डॉ नमिता राकेश
वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजपत्रित अधिकारी
(गतांक से आगे …) सुबह सवेरे हम सबने चाय नाश्ता किया और न्यू जलपाईगुड़ी के लिए प्रस्थान किया। बारिश जो भूटान छोड़ते समय शुरू हुई थी वो अब भी बरक़रार थी। मानो भूटान से भारतीय सीमा के पार भी हमारा साथ छोड़ने को तैयार नहीं थी। हम सब भूटान को इतना पसंद जो आ गए थे।
भारतीय सीमा पर प्रवेश करते ही हमें भारतीय रंग हर जगह दिखने लगा। यानी जगह-जगह पान की पीक के रंग जो हर सड़क, हर दीवार पर अपनी छाप छोड़े हुए थे। हमें मन ही मन बहुत ग्लानि होने लगी। मन मे रह-रह कर एक ही ख़्याल आ रहा था कि हम भारतीय स्वच्छता के प्रति जागरूक अभी तक भी क्यों नहीं हो पाए। मुझे भूटान की साफ सुथरी सड़कें याद आने लगीं। वहां की आबोहवा तो विशुद्ध है ही पर साथ ही पूरे भूटान में सड़कों या बाजारों में मजाल है कि कोई गंदगी मिल जाए। यहां तक कि कागज़ के एक टुकड़ा भी कभी दिखाई नहीं दिया।
भारत की ट्रैफिक लाइट और चिल्ल पों करते तेज़ आवाज़ में हॉर्न बजाते वाहनों को देख सुन कर भूटान की ट्रैफिक फ्री, नो लाइट-नो हॉर्न की बेमिसाल पद्यति याद आने लगी। जी हां, ठीक समझे। भूटान में कोई ट्रैफिक लाइट नहीं है। कोई वहां हॉर्न नहीं बजाता वहां। ज़ेबरा क्रॉसिंग पर यदि कोई पैदल पार कर रहा हो तो सभी वाहन अपने आप ही रुक जाते हैं। एक शालीनता है वहां हरेक चीज़ में। अगर नियम हैं तो उन नियमों का पालन करने वाले भूटानी भी हैं। अगर भूटान से तुलना करूँ तो सर ग्लानि से झुक जाए क्योंकि हमारे यहां नियम बनाने वालों से ज़्यादा नियम तोड़ने वाले हैं। देश को परे रख कर खुद पर केंद्रित लोग ज़्यादा हैं। हां, जानती हूं कि मैं अपने देश की कुछ ख़ामियां रेखांकित कर रही हूँ जो शायद नहीं करनी चाहिए पर सच्चाई से मुंह मोड़ना भी ठीक नहीं। सोचिए, जब कोई विदेशी हमारे यहां आता है तो यह एक पहलू हमारे देश की अन्य सकारात्मक पहलुओं पर भारी पड़ता होगा। आख़िर, एक साथी के कहने पर हम सब उत्साहपूर्वक टैक्सी से पास ही स्थित बंगाल सफ़ारी देखने निकल पड़े। हम 12 लोग थे। टिकट ले कर हम सबने पहले पेट पूजा की। सफ़ारी के अंदर ही एक रेस्तरां में हमने चाउमीन, लेमन राइस और गर्मागर्म चाय का ऑर्डर किया। उफ्फ, साहब, हम यहां भी फोटो सेशनकरने से नहीं चूके । सब कुछ भक्ष कर हम सफ़ारी की बंद बस में बैठ कर सफ़ारी की सैर को चल पड़े। वाह, जो अनुभव हुआ वो बयान के बाहर है।
इतने नज़दीक से जंगली जानवरों को उनकी प्राकृतिक रिहाइश में देखना कुछ हटकर अनुभव था। पंछियों से शुरुआत हुई। फिर जैसे-जैसे हमारी गाड़ी जंगल के भीतरी हिस्से की ओर बढ़ी वैसे वैसे अन्य पशु भी दिखने शुरू हो गए। हिरन, बारहसिंगा, जिराफ़, हाथियों के झुंड पानी में अठखेलियाँ करते हुए बहुत प्यारे लग रहे थे। फिर भालू दिखे। एक के बाद एक कई भालू एक साथ। उस के बाद हमारी गाड़ी थोड़ा ही दूर गई थी कि कुछ लोगों की चीख निकल गई। बहुत से शेर एक साथ दिखे। दो शेर पानी में बैठे हुए और दो तीन एक दूसरे के साथ लड़ते हुए। हम सब इतने पास से इतने बड़े-बड़े शेरों को देख कर रोमांचित हो रहे थे। सबके मोबाइल कैमरे फ़टाफ़ट फोटो खींच रहे थे। मैं तो शेर के साथ सेल्फ़ी लेने में व्यस्त हो गई साथ मे कमेंट्री भी करती जा रही थी। बहुत मज़ा आ रहा था। वैसे मैं तो मॉरीशस के जंगल सफ़ारी की सैर भी कर चुकी थी पर बंगाल सफ़ारी भी कम रोमांचक नहीं था। शेरो के दर्शन के बाद हम सभी सेल्फी पॉइंट पर पँहुचे औऱ हर अंदाज़ में फोटो खिंचवाई गईं।
ट्रेन का समय हो चला था तो हम सब टैक्सी करके स्टेशन वापस आ गए और सामान सहित ट्रेन के डिब्बे में पँहुच गए। फिर वही डिब्बा, वही साथ, वही मिलबांट कर खाना और चाय-शाय हंसते-गाते हम सभी देर रात दिल्ली पँहुच गए। सबसे इतने दिन के साथ के बाद अलग होना जहां सबको कचोट रहा था वहीं इतने दिन बाद परिवार से मिलने की खुशी भी सबके चेहरों पर साफ़ नज़र आ रही थी।
भूटान यात्रा का आगाज़ और अंजाम इतना रोमांचक होगा यह तो उम्मीद ही नहीं थी। हम सब इस यात्रा से पूर्णरूपेण संतुष्ट थे।