अर्चना उपाध्याय, प्रधान संपादक, वीथिका ई पत्रिका
हम समय के जिस बिंदू पर खड़े हैं, उसकी गति बहुत अधिक है । क्षण भर को आंख झंपकी की आप एक दुसरी ही दुनिया में खड़े होते हैं । इस सारे बदलाव की आहट हमेंअपनी गली में दिख जाती है । छुट्टियों पर गली में स्टंप लगा खेलते बच्चे अब हाथों में फोन थाम घर में पड़े रहते हैं। वो हंसती, गुलज़ार गलियां स्मृति का अटूट हिस्सा हैं । लगता है अभी ये गली मुड़ेगी और हम उसी गली में दुबारा खड़े होंगे ।
पर मानव ज्ञान की ये वीथिकायें कभी पीछे नहीं जातीं, ये आगे बढ़ती हैं, हां आप चाहें तो हर गली में हो रहे बदलाव को संजो सकते हैं, उसे सूचना बना सकते हैं, उसे ज्ञान मान सकते हैं ।
आज मानवता युद्धों के बीच से गुज़र रही है, ऐसे में आँखों को बंद करके किसी साहित्य या विज्ञान का निर्माण करना उचित न होगा, पर यह भी सच है कि तमाम मुश्किलों के बाद भी मुस्कुराते चेहरे हमें खुशियाँ दे ही जाते हैं ।
हमारी यह यात्रा इस वीथिका के प्रथम द्वार पर है, आईये साथ-साथ हर घर-हर गांव-हर मेढ़-हर गली से गुजरते हैं। वीथिका ई-पत्रिका का यह प्रथम अंक आप प्रबुद्ध पाठक के समक्ष है, आशा है आपका स्नेह हमारी वीथिका तक अवश्य पहुंचेगा ।
इस रचनात्मक उपयोगी और दिशाबोधी पहल के लिए आप, सुमित तथा आपकी पूरी टीम को ढेरों बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं। ‘वीथिका’ जनसंवाद विचार संवेदना कला साहित्य और संस्कृति की दर्शनीय संग्रहणीय और विचारणीय वीथिका बने।
Bahut Bahut Shubhkamnayen Aapko!🌹
आपकी और सुमित जी की इस महत्वपूर्ण पहल को शुभकामनाएं , आशा करती हूं कि भविष्य में ये पत्रिका ऊंचाइयों के नये प्रतिमान स्थापित करेगी। बहुत धन्यवाद आपका मुझे इसका एक भाग बनाने के लिए। कोशिश रहेगी कि हर अंक के लिए कुछ जरूर लिख सकूं। 🙏