Skip to content
वीथिका
Menu
  • Home
  • आपकी गलियां
    • साहित्य वीथी
    • गैलिलियो की दुनिया
    • इतिहास का झरोखा
    • नटराज मंच
    • अंगनईया
    • घुमक्कड़
    • विधि विधान
    • हास्य वीथिका
    • नई तकनीकी
    • मानविकी
    • सोंधी मिटटी
    • कथा क्रमशः
    • रसोईघर
  • अपनी बात
  • e-पत्रिका डाउनलोड
  • संपादकीय समिति
  • संपर्क
  • “वीथिका ई पत्रिका : पर्यावरण विशेषांक”जून, 2024”
Menu

कबहीं त लवटीहें मोर बनिजरवा

Posted on July 1, 2023

बृजेश गिरि, प्रवक्ता, जैश किसान इन्टर कॉलेज, घोसी, मऊ

हमारे समाज में प्राचीन काल से लोक गीतों की परम्परा है । पहले हमारे यहाँ मनोरंजन के साधन या आनंददायक और श्रम के परिहार कर सकने या आपके कष्टों को कम कर सकने योग्य संसाधनों की कमी थी । आज के समय में मोबाइल, टेलीवीजन आदि अनेक संसाधन हैं जिनसे आप मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धन भी कर सकते हैं । लेकिन पहले के समय में तकनीकि का इतना विकास नहीं था तो लोकगीत, लोक नाट्य, लोक कथा  आदि मनोरंजन के साधन तो होते ही थे साथ ही साथ ये अपने मनोभावों को व्यक्त करने के मार्ग भी होते थे। उसी के अंतर्गत लोकगीतों की परम्परा रही है, इसी में संस्कार गीत आते हैं जो हमारे सोलह संस्कारों पर आधारित हैं और जन्म से मृत्यु तक विभिन्न अवसरों पर ये गाये जाते हैं । उसी प्रकार ऋतुओं से सम्बन्धित गीत हैं जिनमें कजरी है जो भाद्रपद के समय में गाया जाता है, ऐसे ही चैता, चैती आदि विभिन्न ऋतुओं में गाये जाने वाले गीत हैं। वर्तमान में तमाम लोकगायक व लोकगायिकाएं जैसे शारदा सिन्हा, मालिनी अवस्थी हैं जो इन गीतों को बहुत सुन्दर रूप में प्रस्तुत करती हैं । इसी प्रकार जाति आधारित गीत भी हैं जिसमें गोंड, कहार आदि जातियों के गीत हैं ।

इन लोकगीतों में हमारे जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान श्रमगीतों का है । श्रम हर व्यक्ति का अंग है, चाहे वह अभिजात्य वर्ग हो या सामान्य वर्ग हो । पहले श्रम का दायरा तकनीकि सम्बन्धित नहीं था वरन श्रम मूल रूप से शारीरिक था जैसे जांता पीसना है, रोपनी करना है, सोहनी करना है, ओसावन करना है ऐसी स्थिति में हमारी महिलाएं जो साक्षर भले न रहीं हों पर ज्ञानी अवश्य थीं, जीवन का अनुभव उनका बहुत गहरा था । इन महिलाओं ने अपने श्रम के परिहार के लिए, अपने दुःख को व्यक्त करने के लिए श्रमगीत को माध्यम बनाया । आज भी रोपनी करने वाली महिलाएं इन गीतों को गातीं हैं । वर्षा ऋतू में धान के फसल की रोपाई होती है । खेतों में पानी लगा होता है और ऐसे खेत में ये महिलाएं अपनी साड़ी की खूंट अच्छे से बाँध, हाथों में धान का बीज लिए रोपनी करती हैं । वहां अपने रिश्तों, दुःख-सुख आदि भावनाओं को गीतों में व्यक्त करती हैं।

लोक गीतों पर बहुत अच्छा कार्य डॉ कृष्णदेव उपाध्याय जी ने किया है, इनकी किताबें भोजपुरी लोकगीत भाग एक, भाग दो, लोक साहित्य की भूमिका, लोक संस्कृति की रुपरेखा, डॉ रामनरेश त्रिपाठी जी ने अपने संकलन  कविता कौमुदी में ग्राम गीतों पर बेहतरीन कार्य किया है । त्रिपाठी जी स्वयं कष्ट उठाते हुए रात-रात भर जग कर, घरों के पीछे छुप कर महिलाओं के गाये इन गीतों का संकलन करते थे ।

यहाँ पर डॉ कृष्णदेव उपाध्याय जी के संकलन भोजपुरी लोकगीत भाग दो (डॉ उपाध्याय कृष्णदेव, रोपनी के गीत, भोजपुरी लोकगीत भाग दो, हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग, तृतीय संस्करण, वर्ष 1999) में संकलित रोपनी का एक गीत प्रस्तुत है ।

 प्रसङ्ग — किसी स्त्री के उज्ज्वल, पवित्र तथा आदर्श सतीत्व का वर्णन ।

आम महुअवा के घनी रे बगिया;

ताहि बिचे राह लागि गइले हो राम ॥१॥

ताहि तर ठाढ़ भइली ए रे सोहागिनि;

नयना से निरवा ढारे हो राम ॥२॥

बाट के चलत बटोहिया पूछे काहे तुहु ठाढ़;

केकर जोहेलू तू बटिया नयन नीर ढारे हो राम ॥३॥

तोहर निअर मोर पातर बलमुआ;

उनुकर बाट खाड़ा जोहेले हो राम ॥४॥

लेहु ना साँवरि डाल भरि सोनवा;

छोड़ परदेसिया के आस हो राम ॥५॥

आगि लगइबो में डाल भरि सोनवा;

करबों परदेसिया के आस हो राम ॥६॥

कबहीं त लवटीहें मोर बनिजरवा;

पनही से तोहि के पिटइबो हो राम ॥७॥

अर्थात-

आम और महुआ का घना बागीचा है और उसके बीच में रास्ता बन गया है । उसी के नीचे एक सौभाग्यवती स्त्री खड़ी है और अपनी आँखों से आँसू गिरा रही है, अर्थात् रो रही है। रास्ते में चलनेवाले यात्री उससे पूछते हैं कि ऐ स्त्री ! तुम क्यों खड़ी हो और किसके आने की प्रतीक्षा करती हुई तुम अपनी आँखों से आँसू गिरा रही हो ? स्त्री ने उत्तर दिया– तुम्हारे ही समान मेरा पति भी पतला है, उसी का रास्ता मैं देख रही हूँ । यात्री ने कहा- ऐ सुन्दरी ! डाल भरकर तुम सोना मुझसे लो और अपने परदेशी पति की आशा छोड़ दो । स्त्री ने उत्तर दिया–मैं तुम्हारे डाल भर सोना में आग लगा दूंगी और परदेशी पति की बाट जोहूँगी । कभी तो मेरा पति लौटेगा–उस समय मैं तुमको जूतों से पिटवाऊँगी ।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • वीथिका ई पत्रिका का जून-जुलाई, 2025 संयुक्तांक “बिहू : ओ मुर अपुनर देश”
  • वीथिका ई पत्रिका का मार्च-अप्रैल, 2025 संयुक्तांक प्रेम विशेषांक ” मन लेहु पै देहु छटांक नहीं
  • लोक की चिति ही राष्ट्र की आत्मा है : प्रो. शर्वेश पाण्डेय
  • Vithika Feb 2025 Patrika
  • वीथिका ई पत्रिका सितम्बर 2024 ”
©2025 वीथिका | Design: Newspaperly WordPress Theme