शायरा बानों
प्रवक्ता, जैश किसान इन्टर कॉलेज,
बनगावां, घोसी, मऊ
आशुतोष और शबनम एक प्रेमी युगल हैं जिनके बीच बातचीत के दौरान कुछ बातों को लेकर नाराजगी चल रही थी,दोनों गुस्से में थे । एक दूसरे को फोन भी नहीं कर रहे थे लेकिन दोनों को एक दूसरे के बिना रहा भी नहीं जा रहा था । नाराजगी ने फोन पर बात करने से दोनों को रोक रखा था फिर भी आशुतोष को शिकायत करनी थी उसने फोन किया और शबनम से बोला -“मुझे ब्लाक कर दो,मेरा नम्बर डिलीट कर दो।”
शबनम -ये काम आप भी कर सकते हैं।
आशुतोष-आप करो, आपको बात नहीं करनी है।
शबनम- मुझे ब्लाक नहीं करना आप कर दीजिये आप भी कर सकते हैं।
आशुतोष-देखिये मैडम ! मैं दिखावा नहीं करता जो हूँ वो हूँ। अच्छा नहीं हूँ, खराब हूँ । मुझे ब्लाक कर दीजिये हर जगह से (फेसबुक, व्हाट्सप,टेलीग्राम)
शबनम(आँखों में आंसू लिये) -आप नहीं मैं खराब हूँ,मेरी तो झोली ही फटी है, मुझे थोड़ा सा भी प्यार मिलता है न तो मेरी झोली में टिकता ही नहीं।
आशुतोष -नहीं, मैं ही ख़राब हूँ, इसमें आपकी गलती नहीं है। मै ऐसा ही हूं क्या करूँ?फोन रखिये मुझे कोई बात नही करनी ।
इतना कह आशुतोष ने फोन काट दिया । फोन कट होते ही शबनम जड़त्व हो गयी उसकी आँखों से आंसू जारोकतारा बह रहे थे।कुछ देर तक शबनम के आंसू यूँही बहते
रहे । कुछ देर बाद शबनम खुद को समझाकर शांत तो हो गयी पर नाराजगी बरकरार थी।रात के आठ बजे आशुतोष का मैसेज आता है।
आशुतोष -मेरा एक्सीडेंट हो गया है।
शबनम की नाराजगी फुर्र हो गयी और उसने तपाक से एक साँस में पूछा -“कैसे?क्या हो गया? चोट ज्यादा तो नहीं आयी?
आशुतोष – हाथ और पैर में चोट लगी है।
ये बात सुनकर शबनम के दिल पर मानो किसी ने खंजर घोंप दिया। किसी तरह रात बीती, सुबह हुई, शबनम ने आशुतोष को फोन किया “अब चोट कैसी है?”
आशुतोष-जितना दर्द इस चोट से हो रहा है ना उससे ज्यादा दर्द दिल में है, ये दर्द तो कुछ भी नहीं।
ये बात सुनते ही शबनम का मानो कलेजा मुंह को आ गया, अब शबनम से बिल्कुल भी रहा नही जा रहा था । शबनम ने आशुतोष के दफ्तर की ओर रुख किया और चल पड़ी, रास्ते में जाते वक्त शबनम के दिमाग में आशुतोष ही आशुतोष था।
वह दफ्तर में दाखिल हुई, उसकी निगाहों को आशुतोष की तलाश थी । उसने चारों ओर निगाहें दौड़ाई आखिर उसकी निगाह आशुतोष पर पड़ ही गयी, आशुतोष पर निगाहें ऐसे टिकी थी जैसे एक माँ अपने बिछड़े बच्चे के मिलने पर बिना पलकें झपकाये लगातार देखती है अब उसके आंसू सैलाब बनकर उमड़ जाना चाहते थे लेकिन सार्वजनिक जगह होने की वजह से शबनम आंसुओं के घुट पी गयी। काम में व्यस्त आशुतोष की नजर भी अचानक से शबनम पर गयी, शायद उसे उम्मीद नही थी कि शबनम दफ्तर भी आ सकती है । वह आश्चर्य भरी निगाहों से शबनम को देख रहा था जैसे ही दोनों की नजरें मिली पास रखी कुर्सियों में से एक कुर्सी पर शबनम जा बैठी और आंसुओ को रोकते हुए मोबाइल चलाने का दिखावा करने लगी ।
वह अचानक से उठी और बिन बोले चल दी। आशुतोष ये सब देख रहता था, जाते देख बोला “ओय मैडम रुकिए” शबनम पास गई आशुतोष ने कुछ कहना चाहा ।
शबनम बोली” किसी और दिन” और रुंधे गले तेजी से बाहर निकल आयी। शबनम गेट से इतनी तेजी से बाहर निकली थी कि उसका हाथ गेट से टकरा गया।
अब शबनम दफ्तर से कुछ मीटर की दुरी पर सड़क पर जा पहुंची थी और उसकी आंखें अश्रु से भरी थी, आटो को हाथ दिखाया ऑटो पास आकर रुकी जिसमे बैठकर शबनम घर की तरफ रवाना हो गयी ऑटो अभी चली ही थी कि आशुतोष ने फोन किया और बोला, “दिल में बहुत दर्द हो रहा है इतना तो कोई गोली मार दे तो न हो।”
इस तरह की कुछ चन्द बातें दोनों में हुईं फिर शबनम ने कहा आवाज़ नहीं आ रही बाद में बात करते हैं।फिर अगले दिन दोनों ने फोन पर बात की ।
आशुतोष बोला, “मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप दफ्तर आ जाएंगी।”
शबनम बिना कुछ बोले मुस्कुराई, कुछ बातें होने के बाद दोनों की नाराजगी जाती रही और कुछ देर बाद दोनों बात करते-करते खिलखिलाने लगे ।
इस नाराजगी का सुखद अंत हुआ।