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ग़ज़ल © श्री अविनाश पाण्डेय जी, वाराणसी

Posted on May 31, 2023

अभिनेता, रंगकर्मी, निर्देशक, लेखक श्री अविनाश पाण्डेय जी की ग़ज़ल

बेकरार दिल है ये, ढूँढता करार है

है किधर सुकूं पड़ा, उलझने हज़ार हैं…

बेसबब से अश्क क्यूँ, कर रहे हैं चश्मेनम

आस बह गए सभी, नज़र भी बेज़ार है…

धूप में खिली-खिली, झूमती थीं क्यारियाँ

गर्दिशों में घिर के अब, खो गयी बहार है…

अस्ल का किसे पता, बिक रहे हैं नस्ल सब

घर के दायरे में ही लग रहे बाज़ार हैं…

थी बड़ी चहल-पहल, अब नहीं सदा कोई

हुक्मरां के हुक्म से दरकते मज़ार हैं…

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