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युद्ध © नमिता राकेश

Posted on May 31, 2023

(प्रसिद्ध कवियित्री श्रीमती नमिता राकेश जी, दिल्ली की कविता- “युद्ध” )

युद्ध लड़ना और जीतना

दो देशों

या कुछ देशों के लिए

प्रतिष्ठा का प्रश्न हो सकता है,

लेकिन युद्ध करना इतना आसान नहीं

बहुत कुछ जलता है-

सीमा पर, सीमा के भीतर

तहस नहस होती इमारतें, परिसम्पत्तियां,

ज़मीन, जायदाद।

गोला-बारूद जो सिर्फ बाहर ही नहीं

बल्कि

जिस्मों के भीतर तक

सब कुछ जला देता है

सब कुछ बिखर जाता है, टूट जाता है

कुछ भी बचता नहीं

कि फिर से समेटा जा सके

ये वही जान सकते हैं

जिन पर बीतती है ।

युद्ध सिर्फ देशों के बीच नहीं

जिस्मों के बीच भी लड़ा जाता है

कतरा-कतरा पिघलता विश्वास

तार-तार होती आत्मा

ज़र्रा-ज़र्रा टूटता मनोबल

कुछ नहीं छोड़ता आदमी में

और यह युद्ध दिखाई नहीं देता

सिर्फ महसूस किया जा सकता है ।

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