पास मध्य एशियाई और पूर्वी यूरोपीय देशों के विकासशील राज्यों का बोझ उठाने के अलावा अन्य प्राथमिकताएँ थीं।
रूस अन्य प्रमुख क्षेत्रीय संगठन जैसे ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का हिस्सा है, हालांकि, मध्य एशियाई देश एससीओ का हिस्सा हैं। सोवियत संघ के पतन के बाद रूस यूरोप में एक कमजोर शक्ति बन गया और खुद को एक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए रूस को एक मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता थी। और इस प्रकार व्लादिमीर पुतिन उभर कर आते हैं। पहले चेचन युद्ध में, बोरिस येल्तसिन के प्रतिनिधि के रूप में पुतिन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालाँकि पहले चेचन युद्ध में रूस की हार हुई, लेकिन इसने पुतिन को एक महत्वपूर्ण नेता बना दिया और बोरिस येल्तसिन के इस्तीफे के बाद, पुतिन राष्ट्रपति बने और बहुत जल्द दूसरे रुसो-चेचन युद्ध में रूस ने चेचन्या को क्रूरता से हराया और दुनिया को दिखाया कि वह सिर्फ एक पूर्व केजीबी एजेंट नहीं बल्कि एक शक्तिशाली नेता भी है।
अब यूक्रेन और रूस के मुद्दे पर आते हैं, पिछले दशक से पहले यूक्रेन ज्यादातर रूस समर्थक था और नाटो और अन्य यूरोपीय राज्य हमेशा यूक्रेन में रूस समर्थक सरकार की स्थापना में रूस के हस्तक्षेप के मुद्दे को इंगित करते थे। हालाँकि, यूक्रेन में हमेशा ऐसे समूह थे जो रूस विरोधी और यूरोप समर्थक थे और वे नाटो में शामिल होना चाहते थे और यूरोपीय संघ का हिस्सा बनना चाहते थे। जैसे ही यूक्रेन में यूरोप या अमेरिका समर्थक सरकार बनी, यूक्रेन में रूसियों के प्रति भेदभाव की खबरें आने लगीं। क्रीमिया में लगभग 71% आबादी रूसी थी, वहीं डोनेट्स्क या डोनबास क्षेत्र में लगभग 38% आबादी रूसी है और लुहांस्क ओब्लास्ट (क्षेत्र) में लगभग 47% आबादी रूसी है और ये दोनों क्षेत्र इस युद्ध में युद्ध का मैदान बन गए। फरवरी 2014 में क्रीमिया पर रूस द्वारा पहले ही कब्जा कर लिया गया था और रूस का हिस्सा बन गया था। रूस दावा कर रहा है कि वे उनके लोग हैं और वे सिर्फ अपने लोगों की रक्षा कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। रूस अपने लोगों के खिलाफ भेदभाव के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर इसे सही ठहरा रहा है। दूसरी ओर, यूक्रेन इस कार्रवाई का दावा अपनी संप्रभुता के खिलाफ और अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ कर रहा है।
वर्तमान रूस-यूक्रेन युद्ध इतना सरल या सीधा नहीं है, यह सिर्फ क्षेत्र का मुद्दा है बल्कि क्षेत्र में प्रभुत्व का भी मामला है। एक ओर यूक्रेन को नाटो की सदस्यता देकर अमेरिका रूस के दरवाजे पर खुद को बसाना चाहता था, वहीं दूसरी ओर यह हमला अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चीन के समर्थन से रूस के बाहुबल का प्रदर्शन है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभुत्व समाप्त हो गया है। यह रूसी कूटनीति की जीत है, क्योंकि इतने सारे आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी रूस युद्ध के एक साल बाद भी पीछे हटने का कोई संकेत दिए बिना युद्ध में है। रूस के दो प्रमुख आर्थिक साझेदार हैं, एक है चीन का जनवादी गणराज्य और दूसरा है भारत। हालाँकि भारत रूस का बहुत बड़ा व्यापारिक भागीदार नहीं है लेकिन रूस से सस्ता पेट्रोलियम खरीदकर भारत अप्रत्यक्ष रूप से रूस की मदद कर रहा है। हालाँकि भारत युद्ध के खिलाफ है और एक गुटनिरपेक्ष नीति अपना रहा है लेकिन यह कार्रवाई रूस के प्रति भारत के झुकाव को दर्शाती है।
अब प्रश्न उठता है कि यदि यह युद्ध जारी रहा तो इस संसार का भविष्य क्या होगा। कई संभावित उत्तर हैं लेकिन सबसे सटीक रूप से तीन परिदृश्य सामने आते हैं । सबसे पहला यह कि रूस डोनेट्स्क और लुहांस्क क्षेत्र पर कब्जा कर ले और अपना क्षेत्र बना ले । उस परिदृश्य में यूक्रेन को अपनी हार स्वीकार करनी होगी और यह न केवल यूक्रेन की हार होगी बल्कि यह यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र की भी हार होगी। साथ ही यह नाटो की भी हार होगी।
दूसरा परिदृश्य यह है कि, रूस यूक्रेनी क्षेत्र से हट जाता है, संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप या भारत और चीन जैसे मित्र राष्ट्रों के सुझाव पर सहमति होने या चरम स्थिति में हम कल्पना कर सकते हैं कि रूस नाटो के समर्थन से यूक्रेन से हार गया । हाँला की यह संभावना बहुत संभव नहीं है, लेकिन फिर भी हम इस अंत की कल्पना कर सकते हैं।
तीसरा और अंतिम यह है कि विवादित क्षेत्र पर रूस और यूक्रेन के साथ कुछ समझौता हो, रूस इस क्षेत्र को छोड़ने के लिए सहमत हो जाये तथा यूक्रेन इस क्षेत्र को स्वायत्तता और रूसियों को सुरक्षा और विशेष दर्जा प्रदान करे, जिनकी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण संख्या है। निकट भविष्य में यह सबसे संभावित परिणाम है, क्योंकि युद्ध में शामिल दोनों देशों के लिए यह एक लंबी अवधि तक युद्ध लड़ पाना संभव नहीं है । रूस ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी ताकत साबित कर दी है और साथ ही यूक्रेन ने भी दिखाया है कि वह बहुत आसानी से आत्मसमर्पण नहीं करने जा रहा है और कूटनीतिक रूप से यूक्रेन ने अपनी ताकत और क्षमता भी दिखा दी है | खुले तौर पर और गुप्त रूप से यूक्रेन ने यह साबित कर दिया कि नाटो और यूरोपीय संघ के राजनयिक समर्थन के माध्यम से, यह तब तक लड़ने जा रहा है जब तक कि रूस बातचीत की मेज पर नहीं आ जाता। जो दोनों देशों के साथ-साथ पड़ोसी देशों और पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद होगा। चूंकि पूरी दुनिया आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से भौतिक रूप से नहीं तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध के प्रभाव का सामना कर रही है। उम्मीद है कि यह मामला जल्द ही सुलझ जाएगा और इस क्षेत्र में शांति स्थापित होगी।
बहुत विस्तृत और तर्क पूर्ण विवेचना। साधु वाद