डॉ सुधांशु लाल
यूं तो चाँद हमेशा से मनुष्य के लिए कौतूहल का विषय रहा है, हमारी कहानियों, किस्सों और कविताओं मे चाँद को मामा से ले कर प्रेमी, प्रेयसी तक कह कर बुलाया गया है। कभी वो माथे की बिंदिया की तरह देखा गया तो कभी कान के बाले जैसा, लेकिन फंतासी और कल्पना के अलावा ये खगोलीय खोज और अंधविश्वास का भी केंद्र रहा है। जहां एक तरफ ये समय, माह और साल की गणना करने के काम आता, वहीं अमावस से ले कर पूनम तक तमाम रीति-रिवाज और अन्य मिथकीय कहानियां भी इससे जुड़ी हैं।
आज जब भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष एस. सोमनाथ जी के कुशल नेतृत्व व चंद्रयान 3 के मिशन निदेशक एस. मोहनकुमार जी के कठिन परिश्रम से भारत का चंद्रयान 3, 23 सितम्बर, 2023 को चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतर चुका है तब ये दिन न केवल भारत के लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। लेकिन यहाँ तक पहुँचने का सफर उससे भी ज्यादा रोमांचकारी है।
एक देश, जो आज से सिर्फ छिहतर साल पहले ब्रिटेन का गुलाम था और उससे पहले राजशाही और सामंतवादी व्यवस्था में जकड़ा हुआ था । उस देश के लिए चाँद पर पहुँचना कई मामलों मे क्रांतिकारी है। यह इस देश के वैज्ञानिकों के अथक प्रयास और नेताओं की दूरदृष्टि का परिणाम है। देश के आज़ाद होने के समय देश भूखमरी, कुपोषण, साम्प्रदायिकता, जातिवाद और अंधविश्वासों में जकड़ा हुआ था । उसी समय में दुनिया के दूसरे विकसित देश अन्तरिक्ष और चाँद पे जाने की सोचते हैं और एक दशक के बाद ये मुमकिन भी कर पाते हैं। जब 4 अक्तूबर 1957 को सोवियत संघ द्वारा पहला उपग्रह स्पुतनिक I अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजा गया और ये सिलसिला यहीं नहीं रुकता और कुछ दिनों बाद ही 3 नवम्बर 1957 को सोवियत रूस द्वारा अन्तरिक्ष मे पहली बार एक कुत्ते “लाइका” को स्पुतनिक II से अन्तरिक्ष में भेजा गया। उसके दो साल बाद 14 सितबर 1959 के लुना II नामक अन्तरिक्ष यान पहली बार चाँद पर भेजा गया, उसके बाद लुना III ने 7 अक्तूबर 1959 में ही चाँद की दूसरी तरफ की तस्वीरें भेजना शुरू कर दीं ।
चूंकि उस समय शीतयुद्ध शुरू हो चुका था तो अमेरिका भी कहाँ पीछे रहने वाला था, उसने भी अपना अन्तरिक्ष मिशन तेज किया और रूस और अमेरिका की ये लड़ाई अन्तरिक्ष में भी पहुँच गयी। 1 अप्रैल 1960 को अमेरिका ने भी अपना पहला सैटिलाइट TIROS I अन्तरिक्ष मे भेज दिया । इसके बाद तो जैसे ये लड़ाई खुले रूप में आ गयी और सोवियत संघ के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने ये ऐलान कर दिया कि हमने पहला अन्तरिक्ष यान भेजा था और हम ही पहला इंसान अन्तरिक्ष में भेजेंगे। और साल 1961 में 12 अप्रैल को VOSTOK I में “यूरी गैगरिन” नामक अन्तरिक्ष यात्री को अन्तरिक्ष मे भेज कर इतिहास रच दिया और अन्तरिक्ष की सीमा इंसानों के लिए खोल दिया । 16 जून 1963 को सोवियत संघ ने पहली महिला “वींटिना ट्रेशकोवा” को भी अन्तरिक्ष मे भेज दिया।
उसके बाद अमेरिका ने ये चुनौती स्वीकार की और 24 दिसम्बर 1968 को चाँद की कक्षा मे इंसान को भेज दिया और एक 20 जुलाई 1969 “अपोलो 11” में “नील आर्मस्ट्रांग” चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति बन जाते हैं । इसके बाद का अन्तरिक्ष स्टार-वार बन जाता है, एक के बाद एक अन्तरिक्ष यान और सैटेलाइट दोनों देशो के द्वारा भेजे जाते हैं और 1990 के बाद इस प्रतिस्पर्धा में दुनिया के दुसरे देश भी आ जाते हैं । आज बिना सैटिलाइट के हमारा जीवन एक पल भी गुजर पाना मुश्किल है, रेल से लेकर हवाई जहाज तक, मोबाइल से लेकर टीवी तक अब सब कुछ सैटेलाइट पर ही निर्भर है।
भारत मे इसकी शुरुआत 1920 से ही मानी जाती है जब एस. के. मित्रा, सी. वी. रमन और मेघनाद देसाई जैसे वैज्ञानिक इसका अध्ययन करना शुरू करते हैं। लेकिन इसको मूर्त रूप लेने मे 40 साल लगे जब दूरदृष्टि और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और देश के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने 1962 में Indian National Committee for Space Research (INCOSPAR) की स्थापना की। और एक साल के भीतर अपना प्रथम रॉकेट अन्तरिक्ष मे भेज दिया। ये कमेटी ही 1969 आते आते भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) का रूप लेती है। सिर्फ 6 साल के अंदर भारत ने अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट अन्तरिक्ष में स्थापित किया। उसके बाद 1980 में रोहिणी RS I नामक सैटेलाइट भी अन्तरिक्ष मे भेजा गया। और ये सिलसिला यहीं नहीं रुकता और 1984 मे सोवियत संघ के मिशन में भारत ने अपने पहले अन्तरिक्ष यात्री “राकेश शर्मा” को भेजा और उसके बाद 2008 मे चंद्रयान, 2014 मे मंगलयान से मंगल पर पहुंचे और अब 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान को चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भेज कर एक और कीर्तिमान गढ़ दिया।
अंत में, चाँद पर पहुँचने के कई मायने होते हैं, जब कोई मुल्क चाँद पर पहुँचता है तो वो इस जिम्मेदारी के साथ भी पहुँचता है कि धरती पर जो बुराइयाँ है, जो अवैज्ञानिकवाद और अंधविश्वास है उसको खत्म करने की दिशा में भी आगे बढ़ रहा। वैज्ञानिक चेतना का विकास करना, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा का है, उसके बाद, परिवार, समाज और सरकारों का भी कि वो सही दिशा मे हो रहा है या नहीं । चंद्रयान की सफलता से भारत में एक नयी ऊर्जा आएगी जिससे हमारे बच्चों की विज्ञान मे रुचि बढ़ेगी और उनका दृष्टिकोण बदलेगा जिससे न केवल विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि सभी क्षेत्र में चौमुखी विकास होगा, चाहे वो शिक्षा के क्षेत्र में हो, चाहे वो आर्थिक विकास हो या चाहे वो सामाजिक विकास। वैज्ञानिक चेतना समाज मे व्याप्त भेदभाव और शोषण को भी कम करती है।
हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी देश के अंदर युवाओं में ज्ञान-विज्ञान के प्रति रूचि की अभिवृद्धि को लेकर संकल्पबद्ध हैं। सरकारों को निश्चित ही विज्ञान और शिक्षा के ऊपर खर्च को बढ़ाना चाहिए, जिससे देश के अंदर की प्रतिभा का पलायन न हो और उन्हें वही सुख-सुविधा मिले जो उनको विदेशों में मिलती है। विज्ञान की तरक्की में ही देश की तरक्की है और देश की तरक्की मे समाज की तरक्की है ।