( हंगेरियन लोककथा का हिन्दी अनुवाद )
जंगली कबूतर और मुटरी
अनुवादक – इन्दुकांत आंगिरस
आपका युट्युब लिंक : Sahitya Sargam
पंचतंत्र की कथाओं से आप सभी परिचित हैं। इन कथाओं में अक्सर जानवरों और पक्षियोंके माध्यम से समाज को नीतिपरक ज्ञान दिया जाता रहा है। पंचतंत्र की कथाएँ सिर्फ़ भारत में ही नहीं अपितु दूसरे राष्ट्रों और भाषाओं में भी उपलब्ध हैं। प्रस्तुत है हंगेरियन भाषा में उपलब्ध ऐसी ही एक लोककथा का हिन्दी अनुवाद जोकि आज भी प्रासंगिक है, विशेष रूप से भारतीय साहित्यिक परिवेश में।
A Vadgalamb és a Szarka
पंचतंत्र की कथाओं से आप सभी परिचित हैं। इन कथाओं में अक्सर जानवरों और पक्षियोंके माध्यम से समाज को नीतिपरक ज्ञान दिया जाता रहा है। पंचतंत्र की कथाएँ सिर्फ़ भारत में ही नहीं अपितु दूसरे राष्ट्रों और भाषाओं में भी उपलब्ध हैं। प्रस्तुत है हंगेरियन भाषा में उपलब्ध ऐसी ही एक लोककथा का हिन्दी अनुवाद जोकि आज भी प्रासंगिक है, विशेष रूप से भारतीय साहित्यिक परिवेश में।
A Vadgalamb és a Szarka
(मुटरी एक प्रकार की चिड़िया होती है जिसका सिर, गरदन और छाती, काली तथा बाक़ी शरीर कत्थई होता है। यह कौए से कहीं बढ़कर चालाक और चोर होती है। इसको अँगरेज़ी भाषा में Magpie कहते हैं ।)
जंगली कबूतर ने मुटरी से कहा कि वह उसे भी घोंसला बनाना सीखा दे क्योंकि घोंसला बनाने में मुटरी उस्ताद है और वह ऐसा घोंसला बनाना जानती है जिसमे बाज़, शिकरा नहीं घुस सकते।
मुटरी ने ख़ुशी ख़ुशी उसे सीखाना स्वीकार कर लिया। घोंसला बनाने के बीच एक एक टहनी को जोड़ते वक़्त मुटरी अपने अंदाज़ में जंगली कबूतर से कहती, ” इस तरह रखो , इसतरह बनाओ ! इस तरह रखो , इस तरह बनाओ “
यह सुन कर जंगली कबूतर बोला – जानता हूँ , जानता हूँ , जानता हूँ !
मुटरी एक पल को ख़ामोश हो गयी लेकिन बाद में ग़ुस्से से भर उठी।
अगर जानता है, तो बना ले अपने आप ! – और उसने घोंसला अधूरा ही छोड़ दिया।
जंगली कबूतर उसके बाद से न तो कभी उस घोंसले को पूरा कर पाया और न ही मुटरी उस्ताद से कभी कुछ सीख पाया।