चंद्रेश वर्मा
पाली ग्राम, गाज़ीपुर
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में छोटी सरयू जिसे टोंस नदी के नाम से भी जाना जाता है के किनारे बसे पाली गाँव के ईशान कोण ( पूर्व-उत्तर) में नागर शैली में निर्मित दो तल्लों व 4 बीघे की परिधि में बना हुआ शानदार मंदिर है “ राधा कृष्ण पंच मन्दिर” ।
इस मन्दिर की सुन्दरता देखते ही बनती है । चारों ओर सुन्दर दीवारें, प्राचीन गहरा कुंआ, दिव्य मुख्य भवन, बगल में ही पुजारी जी के लिए बना एक कमरा, और विशाल प्रांगण। यह मन्दिर गाँव ही नहीं बल्कि आस-पास के कई क्षेत्रों की आस्था का केंद्र है ।
इस मन्दिर के निर्माण को लेकर एक दंतकथा प्रचलित है । गाँव के ही निवासी वयोवृद्ध श्री पारसनाथ जयसवाल जी इस दंतकथा के तथ्य काफी विस्तार से बताते हुए कहते हैं की करीब 250-300 वर्ष पूर्व एक ब्राह्मण को अंग्रेज़ जज ने सजा दी थी । मुकदमे के दौरान जब भी वह गरीब ब्राह्मण कचहरी जाता तो उसकी बछिया उसके पीछे-पीछे जाती थी । वह उसे छोड़ती ही न थी । अतः सजा मिलने के बाद सबको उस बछिया की बड़ी चिंता हुई । बाद में वकीलों ने जज महोदय को गोवंश की रक्षा हेतु उस ब्राह्मण पर दया दिखाने को कहा । जज ने शर्त रखी कि उस ब्राह्मण के वजन के बराबर मुद्रा कोष में जमा की जाये तो वह उसे छोड़ देंगे । अब क्षेत्र में हल्ला हुआ कि भला इतनी मुद्रा दे कौन ? तब क्षेत्र के बड़े जमींदार श्री शिवबरत लाल जी उस विशाल मुद्रा को जमा करने गये । जज ने उनकी धर्मनिष्ठता व दया भावना देख कहा कि मैं इस ब्राह्मण को छोड़ देता हूँ, आप ये मुद्रा ले जायें व नेक कामों में लगायें । शिवबरत जी वहां से चले व जगह-जगह जल-छाँव आदि की व्यवस्था करते हुए वेद बिहारी पोखरे के पास शिव मन्दिर बनवाने लगे । पाली गाँव के लोगों ने कहा की आप हमारे गाँव के हैं सो यहाँ पर मंदिर बनायें । इस पर शिवबरत जी ने कहा कि पाली में तो ज़मीन नहीं है मेरी ।
फिर पाली गाँव के ज़मींदारों ने 4 बीघे की ज़मीन मन्दिर निर्माण हेतु दी । उस समय सरयू गाँव के बगल से ही बहती थी । शिवबरत जी ने तब इस विशाल मंदिर का निर्माण प्रारम्भ किया । नाव द्वारा बड़े-बड़े राजस्थानी पत्थर मंगाए गये । और कारीगरों ने अपनी स्थापत्य कला का शानदार नमूना पेश करते हुए भव्य मन्दिर का निर्माण किया ।
इसके मध्य में कृष्ण-राधा जी व चार कोनो में क्रमशः दुर्गा माँ, शिव जी, गणेश भगवान व सूर्य के मन्दिर हैं । दीवारों पर महीन व करीने से नक्काशी की गयी है । इस मन्दिर में प्रारम्भ में 19 मूर्तियाँ थीं, जिनमे 3 अष्टधातु की मूर्ति थी जो कालांतर में चोरी आदि घटनाओं के कारण खंडित होने पर शासन के अधीन सुरक्षित रख लि गयीं । पहले इस मन्दिर का निर्माण 2 तहों में होना तय हुआ । पर शिवबरत जी की असमय मृत्यु होने पर उनके भाई स्वर्गीय श्री लक्ष्मण लाल जी ने इसकी स्थापना की ।
मंदिर कई वर्षों तक अनदेखा, अलग-थलग पड़ा रहा । कुछ वर्ष पूर्व अयोध्या के करुणानिधान भवन के संत रामानंदी श्री मुनीन्द्र दास जी महाराज प्रवचन हेतु गाँव के समीप आये ।उन्हें जब इतने महान व दिव्य मन्दिर की जीर्ण-शीर्ण स्थिति के बारे में पता चला तो वह यहीं रह गये । अपने परिश्रम व अतुलनीय साधना से महाराज जी ने इस मन्दिर को आज अत्यंत सुंदर रूप दे दिया है । उनकी इस दिव्य साधना में स्थानीय ग्रामीण अपनी शक्ति भर सहायता करते हैं ।
उम्मीद है किसी दिन शासन-प्रशासन की नज़र महाराज जी की साधना पर पड़ेगी और मन्दिर पुनः अपने दिव्य गौरव को प्राप्त करेगा ।