व्यंग्यकार- चुनमुन जी
हमारे ननिहाल में एक थे हरखू भैया, बेचारे भोले -भाले हरखू और कड़कदार मिर्ची की तरह तीखी उनकी घरवाली । हरखू भाई के समधी आने वाले थे तो खुब अच्छी -अच्छी मोटी लिट्टी,लहसुन-मिर्ची की चटनी और हमारे ननिहाल से गये दही का बढ़िया माठा तैयार हुआ चकाचक….
दोनों समधी जी आंगन से सटे ओसारे में पीढा पर बैठे, हंसी-मजाक, ठट्ठा में भोजन शुरु हुआ तब तक घरवाली ने बुलाकर धीरे से हरखू जी को समझाया के तीन ही मोटी लिट्टी बनाई हूं वैसे तो पेट भर ही जाएगा समधी जी का लेकिन मर्यादा के अनुसार मैं दूसरी लिट्टी के लिए पुछूंगी तो आप पहले ही नहीं-नहीं कह दीजिएगा तो आपका सुनकर वो भी मना कर देंगे तो तीसरी मैं खा लूंगी ।
बेचारे हरखू भैया ने आंख के इशारे पर दूसरी लिट्टी की बात आते ही मना तो करना चाहा पर हिम्मत नहीं हो सकी, बोले लाओ आधी दे ही दो समधी को ।अब समधी जी पीछे क्यों रहते अपनी वाली हरखू को दे दी, मजबूरी में बची आधी लिट्टी समधी जी की थाली में पड़ी । आगे देखिए पत्नी बुरी तरह नाराज तो थी ही बोली, “सुनो समधी जी को दुआर पर सुलाना, खुली हवा लगेगी और तुम छत पर सोना । हरखू ने ज़िद करके समधी जी को दुआर पर सुला दिया, अब भैया आधी रात को जब मच्छर ने काटना शुरु किया तो समधी जी छत पर पहुंचे और हरखू को नीचे भेज दिया। छत पर ठंडी हवा में जैसे ही आंख लगी थी तब तक समधी जी के ऊपर ले झाड़ू-दे झाड़ू की पिटाई शुरु हुई । समधी जी बाप-बाप चिल्लाते हुए नीचे भागे और उनको देखकर समधिन घर में भागीं….
जगह बदल जाने से लिट्टी का गुस्सा हरखू की जगह समधी जी पर उतर गया और समधी जी उसी वक्त अपने गांव को निकल लिए …” अब आगे तो आप खुद ही समझदार हैं …….