ई वैभव द्विवेदी
हम इंसान बहुत जिज्ञासु हैं, आज के समय से ही नहीं बल्कि मनुष्य ने अपने शुरुआत से घुमक्कड़ी को अपनी जिज्ञासा शांत करने का एक प्रमुख साधन बनाया है । अगर आप बड़े शहरों में जायें तो वहां के लगभग हर विद्यालय में साप्ताहिक कार्यक्रम “कहीं चलते हैं” से शुरू होकर “आख़िरकार पहुँच गये” पर समाप्त होता है ।
यह लेख जो नितांत मेरा अनुभव है जिसे आप चाहें तो कहानी भी कह सकते हैं, आख़िरकार कहानियां भी तो अनुभवों को संजोती ही हैं, एक ऐसे छोटे शहर के विद्यार्थी का है जो अपने लगभग आधी उम्र तक तो समझ ही नहीं सका की जीवन की गाड़ी घुमक्कड़ी और दिवास्वप्नों से नही चलती । खैर अपनी कथा से आगे अब चलते हैं उस दिन पर जब यह अनुभव गाथा शुरू हुई थी ।
शुरुआत होती है एक हॉस्टल से जहाँ एक सुबह एक युवा और एक उससे थोड़े बड़े साथी ( सोच में दोनों लगभग बराबर) ने कुछ अध्यात्म से जुड़ा करने को सोचा, वास्तव में उस समय तो घुमना और कुछ नया करना ही लक्ष्य था । यमनोत्री जाने का कार्यक्रम बना। तीन दिमागों की यह योजना कब बारह लोगों का समूह बन गयी, बता पाना थोडा कठिन है ( और लेखक जब आज इसे लिख रहा है तो लगभग आधी उम्र से कुछ बड़ा हो चला है)।
सो समय सुबह साढ़े नौ का था और बुलेट ले तीन लोग तैयार थे, कमी थी सिर्फ एक और इन्सान की, असल में एक बुलेट परएक साथी अकेले था सो दल पूरा-पूरा सा नहीं लग रहा था । इंतजार बस एक का था और दल बन गया बारह लोगों का ।
मंजिल 150 किमी दूर थी, चले तो रात बीतती गयी । रात के सफ़र में पहाड़ी रास्ते कब आपका साथ छोड़ दें आपको पता ही नहीं चलता, इसलिए समय-समय पर रुक के उन्हें मनाना पड़ता है । थके हुए सब पहुचें उन पहाड़ों के बीच जहाँ योजना कर के भी कम ही लोग पहुँच पाते हैं । उस रात के बाद जो सुबह देखी तो हमेशा द्वंद में रहने वाले लोग भी अचानक से शांत होकर उस दृश्य को निहारते ही रह गये । हम उस सुहानी सुबह को हमेशा के लिए अपने साथ लेकर आगे बढ़े । जिस शुद्धता को हम अपने शहरों, घरों में खोजते रहते हैं, वह एकदम से वहां रास्तों और गावों में बिखरी मिल जाती ।
पहुंचना यमनोत्री था, देहरादून कण्डौली से गंगोत्री पहुंच गये । महीना सितम्बर का था पर ठण्ड भारत के उत्तरी समतल भागों के दिसम्बर महीने की याद दिला रही थी ।
गंगोत्री अध्यात्म का एक अलग शांत व अनूठा स्थान है । जहां आप अपनी आध्यात्मिक शांति को पाने या बस समय का सदुपयोग करने जा सकते हैं । हम वहां पहुंचे तो कुछ ने डुबकी लगायी तो कुछ ने हिम्मत दिखायी। लेकिन उस सुबह सूर्य की उन किरणों का आनंद सबने लिया ।
Romanchak tour of yamanotri you good filling that time enjoy same as in future God bless
Thanks so much …Pranam