प्रो. मोहम्मद ज़ियाउल्लाह, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग
डीसीएसके पीजी कॉलेज , मऊ
हिन्दी एक महान भाषा है। सैकड़ों साल पुरानी और भारत की निशानी है। गर्व की बात यह है कि बिना किसी दरबारी प्रश्रय के ही यह सदियों से फलती-फूलती रही है । भारत के किसी राजा ने हिन्दी को दरबारी भाषा का दर्ज़ा नही दिया मगर फिर भी आज हिन्दी भारत के होठों पर वैसे ही जचती है जैसे दुलहन के माथे पर बिन्दी सजती है।
मगर हाय रे आधुनिकता ! इसने भाषा को भी नही बख्शा। हालत यह है कि आज दिल्ली में हिन्दी ‘इन्दी’ हो चुकी है। इन्दी- अर्थात इंगलिश+हिन्दी से निर्मित तथाकथित आधुनिकतावादी हिन्दी ।
इसका मैं स्वयं साक्षात् दर्शी हूँ, जैसा कि एक बार मैंने हिम्मत कर के अपने ऐसे ही इन्दीवादी मित्र से पूछ ही लिया। भाई साहब आप अपनी बोल-चाल में अंग्रेजी शब्दों का इस प्रकार अत्याधिक प्रयोग क्यों करते हैं? फिर क्या था, ‘उन्होंने तो मेरी बोलती ही बन्द कर दी । कहने लगे, “मैंने तो अपनी life में, कभी भी English Words का use ही नही किया । यह तो मुझ पर आप एक Allegation लगा रहे हैं। या विरोधियों की तरफ से उड़ाई गई यह एक अफवाह है ।
छोड़िए, जाने दीजिये आप टेंशन मत लिजिये । आप मेरी Latest पक्तियां सुनिए!
कितना Ignore करूं कितना Compromise करूँ
अपनो के फरेबों को कितना Realise करूँ
Now its become too much to understand
तुमही बताओ “जिया” How much energy utilise करूँ
(बकलम लार्ड नवाब मोहम्मद ज़ियाउल्लाह ख़ुद)