रश्मि धारिणी धरित्री
पर्यावरणविद, साहित्यकार, उत्तराखंड
सुधिजनों को धारिणी का सादर प्रणाम
बसंत का आगमन और मौसम में फाल्गुनी रंगों का घुलना और नवजीवन की सुगंध और साथ ही महाशिवरात्रि का आगमन जो साक्ष्य है मिलन प्रकृति का तत्व से ।
अगर कोई मुझसे पूछे कि मुझे शिव पार्वती की कथा में सबसे अधिक क्या प्रिय है तो, वो उनके विवाह से भी अधिक पार्वती का शिव से साक्षात्कार जो मानव शरीर के लिए असंभव था । पार्वती ने उसे संभव बना दिया। वो कल्पना भी मुझे ट्रांस में ले जाती है। अगर ये मान भी लें कि वो सती का पुनर्जन्म नहीं थीं, फिर भी ब्रह्मांड ने उन्हें चुना था। उनके साथ वो सारी अनुभूतियाँ जो बाल्यकाल से उनके साथ होती आई थीं। वो भी मानव जनित जीवन के उपापोह, अपनी माता के वात्सल्य, और अनदेखे शिव के प्रति प्रेम में झुलती रहीं। समस्त ब्रह्मांड उनका मार्ग प्रशस्त करता रहा। सारे व्यवधानों के बाद भी जब ऋषि दधीचि उनका मार्ग प्रशस्त करते हैं तो पार्वती का सबसे पहले स्वयं से साक्षात्कार होता है, यही मार्ग हमें भी दिखलाता है कि अगर ईश्वर को सचमुच पाना है तो पहले स्वयम् से साक्षात्कार होना चाहिए।
पार्वती ने सबसे पहले इस पंचतत्व के बने पंचकोश को पार किया अन्नमय कोश जो जो कुछ हम खाते हैं वही हमारा शरीर निर्माण करता है। प्राणमय कोश जो हमारे श्वास लेने की सही विधि से शुद्ध होता है, मनोमय कोश जो हमारे मन को नियंत्रण में रखने से चेतना से पार होता है, विज्ञानमय कोश, जब हम अपनी अंतरदृष्टि को पा लेते हैं, ये जगत माया लगता है हम इसको पार कर जाते हैं और अंत में आनंदमय कोश जिसको ध्यान अवस्था से पाया जा सकता है। बहुत विरले होते हैं जिनको पंचकोश को पार करके परम ब्रह्म की अनुभूति होती है । इसी प्रकार पार्वती ने अपने सातों चक्र को मुक्त किया। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्त्रधार चक्र ।
कैसा रहा होगा वो पल जब उन्होंने शिव को प्रथम बार देखा योगी रूप में ध्यान मग्न, उनकी वर्षो की वेदना क्या शिव की वेदना नहीं थी। क्या वो अलग थे। पार्वती साक्षात प्रमाण हैं, जब निजी स्वार्थों से उपर उठ कर, दैनिक भोगविलास में आकंठ डूबे शरीर को छोड़ कर स्वयम् की उन्नति करते हैं, मोह आसक्ति वासना को पार करते हैं अपनी वाणी कर्म से जीव मात्र के लिए क्षति न पहुंचाये, करुणा को अपना मार्ग चुनते हैं और ये करुणा स्वतः हृदय में प्रकट होती है तो वो ब्रह्मांड की शक्ति भी हमारी तरफ आकर्षित होती है। क्योंके हर आत्मा का अंतोगन्तव्य उसी ब्रह्म से मिलना है।
जिस क्षण हम सृष्टि को, उसमें घटने वाली घटनाओं को साक्षी भाव से देखते हैं, परहित के लिए स्वयम् का त्याग कर देते हैं तो शिव वो ईश्वर वो ब्रह्मांडीय शक्ति भी हमसे मिलने को उतनी ही व्याकुल होती है। यही शिव शक्ति के मिलन का रहस्य है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड ऊर्जा और तत्व के आपसी बंधन से बना है। केवल कोई एक अकेला श्रेष्ठ नहीं है। सृष्टि के लिए दोनों को साथ आना पड़ता है तभी सृजन संभव है। यही सृष्टि का नियम है। पार्वती का शिव से मिलन समस्त मानवीय शरीर की बाधाओं को पार करके ईश्वर हो जाने का प्रतीक है
शिव का पार्वती हो जाना, पार्वती का शिव हो जाना ही महाशिवरात्रि है। जिस तरह दो अलग अलग बुलबुले आपस में एक हो जाते हैं तो ये बताना कठिन होता है कि कौन सा हिस्सा किस पानी से आया था। उसी तरह जब आत्मा का संबंध शिव रूपी ब्रह्म से हो जाता है तो दोनों की भिन्नता बताना असंभव है।
पार्वती का तप मानवीय परकाष्ठाओं को पार करने का प्रतीक है। महाशिवरात्रि प्रतीक है मूलाधार में जकड़े केवल भोजन उत्सर्जन और प्रजनन के चक्र में फंसे निम्नतम जीव से उन्नति करते हुए चेतना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करना, अनन्त ब्रह्मांड की खोज, ज्ञान विज्ञान की उन्नति, सृष्टि में करुणा हो जाना। जहाँ ये कह सकें
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
जहाँ संसार की सभी वनस्पति पुष्पों के रंग सुगंध फाल्गुनी शिव पार्वती बन जाएँ और चारों तरफ आनंद शांति सौहार्द के रँग बिखेर कर बोलें – हर हर महादेव
Very nicely expressed.
वाह! बहुत ही सुंदर सटीक लिखा है आपने । पार्वती की तपस्या के सारे अंतरंग उजागर कर दिए आपने । बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि जी। 🙏
Bahut sundar