मनोज कुमार सिंह
लेखक/साहित्यकार/ उप-सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका
महज़ कागज़,घास- फूस, खर-पतवार से बने नकली दशानन के पुतले के दहन का पर्व नहीं दशहरा, बल्कि हमारे मंन, मस्तिष्क और हृदय में गहरे रूप से व्याप्त समस्त दुर्गुणों, विकारों, दुष्प्रवृत्तियों और दुर्व्यसनों को पुरी तरह जलाकर ख़ाक में मिला देना ही दशहरा का असली निहितार्थ है। आज ही के दिन युगों-युगों के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दुर्गुणों, विकारों, दुष्प्रवृत्तियों और दुर्व्यसनों के प्रतीक दुष्ट दशानन का वध कर वसुन्धरा पर चतुर्दिक चहुँओर और चहुँदिश सत्य, अहिंसा, न्याय, करूणा, दया, परोपकार, ममता और मानवता का साम्राज्य प्रवर्तित करने का श्लाघनीय कार्य किया था। अहंकार, अत्याचार, अनाचार, व्यभिचार, लोभ, छल, कपट, प्रपंच से भरी आसुरी शक्तियों तथा राक्षसी प्रकृति से पूर्णतः दूषित, प्रदूषित, कलुषित रावणत्व को पूरी तरह से मार कर और दया, करूणा, परोपकार, त्याग, तपस्या, बलिदान और समस्त नैतिक तथा मर्यादित गुणों से विभूषित रामत्व को पूरी तरह आत्मसात और हृदयांगम करने का पर्व दशहरा हमारी गौरवशाली सामाजिक, सांस्कृतिक परम्परा का सर्वाधिक लोकप्रिय, लोक-सहभागिता का पर्व है। भारतीय तीज-त्यौहारों-उत्सवों की परम्परा में दशहरा भारतीय सांस्कृतिक और साहित्यिक श्रेष्ठता, उत्कृष्टता और सर्वोच्च नैतिक मूल्यों, मर्यादाओ की पराकाष्ठा को लोक जीवन में चरितार्थ करने का महापर्व है। लोक-जीवन में लोक मंगल की कामना के साथ लोक-सहभागिता, लोक- मिलन, लोक-सहकार का यह महान लोक- उत्सव न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व में जहां भी भारतवंशी रहते हैं वहां पूरे उल्लास और उत्साह से मनाया जाता हैं ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम सम्भवतः सम्पूर्ण वैश्विक समाज के इतिहास में इकलौते ऐसे महानायक, युग प्रवर्तक, युगद्रष्टा हैं जिनके सम्पूर्ण जीवन दर्शन, सम्पूर्ण जीवन चरित्र, व्यक्तित्व और कृतित्व के रंग में सम्पूर्ण भारतीय जनमानस दशहरा से लेकर दिवाली तक पूरी तरह सराबोर रहता हैं और इतने लम्बे समय तक सदियों से मेले और उत्सव का चलन-कलन रहता हैं। लोक मंगल की कामना और लोक कल्याण की भावना से पूरी तरह अभिरंजित दशहरा का महापर्व मर्यादा पुरुषोत्तम राम के व्यक्तित्व, कृतित्व और चरित्र का अनुसरण, अनुकरण और अनुश्रवण करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन चरित्र के अनुरूप अपने व्यक्तित्व कृतित्व चरित्र को गढने-सवांरने और ढालने का स्वर्णिम अवसर होता हैं। युग पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राम के त्याग, तपस्या, उत्सर्ग और बलिदान से परिपूर्ण राजनीतिक किरदार और मर्यादित लोक आचरण और त्रेतयुगीन महान राजनीतिक परिपाटी और परम्परा वर्तमान दौर की छल-कपट, प्रपंच और फरेब से सराबोर राजनीति को मर्यादित और मार्गदर्शित करने कार्य कर सकती है।
भारतीय गांवों के साथ-साथ कम्बोडिया, इण्डोनेशिया, मॉरीशस जैसे कई देशों में सदियों से प्रचलित रामलीलाओं के माध्यम से राम के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को लोकजीवन में उतारने के प्रयास से हमारा भारतीय समाज नैतिक रूप से प्रतिवर्ष ऊर्जस्वित ओजस्वित होता रहता है। रामलीला और रामकथा के नैतिक मूल्यों, मान्यताओं आदर्शो से अभिसिंचिंत भारतीय समाज में इस बाजारवादी दौर में भी नैतिक मूल्य अगर जिन्दा है तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम को समर्पित दशहरा और दिवाली जैसे त्यौहार का सकारात्मक परिणाम है। आइये हम इस वर्ष अपने मन मस्तिष्क और हृदय में घर कर गये रावण को पूरी तरह जलाकर राख कर देने के संकल्प के साथ दशहरा-दीपावली मनाएं ।