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न्याय की जन संवादशीलता

Posted on May 31, 2023

एडवोकेट सत्यप्रकाश सिंह

विगत कुछ दिन पूर्व माननीय उच्चतम न्यायालय के सम्मानित मुख्य न्यायाधीश ने एक न्याय व्यवस्था से जुड़े समारोह में न्याय की भाषा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, “आमजन के लिए अर्थात जनसामान्य के लिए जन सहज  व प्रचलित भाषा में न्यायिक कार्यवाही का सम्पादन एवं न्याय-निर्णयन से न्यायालय एवं कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास एवं जनस्वीकार्यता में वृद्धि होगी । न्यायालाय में आने वाला व्यक्ति अपने प्रकरण में प्रत्येक अग्रेसर कार्यवाही को समझने में समर्थ होगा तथा न्याय व्यवस्था में उत्पन्न होती अनेक समस्याओं का निदान संभव होगा।”

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय का उक्त विचार इस भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था में “कानून का शासन” स्थापित करने तथा उसके प्रति विश्वास अक्षुण्ण रखने में पूरे मनोरथ से जिन पर इसको लागू कराने का दायित्व है, उन्हें कर्तव्यबोध से सचेत करने का प्रयास है । भारतीय स्वातंत्र्य के करीब छिहत्तर वर्षों में आज भी  जनसामान्य को उसकी भाषा में शीर्ष न्यायालयों का न्याय सुलभ नहीं है । संविधान के नियमानुसार उच्च व उच्चतम न्यायालय की न्याय की भाषा अंग्रेजी है। कुछ प्रान्तों में प्रादेशिक भाषाओं को न्याय की भाषा बनाने का उपक्रम किया गया है। फिर भी अधिसंख्य निर्णय अंग्रेजी भाषा में ही प्रसारित हो रहे हैं ।  यद्यपि संसद जो देश की आम जनता का प्रतिनिधित्व करती है संवैधानिक रूप से जन आकांक्षा के अनुरूप परिवर्तन करने हेतु अनुच्छेद 348 (2) के अनुसार सशक्त है। परन्तु राजनीतिक विरोध व जनसंवेदनशीलता के अभाव के चलते न्याय की भाषा जनभाषा नहीं हो पा रही है। आज के व्यवसायिक युग में जहाँ अत्याधुनिक तकनीकियों का विकास अनवरत हो रहा है, एक साथ अनेकानेक भाषानुवाद सहज सुलभ है। माननीय न्यायाधीश के उक्त उद्गार से शीर्ष-यायाल के निर्णय भी आम व्यक्ति को उसकी भाषा में मिल सकेगा । आने वाले समय में न्यायिक प्रक्रिया के संचालन में जनसम्पर्क भाषा का प्रयोग उच्च न्यायालयों मे उचित स्थान पायेगा । इससे न्यायाधीशगण व अधिवक्तागण भी प्रेरित होंगे । आज अपने ही हित में प्रस्तुत वाद की जानकारी प्राप्त करने में भी आम जन असमर्थ है । इसके प्रयोग से वह अपना सहयोग दे पाने में समर्थ होगा तथा इस न्यायिक व्यवस्था में अधिवक्ता एवं न्यायालय से उचित पूछताछ कर सकेगा ।

आमजन की भाषा में न्याय होने से निश्चित ही माननीय न्यायालय व जनमानस के बीच संवाद स्थापित व आमजन के हितों की रक्षा और बेहतर ढंग से हो सकेगी ।

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