गीता कैरोला
उत्तराखंड
चौमासा हमेशा त्योहांरों की आमद के साथ बीतता है।श्राद्ध के पंद्रह दिनों में पितृ पूरे साल का भोजन जीम ने के साथ साल भर का राशन बांध कर विदा हो गए थे।आस पास के गांवों के बृत्ति ब्राह्मणों के साथ घर के बड़े बूढ़े,कच्चे बच्चे सब श्राद्धों का खाना खा के तृप्त थे।खेतों सग्वाडो में कद्दू पक के पीले पड़ गए। ककड़ियां पीली लाल हो गयी। दीवाली की धूम के बाद माँ चाचियाँ दिन भर उड़द की दाल को सिलवटे में पीस कर ककड़ी, भूजेला और लौकी की बढ़िया बनाकर सूखने के लिए पूरा गुठ्यार(आंगन) भर देती थी। दानो से भरे मक्की को छिलकों से बाँध कर दादी ने छज्जा के ऊपर रस्सी बांध के सूखने के लिए लटका दिए थे। सुबहें और रातें सर्दीली हो गयी।पहाड़ियों पर ऊगा हरा घास पिंगलाने के बाद सूखने लगा था। रातें साफ़ जगर मगर तारों से भरे नीले आसमान से टपाटप पाला गिराने लगी थी। स्लेट की छतें रात भर टपके पाले से भीगी टप टप टपकती रहती। ये दिन त्योहारों की खुनक से भरे हम बच्चों को बौराये रखते थे।
दूर पहाड़ों से घाम तापने भाबर की तरफ उड़ान भरते मल्यो की डारों(झुंड) से आसमान भरा रहता।डार की डार मल्यो आते और जिन खेतों में गेहूं की बुआई हो जाती उनमे डाले गेहूं के बीज को मिनटों में चुग जाते। लोग जोर जोर से ह्वा ह्वा करते उन्हें उड़ाने की कोशिश करते तो पूरी मल्यो की डार एक खेत से उड़ कर दूसरे खेत में बैठ जाती। दादी आंखों के ऊपर हथेली की छाया बनाती आसमान की तरफ देखते रोज कहती, “हे राम बाबा शिवजी के कैलाश में पाला जम गया होगा। मल्यो की डार घाम तापने भाबर को जा रही है। उन दिनो हम बच्चे शाम ढलते ही ठण्ड के मारे बिस्तरों में दुबक जाते थे। दादी हमे बरजती “अगर तुम चुपचाप रहोगे शोर नहीं करोगे तो आज मैं तुमको पितरों की कहानी सुनाऊँगी”। हम सब अपना ओढ़ना समेटे दादी को घेर कर बैठ जाते ।
तो सुनो मेरी पोथलियों ये बीते जमानो की बात है। पुराने ज़माने में ऐसा होता था जब परिवार का कोई भी सदस्य मर जाता वो जलाने के बाद भी लौट कर अपने घर कुशल बात लेने आता जाता रहता।
“दादी मरने के बाद केवल औरतें ही आती थी कि आदमी भी आते थे”। मेरी जिज्ञासाओं का अंत ही नही था। दादी ने पहले कुछ सोचा फिर बोली “बाबा मैने आदमियों के बारे में ऐसी कोई कथा सुनी तो नहीं है। हे रामां मरने के बाद भी अपने बच्चों, गाय बछिया,खेत खलिहान की चिंता औरतों को ही ज्यादा रहती होगी ये पक्की बात है। जिसे चिंता होगी उसे कहां मुक्ति मिलेगी। हम औरतों के भाग में मरने के बाद भी चैन कहां होता है ?” दादी ने गहरी सांस ली और बोली तुम आगे की कथा सुनो
एक बार की बात है वो सामने वाले अमेली के डाण्डे के पार किसी गांव में चन्दना नाम की लड़की की माँ मर गयी। चंदना को भारी शोक हो गया वो दिन रात अपनी माँ को याद करके रोती रहती।अपने शोक में उसने खेतों में काम करना भी छोड़ दिया। गोठ में बंधी गाय बछिया भूख प्यास से मैं मैं करके रंभाती रहती। अड़ोस-पड़ोस की चाची ताई गाय बाछी को घास पानी दे देते। पर ऐसा कब तक चल सकता था।
पहाड़ों में सबके अपने भी ढेर सारे काम होते हैं। गांव के सब लोगों के खेतों में धान की गुड़ाई निबट गयी इधर चंदना के खेतों में घास पात वैसे ही जमा हुआ था। एक दिन सुबह उठ कर चंदना ने देखा कि उसके सारे खेतो में गुड़ाई हो गयी। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि रातों रात उसके खेतों में गुड़ाई किसने की। गोठ में गाय बछिया के आगे मुलायम हरी घास का ढेर लगा था।उनका पानी पीने का बर्तन पानी से भरा था। उस दिन के बाद कोई रात को चंदना का हर काम चुपके से कर जाता। अब चंदना के खेतों का हरेक काम गुड़ाई,निराई,कटाई,मण्डाई गांव में सबसे जल्दी होने लगी। जो भी ये काम करता वो रात को चुपके से आता इस लिए चंदना काम करने वाले व्यक्ति को चाह कर भी देख नहीं पाई थी।लोग चांदना की बढ़ाई करते वाह वाह चंदना तो अपनी माँ के मरने के बाद बहुत किसाण हो गयी।
एक दिन चंदना ने सोचा जो भी मेरा काम करता है पकड़ कर उसको कुछ खिलाना चाहिये। उसने हलवा बनाया और खेत के किनारे एक घनी झाडी में छिप कर बैठ गयी। देखती क्या है कि उसकी माँ अँधेरे से निकल कर खेत में आई और काम निबटाने लगी। हे राम बाबा जनानी का प्राण बेटी पर अटका था।
चंदना अपनी मां को देख कर बहुत खुश हो गई माँ-माँ करती झाड़ी से निकल आई।दोनों माँ बेटी एक दूसरे के गले लग कर रोने लगी। दोनों ने मिल कर हलवा खाया और काम करने लगी। होते करते दिन बीतने लगे। चन्दना की मां रात को आती सुबह धार में भोर का तारा आते ही चली जाती। एक दिन फूल फटक की जुन्याली रात में माँ चंदना से बोली “हे बाबा बहुत दिनों से सिर में खुजली हो रही है जरा मेरे सिर में जुंए देख दे”। जैसे ही चंदना ने माँ के बालो में हाथ लगाया उसे मां के बदन से मांस जलने की तेज बदबू आई। वो वाक् वाक करके उबकाने लगी बोली, “दूर हट माँ तुझसे जलांध आ रही है। माँ को चन्दना के इस व्यवहार से बहुत बुरा लगा। वो रोते हुए बोली “मैंने तुझे पैदा किया अपना दूध पिलाया,पाला पोषा, सारी जिंदगी तेरे सुख दुःख में शामिल हुई और आज तुझे मेरे शरीर से जलने की बदबू आ रही है। मै जा रही हूं आज से मै कभी लौट कर नहीं आउंगी”।
चंदना की मां ने श्राप दिया “आज के बाद जिन लोगों की मृत्यु हो जायेगी वो कभी लौट कर नहीं आयेंगे”। बस बाबा कहते हैं उस दिन से कोई मरा हुआ व्यक्ति दुबारा लौट कर नहीं आया। परिवार में लोगों के जिंदा रहते हम उन्हे प्यार करते हैं, उनका मान करते है मरने के बाद उन्हें जब जलायेंगे तो उनसे चिरान्ध तो आएगी ही न। उस दिन से पितृ बुरा मान गए। जो गए सो कभी लौट कर नहीं आए । उसके बाद किसी ने अपने मरे हुए प्रिय जनों को कभी नही देखा। कहते हैं वो पितृदेवता बन जाते है। साल में एक बार नई फसल होने पर हम अपने पुरखों की जमीन से उगाए अन्न में से उनके हिस्से का नवान्न निकालते है। “जो अनाज हम अलग से पुरखों के नाम पर रखते है उसे तो बामण दादा जी ले जाते है। हमारे पितृ थोड़ी खाते होंगे उनके बच्चे खा देते होंगे”। अपनी देखी बात को कह कर मैने खुद को हलका किया। जानती थी मेरे इस तरह के प्रश्नों के जवाब में दादी कोई ज़बाब ना दे कर मेरी पीठ पर जरूर एक मुक्की मारेगी उसने अपना रोज का काम निबटाया। उस नीम अंधेरे में दादी ने अपने दोनो हाथ जोड़ कर माथे से लगाए किसी अनाम, अनदेखे, अदृश्य की तरफ मुंह उठा कर फुफुसाई”हे पितृ देवता, हे भूमि के भुमिया, हे खोली के गणेशा,हे नागरजा हमारे गांव गली की, जंगल पानी की, गोठ में बंधे जीवों की, पौन पंछियों की रक्षा करो महराज रक्षा करो।