डॉ मोहम्मद ज़ियाउल्लाह
विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग
डी.सी.एस.के.महाविद्यालय, मऊ
गाँधी जी, सामान्य रूप से अपनी अहिंसा की नीति के लिए प्रसिद्ध हैं । यह वही अहिंसा की नीति है जिसको पहले कायरता का लक्षण माना जाता था। यह केवल गाँधी जी ही हैं जिन्होंने अहिंसा के चमत्कार को पहचाना और दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति को इस नीति से मात दिया। ऐसी मात कि खुनी ब्रिटिश साम्राज्य बिना खून-खराबे के ही हिन्दोस्तान से विलुप्त हो गया और देखते ही देखते गाँधी किसी के लिए बापू, किसी के लिए महात्मा और हम सब के लिए राष्ट्रपिता के रूप में अवतरित हो गये।
मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ई को हुआ। उनकी जयंती को “अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” (International Day Of Non Violence) के रूप में भी मनाया जाता है, मगर वहीँ 30 जनवरी 1948 हम सब के लिए दुखद भी है। इसी दिन अहिंसा के इस पुजारी हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के शरीर को नाथूराम गोडसे ने गोलियों से छलनी कर डाला था ।
हिन्दोस्तान के इतिहास में अनेकों सितारे हुए हैं उनमें से अधिकतर सितारों ने जागरूक दिमागों को प्रभावित किया है, मगर गाँधी का व्यक्तित्व ही ऐसा है जिसने आम लोगों को प्रभावित किया। दक्षिण अफ्रीका से वापस आये पन्द्रह वर्ष हुए थे कि अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से चार सौ किलोमीटर लम्बी दांडी मार्च करके जन-जन के उपयोग में आने वाले नमक की अंग्रेजों को चुनौती देकर नमक कानून की अवहेलना एक मुट्ठी नमक से क्या किया कि यह एक मुट्ठी नमक, नमक नहीं रह गया अपितु जन-जन की धड़कन गाँधी जी मुट्ठी में बंद हो गयी और रातों-रात गाँधी जी सार्वभौमिक नेता बन गये ।
गाँधी जी ने इंग्लॅण्ड से बैरिस्टरी की थी, दक्षिण अफ्रीका में अब्दुल्ला की कम्पनी में वकालत की। इस उद्देश्य से दक्षिण अफ्रीका गये और इक्कीस वर्ष वहीँ रहे। 1915 में जब भारत लौटे तो उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें भारत भ्रमण करने का सुझाव दिया। उस समय गाँधी जी सूट-बूट-हैट-टाई वाले थे, ऐसे परिधान में वह भारतीयों के पास उनके अपने बनकर कैसे जाते, यही वो समय था जब उन्होंने अंग्रेजी परिधान का परित्याग किया और जैसे लोग वैसा वेश-भूषा में आ गये। यह गाँधी जी की एक चमत्कारी शुरुआत थी जिसका प्रभाव भारतीयों से अधिक अंग्रेजों पर पड़ा। एक धोती में लिपटा टोरसो जैसा व्यक्ति गोलमेज सम्मलेन में गया तो सम्पूर्ण परिदृश्य ही देखने लायक हो गया। ठंड के मारे सारे प्रतिनिधि गर्म कपड़ों और सूट में थे मगर यह नंगा बाबा अकेले धोती में लिपट कर मानो प्रधानमंत्री रैमसे को चुनौती दे रहा था। सही अर्थों में प्रधानमंत्री इस दृश्य से भयभीत हो रहे थे। गाँधी की हिम्मत और चट्टान जैसा दृढ संकल्प पूरे सम्मलेन पर छाया रहा।
इतिहास को अपने समय और स्थान में रख कर ही देखा और समझा जा सकता है, सोचिये अगर यह कहा जाये कि पहले के राजा मुर्ख होते थे वे गर्मी से बचने के लिए करोड़ों के महल बनवाते और मानव संचालित पंखे लगवाते थे, उन्हें इतनी भी बुद्धि नहीं थी पचास-पचीस हज़ार की एसी लगवाकर चैन सुकून से रहते। मगर आप ही सोचिये कि इतिहास को समय से हटाकर देखना कितना गलत हो जाता है।
वैसे ही गाँधी जी को समझने के लिए 1922 का टाइम-ट्रेवल करना आवश्यक है। आज तो हिंदुस्तान एक सैन्य संपन्न, परमाणु हथियार से युक्त देश है। तब भी के आज के ब्रिटेन से भारत का टकराना आसान नहीं होगा। जबकि 1922 के भारत का मुकाबला सर्वशक्तिमान ब्रिटिश साम्राज्य से था। उस समय भारतीयों की स्थिति ऐसी थी कि खाने को रोटी नहीं,पहनने को कपडा नहीं, शिक्षा का नामोनिशान नहीं था। वहीँ सैकड़ों जातियों में लोग बंटे हुए थे, धर्मों में सने हुए थे, सैकड़ों प्रकार के अंधविश्वास में डूबे हुए थे। राष्ट्र की भावना शून्य थी। बिहार, बंगाल, उड़िसा के पुरे तथा मद्रास एवं बनारस के कुछ स्थानों के स्थायी जमींदार ब्रिटिश शासन के स्थायी वफादार थे। ब्रिटिश सैनिक जो अधिकतर भारतीय थे मगर ब्रिटिश के लिए ही लड़ते-मरते थे ऐसी अनगिनत विपरीत परिस्थितियों में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन चलाकर न केवल ब्रिटिश शासन की चूलें हिला दीं बल्कि भारतीयों में एक झटके से राष्ट्रिय भावना जगाकर एकता का नशा चढ़ा दिया। यह है गाँधी जी का असल जादू। यह गाँधी जी ही थे जिन्होंने चौरी-चौरा की घटना के बाद आन्दोलन वापस ले लिया, अन्यथा खून का प्यासा ब्रिटिश प्रशासन भारतीयों की खून से न जाने कितनी होलियाँ खेलता। गाँधी के अहिंसा की ताकत असल में यहीं दिखती है जिसने ब्रिटिश की चूलें भी हिलायीं और हमारा खून बहने से भी बचाया।
आज जी 20 की महान शक्तियां गांधी जी को नमन करने राजघाट पहुंची, पूरी श्रद्धा के साथ गाँधी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किया। यह हमारे लिए गर्व का क्षण था कि दुनिया ने माना कि सत्य और अहिंसा का पाठ दुनिया को गाँधी जी ने पढाया है। दुनिया यह भी मानती है कि गाँधी जी के द्वारा चलाये गये अहिंसक आन्दोलन ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की सफलता में अभूतपूर्व भूमिका निभायी है । इसीलिए दुनिया उन्हें अहिंसा के पुजारी के रूप में जानती और मानती है।
यह गाँधी का “सत्य का सिद्धांत” ही था जिसने गाँधी को अपनी ही बुरायी अपने ही शब्दों में बयान करा दिया। जिसे उनके निंदक और आलोचक सुनकर गाँधी की निंदा करने लगे। हमको तब उनके मानसिक दिवालियापन पर केवल दया ही आती है। पीठ पीछे तो छोड़िये अगर गाँधी जी सामने भी होते तो गाली देने वाले का वो मुस्कुराकर स्वागत ही करते और यही कहते-
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, इनको बुद्धि दे भगवान
प्रणाम सर🙏🙏🙏🙏
गांधी जी की पूरी जीवन गाथा इतने कम शब्दों मे कर ऐसे हैं जैसे गागर में सागर आपने समाहित कर दिया है….. और इस यात्रा वृतांत की सबसे अच्छी बात की अगर गांधी जी को समझना हैं तो उस काल परिस्थिति मे जाना पड़ेगा उसको समझना पड़ेगा….. ये सबसे ज्यादा प्रभावी हैं…. गांधी जी के विचारो को आपने बहुत ही आसानी से हमलोगों को समझाया सर……
Thank You Sir 🙏🙏🙏🙏🙏
❤️❤️❤️
Ahinsa parmo dharm
सादर चरण स्पर्श सर गांधी जी के बारे में जितना पढ़ा जाए उतना कम लगता है लेकिन आपने अपने शब्दों से गांधी जी के व्यक्तित्व को बहुत ही उम्दा तरीके से उकेरा है !
Dnyavad sir…🙏🙏….bahut se log mahatma gandhi ji ko kuch or hi manate h vo ye bhul jate h ki Gandhi ji ne hi muthhi bhar namak se british satta ke garva ko duva duva kr diya tha, vishwa patal pr Bharat ki ek nayi chavi ko uthara tha …jo log sochate the ki bhartiya kuch bhi nahi kr sakate unhon ne unhe asaliyat se vakif karaya ..ham aise mahan byaktitva ko nakar nahi sakate … Sir 🙏🙏apke lekh se sabko ek sahi marg darshan milega…
रघुपति राघव राजा राम ,पतित पावन सीता राम।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान
सर ऐसे ही और लेख लिखकर हमारे पास तक पहुँचाते रहिये ❤🩹❤🩹❤🩹
❤🩹❤🩹❤🩹❤🩹❤🩹 बहुत सुंदर सर ऐसे और लेख लिखकर हम तक पहुँचाते रहिये 🙏🙏❤🩹❤🩹❤🩹❤🩹❤🩹
Bilkul story ki tarah samjh aaya sir ji.
Thank you sir