प्रो. मोहम्मद ज़ियाउल्लाह, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग
डीसीएसके पीजी कॉलेज , मऊ
गुस्से से नथुना फुलाते हुए एंडी-पंजों पर उचक-उचक कर राय साहब भाई जगीरा से यह फरमा रहे थे। भाई! कैसा कलयुग आ गया है ? भारत के सपूतो के कैसे करतूत हो गए हैं? लंगड़ी हो कि लूली, बच्ची हो कि जवान, हिन्दू कि मुसलमान, कामदेव की इस रेला में कोई क्यों सुरक्षित नहीं है? हे! भारत माते यह कैसी लीला है? क्या अब केवल प्रलय आना ही बाकी (रह गया) है? इस अंधेरगर्दी पर राजनीतिक देवियाँ तो चुप हैं ही मगर हे देवी आप क्यों मौन हैं? आखिर इन असुरो का अंत कब होगा।
एक पल का विराम ! राय साहब फिर से भबके
प्रिय भाई जगीरा! आप तो स्वर्गीय राजीव गाँधी को जानते होंगे, उनका भाषण भी सुना होगा। वे घटनाओं को कालों में बताते थे “हमने देखा, हम देखते हैं और हम देखेंगे। इसी अदभूत विधि से हमें घटनाओं के कारण, घटनाओं की स्थिति और परिणाम का पता चल जाता था। काश आज जाता वह होते तो हमें बलात्कार का कारण और निवारण भी समझा जाते ।
उफ यह महिला शक्तियों की प्रतीकें ! इटैलियन हो या कि इरानी ! मानो सब की सब बहरी हो गई हों, मासूमों की चीखें इस राजनीतिक प्रदूषण जैसे नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गई हो।
एक लम्बी ख़ामोशी ।
भारत ही एक मात्र देश है जहां ‘ नारी शक्ति की पूजा होती है और नारी को सशक्त बनाने के लिए महिलाओं से अधिक पुरुष जतन करते हैं। फिर बेटियाँ मजबूर क्यों दिखाई पड़ती है? राय साहब गाथा सुनाए जा रहे थे और ऐसा लग रहा था कि जगीरा भावविभोर हो रहे हों ! मगर क्या पता कि जगीरा के कानों के परदे से जैसे ही कुछ नारियों का नाम टकराया जगीरा ‘मुंगेरी लाल” के हसीन सपने में खो गए और मन ही मन उनके मन में लड्डू फूटा, रेप इज सप्राइज सेक्स का लड्डू। और वह सपने से तब लौटे जब राय साहब की बात समाप्त हुई हो गई फिर क्या था। अपने चित- परिचित अन्दाज में सिगरेट सुलगाई, लम्बा कश लिया, एक्सलेटर पर पैर दबाया, धुंवा राय साहब के मुंह पर छोड़ा और यह बड़बड़ाते हुए, “जब शीला की जवानी होगी तो मुन्नी की बदनामी कैसी” आगे निकल गए।