असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
सर्वोदय पीजी कॉलेज, घोसी, मऊ
दिया और बाती
आओ हम दिए को दिए से जलाएं,
जगत से सभी यूं अंधेरा मिटाएं।
है कल्लू की मड़ई मदन की कोठरी,
जले दीप सबमें प्रसन्नित मुरारी ।
कण कण हो रोशन जले रोशनी हो,
रहे न कहीं पर तम का सितम हो।
ज्ञान की ऐसी पावन ज्योति जलाएं,
खुद को जलें अप्प दीपक बनाएं ।
आओ हम दिए को दिए से जलाएं…२
जैसे जलती हो बाती औ तेल जल रहा है,
लोग कहते हैं देखो दिया जल रहा है।
वैसे हम भी जलें और तुम भी जलो ,
स्नेह बाती में मिलकर दिया सा जलो।
राम ने काम कर जग अंधेरा मिटाया,
दिया रोशनी जग को सुंदर बनाया।
बैर नफरत मिटा प्रेम दीपक जलाएं
आओ मिल सभी हम दिए को जलाएं।।
मंथन
लोकतंत्र में मंथन जारी है,
अगले चुनाव की तैयारी है।
सांसद से सड़क तक
विकास बड़ा भारी है
मंथन जारी है..
विकास! विकास! विकास!
मजलिस से महफिल तक
गिनाए जा रहे हैं सभी
लाठी पर टंगे लंगोट की तरह
झुलाए जा रहे हैं सभी
विकास का एजेंडा
गिनाए जा रहे हैं सभी
पर मंथन जारी है
विकास के ऊपर जनमत भारी है
अगले चुनाव की तैयारी है
मैं पूछता हूं,
जनमत किधर है ?…..
जातिवाद जिधर है,
सबकी उधर नजर है।
विकास के ऊपर खिलने लगे हैं
अनेक जातियों के फूल
कुछ लाल कुछ हरे कुछ नीले कुछ बेरंगे
नेता जी कहिन है
जन पर जो जाति भारी है
उसकी अगली तैयारी है
लोकतंत्र में मंथन जारी है।।