डॉ अरविंद कुमार उपाध्याय (संगीत विभाग)
श्री मु०म०टा०स्ना० महाविद्यालय, बलिया
ईश्वर ने संसार के सभी चेतन प्राणियों को बनाया है। अन्य जीव भी साथ रहकर जीवन व्यतीत करते है परन्तु इन सभी में जिसको सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यह है मनुष्य मानव जीवन ही अकेला ऐसा जीवन है जिसमे संसार के सभी सुख-दुःख, उपलब्धियां, जिम्मेदारी ,लक्ष्य ,संबंधों का समावेश है। मनुष्य को ही सबसे अधिक बुद्धिमान माना गया है। ऐसा इसलिए है कि मनुष्य बाकी जीव जन्तुओं से भिन्न है।
मानव शरीर पंचकोषों से निर्मित है जो निम्नलिखित है-

1.संगीत शिक्षा– मनोमय कोष के विकास हेतु
2.शारीरिक शिक्षा– अन्नमय कोष के विकास हेतु
3. योग शिक्षा– प्राणमय कोष के विकास हेतु
4.संस्कृत शिक्षा– विज्ञानमय कोष के विकास हेतु
5. नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा -आनन्दमय कोष के विकास हेतु
उक्त प्रथम कोष संगीत शिक्षा का उद्देश्य संगीत के माध्यम से मानव जीवन में बौद्धक शक्ति, इच्छा शक्ति, स्वरण शक्ति आदि का विकास करना है। मानव जीवन में संगीत का महत्व निर्विवाद है। संगीत से चित निर्मल होता है और व्यक्ति अपने आवेगो-संवेगों पर नियंत्रण कर सकता है। प्रेम का मार्ग संगीत है और व्यक्ति अपनी जकड़नों को तोड़कर वाह्य आडम्बरों को चकनाचूर कर अपने अन्दर स्फुटित होने वाली आनन्द की तरंगों का अनुभव करता है। मानसिक तनाव को कम करते हुए हर्ष एवं विषाद आदि गुणों को विकसित करता है यह आपसी सद्भाव व समक्ष को विकसित करते हुए मानवता की भावना के पथ पर आगे बढ़ते हुए विश्वबन्धुत्व विश्वशान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करता है। इससे मनुष्य में आपसी भाईचारे की भावना विकसित होती है। संगीत हमारे जीवन में आन्तरिक आवश्यक भूमिका निभाता है। यह जीवन भर हमारी मानसिक और भावनात्मक समस्याओं से लड़ने में मदद करता है। संगीत की प्रकृति प्रोत्साहन और बढ़ावा देने की है जो सभी नकारात्मक विचारों को हटाकर मनुष्य की एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाता है l संगीत एक व्यायाम है जिससे शरीर के आंतरिक अवयवों का व्यायाम होता है और आक्सीजन की वृद्धि भी फलस्वरूप पाचन शक्ति गहरी नींद और हड्डियों की मजबूती का स्थूल लाभ मिलता है। साथ ही मनुष्य के अन्दर दया, प्रेम, करुणा उदारता, क्षमा, आत्मीयता और सेवा के भावों का भी तेजी से विकास करता है। मानव का संगीत के प्रति स्वाभाविक प्रेम ही इस बात का प्रमाण है कि यह कोई नैसर्गिक तत्व और प्रक्रिया है। नाचना गाना और बजाना मनुष्य समाज की सुखद कलाएं है। यदि यह न हो तो मनुष्य जीवन जैसा नीरस और कुछ न रह जायl संगीत का मनुष्य के मस्तिष्क और शरीर पर विलक्षण प्रभाव पड़ता है और उससे मूल चेतना के प्रति आकर्षण और अनुराग बढ़ता है। कला के प्रति अनुराग का बढ़ना अध्यात्म की प्रथम सीढ़ी है। ऐसे व्यक्ति में भावनाओं का होना स्वाभाविक है।
अध्ययन के अनुसार यदि बालक को संगीत की शिक्षा दिलाई जाय तो उसके बौद्धिक स्तर का विकास होता है और साथ ही उनकी स्मरण शक्ति मजबूत हो जाती है, तथा उनका मस्तिष्क संगीत की धूनों को विशिष्ट शैली में ग्रहण करता है।
संगीत मनोरंजन के साथ-साथ बौद्धिक, संवेगात्मक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का पोषक भी है। अतः मानवीय जीवन को समृद्ध बनाता है। यह प्रत्येक व्यक्ति को एक धर्म निरपेक्ष विस्तृत विचारधारा प्रदान करता है। संगीत राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। संगीत एक ऐसा विषय है जो वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का विकास करता है। संगीत कभी हिन्दू मुस्लिम, सिख व इसाई नही होता, केवल संगीत का आराधक होता है। संगीत अमीर-गरीब, बड़े-छोटे किसी में भेद नही करता। संगीत के द्वारा भावनात्मक एकता का एक अच्छा उदाहरण अकबर का शासान काल है। संगीत में ही मानव जाति को एक सूत्र में बांधने की आपार क्षमता होती है। संगीत जाति धर्म तथा राष्ट्रीयता के बन्धन से मुक्त है। यह दया, सहानुभूति तथा क्षमाशीलता आदि गुणों को भी सिखाता है।
कोई भी शिक्षा संगीत के बिना अपूर्ण है, क्योंकि इससे ही सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है। यह मनुष्य की रचनात्मक प्रवृत्ति एवं क्षमता को प्रकाशित करता है। इससे मनुष्य के संवेगात्मक, शारीरिक एवं मानसिक तीनो पक्षों का विकास होता है। समूह में गायन या वादन, मैचिंग धुन तथा लयकी प्रशिक्षा इत्यादि बालक को अनुशासन एवं उत्तरदायित्व की भावना का प्रशिक्षण देती है। युद्ध के मोर्चा पर उत्साह वृद्धि के लिए वर्तमान युग में भी विश्व के प्रत्येक राष्ट्र के विभिन्न प्रकार के संगीत का ही प्रयोग करते है। अट्टाहास करती हुई मृत्यु के उस बीभत्स वातावरण में सैनिकों के मस्तिष्क का सन्तुलन ठीक रखने एवं गगन भेदी तोपों के भयावने गर्जन में कर्तव्य की कसौटी पर खरे उतरने की शक्ति संगीत ही प्रदान करता है।
किसी भी युग में क्या एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना की जा सकती है, जो संगीत से लेश मात्र परिचित न हो ? सम्भवतः नहीं। इसका मूल कारण है संगीत और मानव का अटूट सम्बन्ध, दूसरे शब्दों में मानव जीवन ही स्वयं संगीत का जीवन है अथवा संगीत का जीवन ही स्वयं संगीत का जीवन है।
अमेरिका की कला पत्रिका “दि अंदर ईस्ट विलेज “में भारतीय संगीत की भूमि-भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा है- “मनुष्य की भितरी सत्ता को राहत देने और तरंगीत करने की भारतीय संगीत के ध्वनि-प्रवाह में अपने ढंग की अनोखी क्षमता है”। ध्वनि एक निश्चित भौतिक प्रक्रिया है जिस प्रकार प्रकृति और प्राणि जगत में प्रकाश और गर्मी के प्रभाव होते हैं, उसी प्रकार ध्वनि में भी तापीय और प्रकाशीय ऊर्जा होती है और यह प्राणियों के विकास में इतना महत्वपूर्ण स्थान रखती है जिसका अन्न और जल l संगीत के सात स्वरों के अपने अलग-अलग रंग होते है। प्रत्येक स्तर की तरंग का जो रंग होता है, वह शरीर और मन को प्रभावित करता है। संगीत से जो तरंग निकलती है उसका मानव के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। देखा गया है कि शरीर में प्रातः काल और सायं काल ही अधिक शिथिलता रहती है उसका कारण प्रोटोप्लाज्मा की शक्ति का ह्रास होता है। उस समय यदि भारी काम करें तो शिथिलता के कारण शरीर पर भारी दबाव पड़ता है और मानसिक खीझ और उद्विग्नता बढ़ती है। संगीत की स्वर लहरियां शिथिल हुए प्रोटोप्लाज्मा की उस तरह की हल्की मालिस करती है, जिस तरह किसी बहुत प्रियजन के समीप आने पर हृदय में मस्ती और सुहावनापन छलकता है। संगीत के परमाणुओं में मानव की वृत्तियों को प्रशस्त करने के साथ-साथ आत्मिक शक्ति का अविर्भाव करने की शक्ति भी निहित है। चारित्रिक उत्थान एवं वासनाओं पर विजय प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन भी संगीत ही है।
शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने संगीत की उन विलक्षण बातों को पता लगाया है जो मनुष्य शरीर में शास्वत चेतना को और भी स्पष्ट प्रमाणित करती है। संगीत का अब सम्मोहिनी विद्या के रूप में विदेशों में विकास किया जा रहा है। अनेक डॉक्टर सर्जरी जैसी डॉक्टरी आवश्यकताओं में संगीत की ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हैl
किसी ने सही कहा है कि “संगीत की कोई सीमा नहीं है, यह तो सभी सीमाओं से परे है और “संगीत जीवन में और जीवन संगीत में निहित है।