डॉ.सौरभ श्रीवास्तव
बरगद का वो पेड़
जिसकी जड़ें फैली थी चारों तरफ
वर्षों से वो भी चुप है,
गायों का झुंड भी अब शांत है
गांव के बगल से जो नदी गुजरती है
वो भी अब चुपचाप बस बहती है
वो विशाल पीपल वाला चबूतरा
बूढ़ों- बुजुर्गो वाला
वहां से भी अब कोई आवाज नहीं आती,
अरे अभी याद आया
वो आम वाला बगीचा भी तो नहीं रहा
जिसकी महक आती थी साल में एक बार
सब मौजूद है गांव की गोद में
पर गांव बोलता नही अब
उसकी आवाज नही आती,
बरसात होने पर –
गांव की मिट्टी महकती नही अब,
(नंग-धड़ंग बच्चे खेलते भी तो नही मिट्टी में)
वो भी शांत है, गांव के सन्नाटे में
गांव बोलता है, किसी और भाषा में,
किसी और तहजीब में,
गांव बोलता है मौन होकर
अपनी नम आंखों से एकटक देखता है
फिर मानो अपनी आंखे मूंद लेता है अचानक।