लेखिका- डॉ. रचना सिंह “रश्मि”, आगरा
नीरज और रागिनी ने आपस में मिलकर अपने पिता की कोठी और फार्म हाऊस बेचने.की योचना बनायी । नीरज ने कहा, “रागिनी एक प्लान है लेकिन उसके लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है”, रागिनी ने कहा, “बताओ नीरज मुझे क्या करना है !” नीरज ने उसे योजना बताते हुए कहा, “एक पार्टी में मेरी मुलाकात एक बिल्डर से हुई, वह बडे-बड़े शापिंग मॉल बनाता है, कई शहरों में उसने मॉल बनाये हैं, लखनऊ में भी बनाने की बात कह रहा था। उसे किसी पॉश इलाके में जमीन चाहिए। अभी कुछ दिन पहले ही उसका फोन आया था। हमारे घर के सामने वाले रेस्तरां में बैठा था और उसने मुझे कॉफी पर बुलाया । वहां पर बैठे हुए हमारे फार्म हाउस पर नजर गयी बोलने लगा इस लोकेशन पर मॉल बने तो काफी अच्छा होगा, ये जगह शहर के बीच में है, मुझे पसंद है। तुम्हें पता है इसका मालिक कौन है !” मैंने कहा, “मुझे पता है, अंदर देखना चाहोगे सेठी साहब !” । वह चौक कर मुझे देखने लगा जैसे उसे मेरी बात पर विश्वास ही ना हुआ हो।
मैं उसे फार्म हाउस के अंदर ले गया, फिर उसे बताया की यह जमीन मेरे पापा की है या यों कहिये मेरी है । मैने सेठी को बाहर से फार्म हाउस दिखा दिया सेठी को हमारी कोठी और फार्म हाउस बहुत पंसद है । बस पापा किसी तरह कोठी और फार्म हाउस बेचने को तैयार हो जायें, पचास करोड़ रुपये सेठी देने को तैयार है । उसने कहा है जो मॉल बनाएगा उसमे दो शोरूम भी देगा, रागिनी ने पूछा, “मेरा कितना शेयर होगा?”, नीरज ने कहा, “दस करोड़ और एक शोरुम”, रागिनी बोली, “भाई ये तो कुछ कम है मेरे भी दो बच्चे हैं और अभी विनोद को व्यापार मे लाखों का घाटा हुआ है । नीरज ने हामी भरते हुए कहा, “चलो ठीक है, तुम मेरी बहन.हो, बीस करोड़ पक्का, पापा तुम्हारी बात मान जायेंगे, मुझसे तो बहुत ही नाराज हैं मेरे नाम तक से चीढ़ जाते हैं।” मन ही मन रागिनी सोचने लगी कि नाराज तो वह मुझसे भी हैं, देखते हैं शायद मान जायें । कुछ पलों बाद मायूसी से बोली पापा किसी भी तरह नहीं मानेंगे वो बहुत जिद्दी इंसान हैं । नीरज ने कहा,“रागिनी मुझे तो डर लगता है कि पापा कहीं अपनी कोठी दीनू काका और काकी के नाम पर न कर जायें और फिर हम दोनों हाथ मलते ही रह जायें”। रागिनी ने कहा, “देखो नीरज, पापा पाँच साल से व्हील चेयर पर हैं और मां को अस्थमा है, वही दोनों ही तो उन लोगों की देखभाल कर रहे हैं, इसलिए उन्हें कुछ तो मिलना ही चाहिए।” नीरज कहने लगा, “रागिनी तुम तो ऐसे बोल रही हो, जैसे वह लोग फ्री में ही काम कर रहे हैं, ऐश कर रहे हैं । बेटे को पढ़ा कर इंजीनियर बना दिया है, इतनी बड़ी कोठी में उन्हीं लोगों का राज चलता है । मैंने पेपर तैयार करवा लिये हैं, कल शाम को चार बजे पहुंचना लेकिन उन्हें ये न पता लगे कि हम साथ-साथ आये हैं।” रागिनी ने कहा, “ओके भाई, कल मिलते हैं।”
प्लान के मुताबिक नीरज पहले घर पहुंचा बेटे को इतने दिनों के बाद देखकर सरोज खुश हो गईं । ममता जाग उठी, अखण्ड प्रताप जी अपने स्वार्थी बेटे को अच्छी तरह जानते थे, बोल पड़े, “नीरज इधर कैसे? आज रास्ता भूल गए क्या!”, नीरज ने कहा, “पापा आप से कुछ बात करनी है, मैने आपको फोन पर बताया था न एक बिल्डर को यह कोठी और फार्महाउस बहुत पंसद है और वह मुँह मांगी कीमत में खरीदने को तैयार है । पचास करोड़ दे रहा है।” अखण्ड प्रताप जी बोल पड़े, “लेकिन बेच कौन रहा है, हम दोनों यहाँ रहते हैं और ये मेरा घर है ।मैने बहुत अरमानों से बनाया है, इसका जो भी करना है मै करुंगा । तुम दोनों इससे दूर रहो तो बेहतर । मेरे पैर ही खराब हुये हैं, दिमाग नहीं । बेटे की बात मां को भी अच्छी नहीं लगी, वह नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, “तुम्हें शर्म नहीं आ रही है, वैसे तो कभी भूले भटके भी शक्ल नहीं दिखाते हो पाँच साल से तुम्हारे पापा व्हीलचेयर पर हैं, कभी देखने आए बूढ़े मां-बाप को! हम लोग यहां दीनू और रामकली के ऊपर रहते हैं, अगर वो न होते तो हम लोग तो यूं ही मर जाते। कितने अरमानों से इसे बनवाया था, तुम लोगों के ही खातिर हम गांव का सब बेचकर यहां शहर आये थे कि हमारे बच्चे वहां पढ़ेंगे कैसे, बच्चों को कष्ट ना हो, तुम्हें तीन साल का लेकर आई थी और रागिनी तो इसी घर में पैदा हुई, इस कोठी को आज बेचने के लिए आकर खड़े हो गए हो ?”
नीरज कहने लगा, “मां थोड़ा प्रैक्टिकल बनो, मैं दिल्ली या दिल्ली के आसपास रहना चहाता हूँ, ग्रेटर कैलाश में कोठी देखी है। पचास करोड़ मिल रहा है । ये जिंदगी भर के लिए कमाई का ज़रिया बन जायेगा वह अलग, आप लोगों के लिए वन-बेडरूम फ्लैट काफी होगा । आप दोनों चलने फिरने से लाचार हो, बेकार में ही इतनी बड़ी जगह अकेले रहते हैं । आजकल समय खराब है। आप लोगों के साथ कोई अनोहनी न हो जाये हमेशा फिक्र रहती है, आप समझने की कोशिश करो ।” इतना कहते हुए नीरज फाइल निकाल कर साइन करवाने के लिए पेज खोलने लगा था, तभी रागिनी आ गयी । आते ही बोली, “क्या बात है? आज सूरज पश्चिम से निकला है क्या, अरे नीरज तुम कैसे, चलो अच्छा है, माँ तुमकों याद करती है ।” नीरज ने कहा, “ठीक हूँ रागिनी, अब तुम ही पापा को समझाओ, इतना अच्छा सौदा हो गया है और यह हैं कि मेरा घर-मेरा घर की रट लगाये हुये हैं ।” रागिनी जैसे पापा को समझाते हुए कहने लगी, “पापा आपने भी तो दादा जी की गांव की ज़मीन बेचने के बाद ही यह कोठी बनवायी थी। अगर भाई इस कोठी की जगह मॉल बनवाना चाह रहा है तो क्या गलत कर रहा है !”
अखण्ड प्रताप जी ने कहा, “शायद तुम दोनों भूल गये हो कि तुम्हारे दादा जी ने ही हमें शहर भेजा था, वो नहीं चाहते थे कि मैं और बच्चे गाँव में रहें, मै तो लखनऊ में व्यापार कर ही रहा था। सप्ताह में एक बार गाँव भी जाता था, एक बार बचपन में तुम मरते-मरते बचे थे तब तुमको लेकर हम लोग लखनऊ आये थे, कितनी मुश्किलों से तुमको बचाया गया था । तुम्हारे ठीक होने पर दादा जी ने बहुत बड़ा भंडारा करवाया था, उस दिन के बाद से ही मुझे लखनऊ में घर बनाने को कहा था क्योंकि वो मुझसे और तुमसे बहुत प्यार करते थे । गाँव मे न तो कोई अस्पताल था और न कोई ढ़ंग का स्कूल, वो चाहते थे तुम खूब पढो और डॉक्टर बनो, गाँव में अस्पताल बनाओ समझे। हमारी जो भी बाकी की जमीनें थी वो मैने बेचकर दादा जी के नाम रामप्रताप अस्पताल बना दिया और साथ ही अच्छा सा स्कूल भी । तुम को तो यह भी नहीं पता है, तुम कभी गांव ही नहीं गये । खैर छोड़ो तुम्हें इन बातों से क्या लेना देना । अगर देखा जाये तो इस कोठी और फार्महाउस पर तुम्हारे दादा जी का आशिर्वाद है। यह कोठी मैने गाँव की ज़मीन से बनवायी पर रहने के लिए।” नीरज ने खीज भरे स्वरों में कहा, “जो भी हो पर मुझे यहाँ नही रहना, आखिर है तो सब हम लोगों का ही !”, रागिनी ने भी हामी भरते हुए कहा,“सही कह रहो भाई, ये लोग इतने जिद्दी हैं इसीलिए अनीता भाभी भी यहाँ नही रहना चाहतीं । मां आप हर समय, हर बात में टोका-टाकी करती रहती हैं, मैं तो बेटी हूं मुझसे भी हर समय शिकायत का पुलिंदा लेकर बैठी रहती हैं । इसलिए भैया- भाभी से बर्दाश्त नहीं होता है । नीरज बोल पड़ा, “हां रागिनी अब तुम्हें भी समझ में आ गया न कि इन लोगों को झेलना कितना मुश्किल है!”
नीरज जोर से बोला, “इन लोगों के लिए तो सबसे अच्छा वृद्धाश्रम है । दीनू काका और रामकली की छुट्टी करके वृद्धाश्रम चले जाएं, वहीँ आपकी उम्र के संगी-साथी भी मिल जाएंगे, आप बोर भी नहीं होंगे और समय भी आराम से कट जाएगा।
अखंड प्रताप जी दोनों हाथों से जोर-जोर से ताली बजाते हुए बोले,” वाह-वाह मेरी औलाद, मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो । दोनों भाई-बहन प्लान बना कर आये हो और ऐसे नाटक कर रहे हो जैसे अनजाने में दोनों आ गये हो । वह समय लद गये जब तुम मुझे बेवकूफ़ बना कर चेक पर साइन करवा ले जाते थे और रागिनी तुमसे तो कम से कम ऐसी उम्मीद नहीं थी लेकिन तुम्हारी माँ ने बताया कि तुमने तो लॉकर ही खाली कर डाला । तभी तो हम दोनों चौकन्ने हो गये । मेरी वसीयत में सब कुछ लिखा है और वह वकील साहब के पास सुरक्षित है। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि हम वृद्धाश्रम मे ही रहेंगे।”
रागिनी और नीरज ने एक दूसरे को आंखों ही आंखों में देखा उनके चेहरे पर तुरंत रौनक आ गई। अखंड बाबू ने आगे कहा, “इतना खुश मत हो तुम दोनों, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है, कोठी और फार्महाउस पर ही वृद्धाश्रम बनेगा । जिसकी देखभाल रामप्रताप ट्रस्ट के मैनेजर रामबाबू करेंगे और जो भी हमारे पास है वह तुम्हारे और रागिनी के बच्चों को मिलेगा । रामप्रसाद ट्रस्ट से जो भी पैसा आयेगा वह तुमको और रागिनी को हर महीने मिल जाया करेगा । मैंने अपनी और सरोज की देहदान कर दी है इसलिए तुमको हमारे अंतिम संस्कार के लिए भी कष्ट नही उठाना पड़ेगा । वसीयत रजिस्टर्ड कर दी है और यह मेरा और सरोज दोनों का फैसला है। तुम दोनों के सपनों को तोड़ना मुझे बुरा लग रहा है। लेकिन ऐसी स्वार्थी संतानों के लिए यही सबक है ।