डॉ शिवमूरत यादव
Post Doctoral Research Fellow
University of Oklahoma, Health Sciences Center, USA
आज विज्ञान हमारे बीच किसी जादू से कम नहीं है । आम आदमी जादू में अधिक रूचि रखता है । विज्ञान ने हमें क्या-क्या नहीं दिया । दवा की एक छोटी सी गोली हमारे शरीर के दर्द को दूर भगा सकती है, हम किसी जादू की तरह आसमान में उड़ सकते हैं, हजारों किलोमीटर की दुरी कम से कम समय में तय कर सकते हैं, यहाँ तक की घर बैठे उतने दूर आदमी से सीधे देखते हुए बात भी कर सकते हैं । ठंडी में गर्मी और गर्मी में ठंडी का एहसास ले सकते हैं, दिन को रात और रात को दिन कर सकते हैं । हम अतीत को भविष्य के लिए संजो सकते हैं, किसी भी पल को हम चित्र, चलचित्र के रूप में संरक्षित कर सकते हैं। क्या यह सब किसी जादू से कम है ।
इतिहास साक्षी है कि महान विज्ञानी गैलिलियो गैलिली ने अपनी अडिग तर्क-शक्ति व साहसिक विज्ञान के द्वारा आधुनिक युग के लिए चमत्कारों व जादू से भरे संसार का दरवाज़ा खोल दिया था । और इसके लिए उन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी । रसायन, भौतिक, जीव, भूगर्भ से लेकर अन्तरिक्ष तक विज्ञान और वैज्ञानिक चिन्तन ने इस दुनिया के कहानियों में भरे सपनोँ को सच कर हमारे सामने रख दिया ।
ऐसे समय में विज्ञान की दशा आज वैसी ही है जैसी इस आधुनिक भौतिकवादी युग में माँ-बाप की है । जिसकी धन-संपदा यश पर अपना अधिकार बच्चे अवश्य समझते हैं पर अपनी जिम्मेदारियों से कतराते हैं । उसी तरह विज्ञान की सारी सुख-सुविधाओं का भोग आधुनिक समाज पूर्णरूप से कर रहा है लेकिन विज्ञान के प्रति अपना दायित्व वह नहीं समझता । जैसे माँ-बाप के लिए सहारे की आवश्यकता होती है वैसे ही विज्ञान को भी इस सहारे की आवश्यकता होती है ।
तो क्या हमारा यह दायित्व नहीं बनता कि इस जादू के जादूगरों, उन महान वैज्ञानिकों के लिए हम भी कुछ करें । अपने आस-पास के जीवन में विज्ञान से जुड़े विषयों पर चर्चा, चिन्तन, शोध की ललक को अपनाकर, बच्चों के अंदर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास व प्रोत्साहन कर हम इन विज्ञानियों की राह बहुत आसान बना सकते हैं । हम सपने देखते हैं, वही सपने साहित्य का हिस्सा बन हमें जीवन-दृष्टि देते हैं, विज्ञान अपने प्रयोगों, सिद्धांतों, अनुसंधान के द्वारा उन सपनों को सच बनाता है, विज्ञान के इन उत्पादों से हम इतिहास रचते हैं, पुनः इसी इतिहास से आगे हम नए सपने देखते हैं । साहित्य-विज्ञान-इतिहास का यह क्रम चलता रहता है । और इन्हीं सपनों की सीढ़ियों के सहारे मानवता दिन—प्रतिदिन आगे बढती चली जाती है । समाज को बस निर्माणकारी सपने देखने के लिए तैयार रखिये, नवीनता को अपनाने को तैयार रहिये, इतना करने से ही यह जादुओं से भरी दुनिया इन जादूगरों की मुस्कुराहटों से खिल जायेगी । और भला विज्ञान के इन जादूगरों को मानव की सरल मुस्कराहट से अधिक तो कुछ चाहिए भी नहीं ।