वरिष्ठ साहित्यकार, एसो. प्रोफेसर
राजकीय कला पीजी कॉलेज, अलवर
शहर हो या देहात में औरत
जीवन की हर बात में औरत
टूटी छत की चिंताएँ ले
छत पर है बरसात में औरत
सबकी फ़िक्र समेटे खुद में
बँटती है खैरात में औरत
ख़्वाबों में सूरज है लेकिन
एक अँधेरी रात में औरत
प्यार उदासी यादें चाहत
ले आई सौगात में औरत
एक बिसात बिछी हो जैसे
उलझी है शह-मात में औरत
कितना भी वो मर्द हो लेकिन
मर्द के है जज़्बात में औरत